सज्जन संगति रखें, तभी आएगी जीवन में सुगंध - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

रविवार, 18 नवंबर 2012

सज्जन संगति रखें, तभी आएगी जीवन में सुगंध


हर व्यक्ति का अपना आभामण्डल होता है जो खुद उसके द्वारा तैयार किया जाता है और कभी -कभार दैवयोग वशात तैयार हो जाता है। व्यक्ति के आभामण्डल मेंं उसी तरह का परिवेश और व्यक्तियों का समुदाय होता है जो उसके मन के भीतर कल्पनाओं में होता है, पूर्व जन्म के संस्कार हों तथा जीवन लक्ष्यों के अनुरूप मार्गों की भावनाएं हों। अपने साथ किस प्रकार के लोग हों, रहें या किन लोगों से संगति की जाए, इनका निर्धारण अपना मन करता है और इसमें मस्तिष्क की बजाय हृदयस्थ प्रवाह का महत्त्व ज्यादा होता है। जैसा मन वैसे मित्र हुआ करते हैंं। इन सभी के बावजूद मस्तिष्क को यदि काम में लिया जाए तो इससे व्यक्तित्व के निर्माण को बल मिलता है और अपना आभामण्डल शुभ्र रहता है। कई बार कोई भी आदमी कितना ही अच्छा हो, उसके आस-पास भ्रष्ट, स्वार्थी, उठाईगिरों, आवाराओं, मनचलों, कमीनों, बेईमानों और निकम्मे लोगों के होने पर इनका दुष्प्रभाव अपने व्यक्तित्व पर पड़े बिना नहीं रह सकता।

लगातार ऎसे लोगों का अपने इर्द-गिर्द रहना किसी भी अच्छे व्यक्ति के पूरे जीवन को बरबाद कर देने के लिए काफी है। यही कारण है कि पहले किसी भी व्यक्ति या परिवार से सम्पर्क करने के लिए उसके मित्रों, परिचितों और संस्कारों को देखा जाता था और सभी दृष्टि से संतुष्ट होने पर ही रिश्ता जोड़ा जाता था। यह संबंध चाहे स्थायी हो, अस्थायी हो या क्षणिक, लेकिन इसमें स्पष्ट तौर पर देखा जाना जरूरी है कि जिनसे संबंध हों, वे लोग संस्कारी, निष्कपट और सरल हों अन्यथा बुरे, भ्रष्ट और स्वार्थी लोगों से संबंध होने पर यह स्पष्ट माना जाना चाहिए कि ईश्वर उस व्यक्ति से नाराज है तभी वह आसुरी शक्तियों से भरे-पूरे लोगों के साथ किसी न किसी रूप से जु़ड़ा हुआ है। जिनकी वृत्ति पैसे खाने की, हरामखोरी की, लूट-खसोट की, व्यभिचारी हों उन लोगों का अपनी किस्म के लोगों से संबंध होना कोई बुरी बात नहीं है और ऎसे बुरे-बुरे लोग जब एक जगह एक साथ जमा हो जाते हैं तब भी कोई बुरी बात नहीं क्योंकि इनके जमावड़े का खामियाजा सिर्फ कुछ स्थानों को ही भुगतना पड़ता है और ऎसे स्थानों और व्यक्तियों के समूहों को लोग वज्र्य मानकर इनसे दूरी बनाये रख सकते हैं। और इस समूह के बारे में आम जन भी इस बात से अच्छी तरह परिचित हो जाता है कि इनकी मनोवृत्ति कैसी है, इनका चाल-चलन और व्यवहार कैसा है तथा ये समाज के शत्रुओं से कम नहीं हैं।

इन सभी परिस्थितियों के बावजूद अच्छे लोग इनसे समुचित दूरी बनाये रखते हैं और इससे इन बुरे लोगों का प्रदूषण समाज के पर्यावरण को उतना प्रभावित नहीं कर पाता है जितना समझा जाता है। लोग ऎसे घटिया इंसानों के समूहों को पहचान कर उपेक्षित रवैया रखते हुए अपने काम करते रहते हैं। समस्या तो तब होती है कि जब किसी दबाव, प्रलोभन या भ्रम अथवा बुरे ग्रहों की वजह से अच्छे लोग इनके चक्कर में आ जाते हैं। हालांकि बुरे लोगों का आभामण्डल और कर्मयोग ज्यादा समय तक सुगंध नहीं दे सकता बल्कि कुछ ही क्षण बाद इनकी असली दुर्गन्ध के भभके इनके पूरे व्यक्तित्व में तैरते रहते हैं। जो लोग जीवन के कर्मयोग को सफलता पाना चाहते हैं, व्यक्तित्व की गंध का प्रसार चाहते हैं उन्हें चाहिए कि बुरे और भ्रष्ट तथा स्वार्थी जीवन जीने वाले से सायास दूुरी बनाए रखें। इससे एक तो उनके प्रदूषित विचारों का प्रवाह हम तक नहीं पहुंच सकेगा, दूसरी ओर अपने कर्मों को करने में किसी भी प्रकार की बाधाएं नहीं आएंगी।

हर अच्छे आदमी को गंभीरता से सोचना चाहिए कि वह कितना ही अच्छा है लेकिन उसके आस-पास बुरे लोग हों, बुरे लोगों से संगति या परिचय हो अर्थात उनके साथ उठना-बैठना है, तो ऎसे में अच्छे लोग भी एक न एक दिन इनसे भी ज्यादा बुरे होने से नहीं बच सकते और अन्ततः इन्हीं की पंक्ति में शामिल होकर ‘अंधेरा कायम रहे’ का उद्घोष करने लगते हैं। इसलिए अपने जीवन में सुगंध का आवाहन करना चाहें तो अपनी संगति पर चिंतन करें और मस्तिष्क का उपयोग करते हुए सज्जनों और दुर्जनों में भेद की दृष्टि विकसित करते हुए अपने जीवन की दिशा और  दृष्टि तय करें।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

कोई टिप्पणी नहीं: