मधुर कण्ठ से झरते हैं गीत-भजन और काव्य रस
कन्हैया सेवक |
कला, संस्कृति और साहित्य की अजस्र धाराएँ बहाने वाली जैसलमेर की धरती ने इन विधाओं को परिपुष्ट करने वाले रचनाकारों को अंकुरित, पल्लवित और पुष्पित किया है। सदियों से प्रवहमान इन लोक सांस्कृतिक सरणियों के अनवरत प्रवाह के साक्षी व सृष्टा सृजनधर्मियों में नई पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर के रूप में श्री कन्हैया सेवक का नाम सम्मान से लिया जाता है। सन् 1977 में 25 दिसंबर को जन्म लेने वाले, पेशे से मूलतः शिक्षक कन्हैया सेवक कविता, गीत, भजन गायकी व भजन लेख में सिद्धहस्त हैं। जैसलमेर के सोनार दुर्ग में पहली प्रोल के अंदर रहने वाले कन्हैया सेवक हिन्दी व राजस्थानी में विभिन्न विधाओं में सृजन के लिए जाने जाते हैं।
विभिन्न कार्यक्रमों में माधुर्य बिखेरने वाले उनके भजनों का श्रवण हर किसी को आनंदित करने वाला होता है और यही कारण है कि जब कन्हैया सेवक भजन गायकी में रम जाते हैं तब रसिक सुमधुर भजन गंगा में गोते लगाते हुए अजीब से आनंद से भर उठते हैं। भजन गायकी की ही तरह उनका काव्य भी विभिन्न धाराओं का प्रतिनिधित्व करता है। राष्ट्रभक्ति से लेकर सम सामयिक भाव धाराओं, श्रृंगार से लेकर जीवन माधुर्य, आम आदमी की पीड़ाओं और संवेदनाओं पर उनकी रचनाएं हर कहीं सराही जाती रही हैं। उनकी रचनाओं में जिस उदात्त भावना के साथ परिस्थितियों, परिवेश और संवेदनाओं का चित्रण समाहित है वह उनके काव्य की अन्यतम विशेषता है। उनकेे जन्मदिन पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ....।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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