ब्यूटी के लिए पॉर्लर नहीं, मनःसौंदर्य जरूरी है - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 14 नवंबर 2012

ब्यूटी के लिए पॉर्लर नहीं, मनःसौंदर्य जरूरी है


आज रूप चतुर्दशी का पर्व है और वह रूप सौंदर्य की आराधना का ऐसा वार्षिक पर्व है जो हर कहीं विविधताओं से मनाया जाता है लेकिन सभी का एक ही लक्ष्य होता है अपने रूप-सौंदर्य में निखार लाना। सारी दुनिया नहीं तो कम से कम आधी दुनिया सौंदर्य की दीवानी होकर सौंदर्य और सौष्ठव पाने की तलाश में यहाँ-वहाँ भाग रही है। अपने स्वरूप और लावण्य को निखारने के लिए पुराने जमाने में नैसर्गिक साधनों और जड़ी-बूटियों को काम में लाया जाता था जिनमें पंच तत्वों का प्रयोग भी अपने आप में महत्त्वपूर्ण था। उस जमाने में सौंदर्य निखार के तमाम उपकरण और साधन प्रकृति से अपने आप प्राप्त हो जाते थे। यों देखा जाए तो सौंदर्य निखारने के लिए ज्यादा कुछ करने की जरूरत ही नहीं हुआ करती थी क्योंकि उस जमाने में लोग प्रकृति के इतने करीब थे कि लोगों के भीतर की ऊर्जा और तत्वों की कमी प्रकृति बिना कुछ किए पूरी कर देती थी। इसलिए शरीर के सौंदर्य को निखारने के लिए आज की तरह सर्वाधिक गंभीर और दिन-रात चिंतित रहने की जरूरत नहीं हुआ करती थी।

सौंदर्य का सीधा संबंध प्रकृति से सामीप्य, चित्त की शुद्धता, शुचिता पूर्ण खान-पान और व्यवहार है और यही सब शरीर एवं मुखड़े पर प्रतिभासित होता है। ज्यों-ज्यों हमारा खान-पान, चरित्र और चाल-चलन बदलते गए, प्रकृति से हम दिनों दिन दूर होते चले गए त्यों-त्यों हमारे मौलिक सौंदर्य को ग्रहण लगता चला गया।  आज ये हालत है कि बेहद खर्चीले कॉस्मेटिक्स, पॉवडर और कृत्रिम संसाधनों का नियमित उपयोग न करें तो काफी लोगों का जीना और घर से बाहर निकलना ही हराम हो जाए। ख्ूाब सारे लोग तो ऐसे हैं जो बिना पॉवडर, क्रीम और कॉस्मेटिक्स, सुगंध के सवेरे-सवेरे बाहर निकल आएं तो लोग इन्हें देखकर भूत समझ कर ही डर जाएं। सौंदर्य प्रसाधनों पर हमारी इतनी निर्भरता और सौंदर्य उपासना के प्रति एकाग्रचित्त दृष्टि ने हमें कहाँ का नहीं रहने दिया है। इनके बगैर हम सामाजिक हो ही नहीं सकते। घर से बाहर निकलने से पहले हमें सबसे ज्यादा जिन वस्तुओं की जरूरत पड़ती है वह कॉस्मेटिक्स ही हैं।

आदमी हो या चाहें औरत, सभी की जिन्दगी की सबसे पहली और अंतिम प्राथमिकता सौंदर्य पाने की हो चली है। ऐसे में गलती से ऐसे लोगों को भगवान मिल भी जाए तो ये अपनी सारी बुद्धि के बदले भगवान से रूप-सौंदर्य की ही याचना करने से नहीं चूकें। लोग यह भूलते जा रहे हैं कि चेहरा तो सिर्फ चित्त का प्रतिबिम्ब दिखाता है। ऐसे में चित्त ही अशुद्ध होगा तो चेहरे पर लावण्य कहाँ से आ सकता है। रूप-सौंदर्य और लावण्य का सीधा संबंध हमारे मन-हृदय और विचारों से है जो जितने अधिक शुद्ध होंगे उतना ही चेहरे पर लावण्य झलकने और छलकने लगेगा। चेहरेे पर जाने कौन-कौन सी किस्मों के क्रीम, जैलियाँ और ट्यूब रगड़-रगड कर हम ब्यूटी पाना चाह रहे हैं और मन में मलीनता का पार नहीं। ऐसे में लाख जतन के बावजूद चेहरे पर लावण्य की प्राप्ति संभव नहीं है। चित्त की शुद्धता ज्यों-ज्यों बढ़ती जाएगी वैसे-वैसे चेहरे का सौंदर्य निखरता जाएगा और मुखड़ा तेजस्वी होता चला जाएगा।

