जे एन यू ब्राण्ड दलित चिंतक मण्डल जी एवं उसके "सूर" अनुयाई कुछ दिनों पहले गाय-बैल को सवर्ण एवं भैंस को दलित वर्ण का घोषित कर ये सिद्ध करने की जुगत में थे कि "अक्ल बड़ी या भैंस" तथा "बुरी नजर वाले तेरा मुँह काला" जैसे मुहावरे अस्पृश्यता एवं उत्पीड़न की सवर्ण मानसिकता से प्रेरित है । उन्होने इस सम्बन्ध में ये प्रश्न उठाया था कि "अक्ल बड़ी या गाय" अथवा "बुरी नजर वाले तेरा मुँह गोरा" क्यूँ नहीं होता ? उनके इस तकलीफ से मुझे भी बड़ी मानसिक पीड़ा हुई और ये जानकर आश्चर्य की अक्ल और भैंस में कभी कभी भैंस भी बड़ी हो जाती है ।
यह उद्धरण इसलिए किया क्योंकि दीपावली के वबाद अब गोवर्धन पूजा भी होगी और इसमें गाय बैलों की पूजा होगी । वो फिर ये जिज्ञासा प्रकट कर इसे सवर्णों की कुटिल चाल बता कर अपने अनुयाईयों को ज्ञान बाँट सकते हैं कि गोवर्धन पूजा में भैंस या सूअर की पूजा क्यों नहीं होती , वो भी तो पशुधन है ? इस जिज्ञासा के साथ मैं भी ये जानना चाहता हूँ कि गोवर्धन गिरधारी महाराज तो यादव थे अर्थात तथाकथित पिछड़ी जाति से और उनका स्वयं का रंग भी श्याम था अर्थात वे त्वचा से वे दलितों का प्रतिनिधित्व करते थे । कमोबेश ये त्यौहार भी पिछड़ों का ही है फिर वे पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले भैंस और सुअरों की बजाय वे गाय-बैल की क्यूँ पूजा करते हैं ? क्या ऐसा करने के पीछे भी ब्राह्मणों की कोई कुटिल चाल है ?
सामाजिक बुराईयों का विरोध आवश्यक है किंतु अपने बौद्धिक कुटिलता का उपयोग कर लोगों के मन में वैमनस्य फैलाने से उनका मण्डलेश्वर तो बना जा सकता है पर बहुजनों की वास्तविक समस्याओं को दूर नहीं किया जा सकता और न ही सामाजिक समरसता लाई जा सकती है । मुझे ये समझ में नहीं आता कि जिस जाति में कबीर जैसे महामानव ने जन्म लिया हो उस जाति को लोगों को अपने जुलाहे होने पर गर्व क्यूँ नहीं होता । क्या रैदास से अच्छा आज तक कोई कवि पैदा हुआ है ? क्या रसखान के बड़ा कोई कृष्ण भक्त हुआ है ?
इस देश में जितनी भी कुरूतियाँ है उसे किसी विशेष जाति या वर्ण ने नहीं, कुछ खास लोगों की प्रजाति ने अपने प्रभुत्व को जमाये रखने के लिए स्थापित की हैं और वे सभी जातियों , वर्णो में समान रूप से पाये जाते हैं । ऐसे लोगों की प्रजाति में दो ही लोग होते हैं - या तो मण्डलेश्वर या फिर आर्थिक सवर्ण ।
नोट - यदि त्वचा के रंग से ही अगड़े और पिछड़े का निर्धारण होना है तो सारे अफगानी और खाड़ी के मुसलमान सवर्ण हैं और दक्षिण भारत के सारे उच्च जाति के लोग पिछ्ड़े दलित । मैं भी लगभग श्याम वर्ण का ही हूँ तो काली मानसिकता वाले दलित चिंतक मुझे पार्ट टाईम दलित चिंतक मान सकते हैं ।
---संजय महापात्र---
साभार : अंतरजाल
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