भरोसे लायक नहीं होते ये लोग ! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

भरोसे लायक नहीं होते ये लोग !


बहुधंधी, दीर्घसूत्री और कामचोर !!


कर्म के प्रति निष्ठा का भाव रखने वाले लोग ही सफलता प्राप्त कर पाते हैं। जिन लोगों में निष्ठा और कर्म के प्रति एकाग्रता का अभाव हुआ करता है वे न अपने काम ठीक से कर पाते हैं और न ही दूसरों के सौंपे हुए काम। आजकल हर क्षेत्र में कार्य संस्कृति का ह्रास देखने को मिल रहा है और उसका मूल कारण यही है कि जो लोग जिस काम मेंं लगे या लगाए हुए हैं उनमें कर्म के प्रति श्रद्धा और रुचि का अभाव है अथवा कमी है। ऎसे लोगों से किसी भी कर्म में समयबद्धता और गुणवत्ता की आशा और अपेक्षा रखना व्यर्थ ही नहीं बल्कि दिवास्वप्न देखने जैसा ही है। कर्म के प्रति एकाग्रता और एकतानता ही वह सर्वोपरि कारक है जिसके माध्यम से कोई भी कर्म अपनी परिपूर्णता और सफलता को प्राप्त करता है और अपने परवर्ती उद्देश्यों में सफलीभूत होता है। कर्म और कत्र्ता के बीच रुचि, श्रद्धा और एकाग्रता की भाव त्रयी मिलकर ही कर्म को आकार तथा कत्र्ता को श्रेय प्रदान करती है।

कर्म अपना हो या किसी और के द्वारा सौंपा हुआ अथवा समाज का, सभी कामों में इन्हीं कारकों का समावेश जरूरी है। अपना कर्म स्वयं करना दुनिया का सर्वोत्तम विचार और कर्म है लेकिन कई सारे काम ऎसे हुआ करते हैं जिनके लिए औरों की जरूरत पड़ती है। खासकर सार्वजनीन और सामाजिक महत्त्व एवं उपयोग के कामों में यह आवश्यकता होती ही है। कार्य सिद्धि के लिए कत्र्ताओं का चयन प्राथमिक जरूरत है और इसके लिए जिन लोगों को काम सौंपा जाना है उनका चयन बड़ी ही समझदारी के साथ करना चाहिए ताकि बाद मेें पछताना न पड़े। किसी भी काम को  समयबद्धता एवं परिपूर्णता देना चाहें तो ऎसे लोगों का चयन किया जाना चाहिए जो कार्य के प्रति दक्ष होने के साथ ही कार्य के प्रति रुचि रखने वाले हों। कार्य की पूर्णता के लिए जरूरी है कि जिन लोगोंं को काम सौंपा जाए वे कर्म के प्रति एकाग्रता वाले हों क्योंकि एकाग्रता कर्म की सफलता की पहली सीढ़ी है।

आजकल कई सारे कामों का इसलिए कबाड़ा हो रहा है कि इसे करने वालों में ऎसे-ऎसे लोग हैं जिनकी न रुचि है न एकाग्रता या श्रद्धा भाव। आजकल लोकप्रियता और प्रतिष्ठा पाने के चक्कर में आदमी की फितरत में यह आ गया है कि वह कम समय में हर कहीं टाँग फंसाये रखना चाहता है और हर काम में हाथ डाल देता है अथवा हर क्षेत्र का नुमाइंदा या झण्डाबरदार बनकर आगे बढ़ने की कोशिशों में जुटा रहता है। अपने इलाके में भी ऎसे खूब लोग हैं जो हर कहीं घुस जाते हैं और अपने आपको लोकप्रिय के रूप में स्थापित करने के लिए दिन-रात भिड़े रहते हैं। कुछ लोग तो कमाल के हैं। ये लोग हर क्षेत्र में अपनी किस्मत आजमाने के सपने देखते रहते हैं और फिर इनके लिए संसार का कोई विषय अछूता नहीं रहता। समाजसेवा, साहित्य, उपभोक्ता, पर्यावरण, शिक्षा, धर्म-अध्यात्म, कला-संस्कृति, खेलकूद से लेकर तमाम क्षेत्रों में फन आजमाते हुए हर कहीं पाए जाते हैं। इस किस्म के लोेगों के लिए किसी एक विषय में दक्षता की भले ही जरूरत न हो, ये सारे विषयों और क्षेत्रों में अपनी दखल रखने को ही अपनी महानता समझते हैं।

हालांकि यह भी सत्य है कि ये लोग कोई एक काम पूरा नहीं कर पाते हैं बल्कि जहां-जहां जिस-जिस काम में होते हैं वहां कुछ-कुछ अंशों में रहते हैं और वहां भी इन्हें चैन नहीं पड़ता। दूसरे ढेरों कामों की चिन्ता इन लोगों को हमेशा इतनी बनी रहती है कि ये कोई भी एक काम न तो समय पर पूरा कर पाते हैं और न ही इनके किसी एक कर्म में गुणवत्ता ही दिख पाती है। ऎसे बहुधंधी लोगों को कोई सा काम सौंपने का सीधा सा मतलब है काम का कबाड़ा कर देना। क्योंकि ये लोग मिथ्या लोकप्रियता के लिए किसी भी काम में जुड़ तो जाते हैं लेकिन इनका मन दूसरे कई सारे कामों में जुड़ा रहता है। ऎसे में ये काम के लिए न एकाग्र रह पाते हैं और न ही समय दे पाते हैं। खूब सारे लोग हर गाँव-शहर से लेकर महानगरों तक हैं जो हर किरदार में सामने नज़र आ जाते हैं और कहीं भी पूर्ण नहीं रह पाते। ऎसे बहुधंधी लोगों को कोई काम सौंपने से ज्यादा अच्छा यही है कि काम उन लोगों को सौंपा जाए जिनके पास कोई दूसरे काम न हों ताकि ये लोग अपने कर्म के प्रति एकाग्र रह पाएं।

इन्हीं की दूसरी किस्म उन लोगों की है जो दीर्घसूत्री हैं अर्थात हर काम को कल पर छोड़ते हैं और कम समय में हो सकने वाले कामों को भी बहुत दिनों तक टालने या देरी से करने के आदी हैं। तीसरी किस्म उन लोगों की है जो कामचोर हैं। काम से जी चुराने लोग और कामचोर जिस किसी काम में जुटते हैं वहाँ कोई काम कभी पूरा नहीं हो पाता बल्कि इस काम की पूर्णता हमेशा संदिग्ध ही रहती है। आजकल कामचोरों की जमात इतनी पसरी हुई है कि एक ढूँढ़ो हजार मिल जाते हैं। इन तीनों ही किस्मों के लोगों से कभी भी कोई अपेक्षा या आशा नहीं रखनी चाहिए और न ही इन लोगों को कोई काम सौंपना चाहिए। बहुधंधी, दीर्घसूत्री और कामचोर लोगों को कोई काम सौंपने से अच्छा है, उन लोगों को जिम्मेदारी सौंपे जिनके पास कोई दूसरे काम न हों तथा जिन पर कार्य की गुणवत्ता और समय पर पूर्णता का पक्का भरोसा हो।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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