इसी प्रकार खुले आसमान, खुली जगहों और असीम विस्तार पायी प्रकृति से भी हर दूर होते गए और बंद कमरों को हमने अपना संसार बना लिया जहाँ दीवारों तक ही अपना संसार सिमट गया है। ऐसे में प्रकृति से रोजाना मिलने वाली ऊर्जा और पंच तत्वों के पुनर्भरण के सारे अवसर हमने गँवा दिए हैं और कामना करते हैं कि हमारे सौंदर्य की चर्चा दूर-दूर तक हो, यह कैसे संभव है। हम अपने स्वार्थों में लिप्त होकर जितना सिमटते जाएंगे, जितना अधिक संग्रहित करते चले जाएंगे, जितना अधिक कपट और षड़यंत्रों का खेल खेलेंगे, उतने ही अनुपात में हमारा मन मलीन होता चला जाएगा और जहाँ मन मलीन होता है उसका स्थूल प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है और ऐसे में अपने चेहरे से फूल झरने और आकर्षण पाने की कल्पना बेमानी है। मन, बुद्धि, चित्त, शरीर को शुद्ध रखे बिना सौंदर्य पाया नहीं जा सकता है चाहे संसार भर के क्रीम हम अपने थोबड़े पर मल लें। शुद्धता के लिए आचरण, कर्म और व्यवहार, विचारों, खान-पान आदि का शुद्ध होना जरूरी है और यह सब जुड़ा हुआ है आत्मसंयम की आराधना से।

आज छोटे-छोटे गाँवों से लेकर कस्बों, नगरों और महानगरों में तक में सबसे ज्यादा जो प्रतिष्ठान धड़ाधड़ खुलते जा रहे हैं उनमें स्पॉ पार्लर, स्लीमिंग एवं मसाज सेंटर, ब्यूटी पॉर्लर आदि प्रमुख हैं। हजारों ब्यूटी पॉर्लरों और सैकड़ों प्रजातियों के कॉस्मेटिक्स की उपलब्धता के बावजूद ब्यूटी पाने की हमारी तलाश आज भी अधूरी लगती है। भले ही हम कुछ घण्टों के लिए किसी नाटक के पात्र की तरह टेम्परेरी ब्यूटी का अहसास कर लें लेकिन ब्यूटी के मामले में स्थायित्व आज तक नहीं पा सके हैं। ब्यूटी और शारीरिक सौष्ठव के मामले में प्रकृति के आँगन में खुली हवा में मस्ती की जिन्दगी गुजार रही महिलाएं और पुरुष उन लोगों से हजार गुना ज्यादा आगे हैं जो रोजाना ब्यूटी पॉर्लरों की शरण लिया करते हैं या सजने-सँवरने में रोज घण्टों लगा देते हैं।

हम ब्यूटी पाने की अंधी दौड़ में जरूर भाग रहे हैं लेकिन ब्यूटी पाने के लिए जरूरी बातों का चिंतन भुला बैठे हैं। ब्यूटी का सीधा संबंध मनः सौंदर्य से है। जिन लोगों का मन शुद्ध, सहज और सरल है उन्हें किसी भी प्रकार की ब्यूटी पाने के लिए कोई जतन नहीं करने पड़ते बल्कि उनके परिश्रम और चित्त की शुद्धता का संयोग पाकर चेहरे अपने आप खिल उठते हैं। न सिर्फ चेहरे बल्कि शरीर का सौंन्दर्य और स्वास्थ्य भी मुँह बोलता है। इन लोगों को आज के शहरी लोगों की तरह दवाइयों का नाश्ता भी नहीं करना पड़ता। इसलिए लावण्य और शारीरिक सौष्ठव चाहिए तो प्रकृति के ज्यादा से ज्यादा करीब रहें, खान-पान, वाणी और व्यवहार में शुद्धता रखें और अपने चित्त को निर्विकार बनाएं। ऐसा होने पर मनः सौंदर्य की कलियां खिल उठती हैं और हमारा चेहरा तथा कर्म दोनों ही लावण्य तथा ओज बिखरते हुए औरों को भी आनंद का अहसास कराने लगते हैं।


---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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