घातक प्रदूषण से कम नहीं हैं ये !!
कहाँ क्या हो रहा है, क्यों हो रहा है और कौन किसलिए कर रहा है? इस प्रकार के प्रश्न हर किसी व्यक्ति के साथ पूरी जिन्दगी लगे रहते हैं। किसी के जीवन का यह सर्वोपरि एवं अहम् शौक ही हो जाता है तो किसी को अनचाहे भी इस प्रकार के प्रश्नोें के जवाब अपने पास रखने और निरन्तर अपडेट रहने की आदत ही पड़ जाती है। कई लोग हमारे आस-पास भी ऎसे ही होते हैं जिनके जीवन की सबसे पहली और प्रभावी आदत ही यह होती है कि इन्हें औरों के बारे में जानने की जिज्ञासा घर किए हुए रहती है और यह आदत इनके मरते दम तक उत्तरोत्तर संरक्षित, पुष्पित और पल्लवित होती रहती है। इस आदत का भान इनके मुर्दाल, सड़ियल व मनहूस चेहरों से अच्छी तरह प्रतिबिम्बित भी होता है। यों कहें कि ऎसे लोगों की जिन्दगी और चाही-अनचाही जिज्ञासाओं का साथ एक-दूसरे के पर्याय ही हो जाते हैं। एक जमाना वह था जब लोग अपने काम से काम रखते थे और उन्हें और किसी से बेवजह कोई मतलब था ही नहीं।
आजकल हालात बिल्कुल उलट हो गए हैं। आजकल हमें अपने से ज्यादा अपने आस-पास और अपने क्षेत्र में हो रही गुप्त और सार्वजनीन घटनाओं, दुर्घटनाओं को जानने की जिज्ञासा होती है और इन जिज्ञासाओं की पूर्ति के लिए हम किसी भी हद तक गिरने और घुसपैठ कर लेने की सारी क्षमताओं को आजमाते रहते हैं। हमारी मनःस्थिति ही ऎसी हो गई है कि हमें आत्मज्ञान और अपने भीतर या अपने बारे में जानने की कोई जिज्ञासा या उत्कण्ठा नहीं हुआ करती है। हमें दूसरों के बारे में सोचने-समझने और जानने तथा प्रतिक्रिया व्यक्ति करने से लेकर प्रचार और दुष्प्रचार में जो रस आता है वह अमृत से भी बढ़कर हुआ करता है। यही वजह है दिन उगने से लेकर नींद आने तक बहुसंख्य लोग इसी में रमे रहते हैं। साठ साल वाले बाड़े हों या बिना चहारदीवारी वाले बाड़े या फिर किसी भी किस्म के डेरे और अड्डे या चौरे-चौराहे, गलियाँ और चौबारे....।
सर्वत्र जिज्ञासाओं की पूर्ति के अनुष्ठान पूरे उत्कर्ष पर रोजाना दिखते ही रहते हैं। कुछ लोगों के लिए पूरा दिन और देर रात तक यही काम-काज रहता है तो कुछ के लिए डेरों पर बिताये जाने वाले कुछ घण्टों का यह जिज्ञासापूर्ति और अद्यतन होने का खेल चलता रहता है। कोई ढांणी, गांव-शहर, कस्बा और महानगर ऎसा नहीं है जहाँ ऎसे लोग न हों जिनकी आदत ही हो गई है औरों की जिन्दगी में झाँकने की, औरों के बारे में अपने भीतर उमड़-घुमड़ रही जिज्ञासाओं को शांत करने की। लोग महिलाओं को दोष देते हैं मगर आदमी लोग तो इससे भी दस कदम आगे हैं। जहाँ फुरसत मिली, मिल जाएंगे अपनी जमात के ऎसे लोगों के साथ जिनकी जिन्दगी के काफी क्षण औरों के बारे मेें चिंतन और मनन करने से लेकर प्रतिक्रियाओें की अजस्र धाराओं के प्रवाह में ही बीतने लगते हैं। कई आदमियों के बारे में तो साफ कहा सुना जाता है कि जमाने भर में ये ही वे लोग हैं जिन्हें पूरी दुनिया की चिंता है और ऎसे लोगों से दुनिया के किसी भी कोने की जानकारी ली जा सकती है और वह भी पक्की और पूरी।
ये लोग चाहें कहीं ड्यूटी करते हों या न करते हों, अपनी ड्यूटी से कहीं ज्यादा चिन्ता इन्हें अपनी जिज्ञासाओं के शमन की होती है और दिन भर इनके लिए यही काम अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शुमार होता है। इस किस्म के लोग अकेले हों या समूह में, इनका एकसूत्री कार्यक्रम और एजेण्डा यही होता है कि जितना ज्यादा बटोर सकें जमाने भर के बारे में बटोरते रहें ताकि जिज्ञासाएं कुछ हद तक शांत हो जाएं और वे अपने हुनर के सिकंदर बने रहें। जो लोग औरों के बारे में बेवजह फालतू जानने की कोशिशों में जुटे रहते हैं वे न अपने दफ्तर, दुकान या प्रतिष्ठान में सुखी एवं शांत रह सकते हैं न इनकी पारिवारिक जिन्दगी में सुख रह पाता है। ऎसे लोगों का दिमाग फालतू बातों का घर होता है और हृदय में मलीनताओं के ज्वार हमेशा उफनते रहते हैंं। इस वजह से इनके घर-परिवार वालों से लेकर अच्छे लोग इनसे हमेशा दूरी बनाए रखते हैं। दूसरी ओर इन्हीं की किस्म के लोगों का इनसे जबर्दस्त जुड़ाव और खिंचाव रहता है और इस कारण इस प्रजाति के लोगों के समूह जल्दी-जल्दी बन जाते हैं और वर्षों तक स्थायी रहकर एक-दूसरे को जीवन निर्वाह के लिए फालतू बातों और रहस्यों के अनावरण से उपजने वाले सुख का सुकून भरा जीवन रस देते रहते हैं।
अपने इलाके में भी ऎसे खूब लोग हैं जिनका काम ही औरों की जिन्दगी में झाँकने, उनके बारे में हर जानकारी रखने और सोचने में लगा रहता है। ये लोग अपने और अपने परिवार के बारे में भले ही कुछ न सोचें, मगर औरों के बारे में सोचने के लिए पूरी जिन्दगी खपा देते हैं। इस किस्म के लोगों को नई जानकारियों और रहस्यों का उद्घाटन करने में इतना मजा आता है जितना राहु-केतु को समुद्र मंथन के बाद अमृतपान करने में भी नहीं आया होगा। असल में देखा जाए तो ये ही लोग समाज के राहु-केतु हैं जिनकी जिन्दगी औरों के बारे में फिजूल की बातें सुनने और करने में लगी रहती है। बात सिर्फ औरों के बारे में ही नहीं है बल्कि हम लोग यह भी चाहते हैं कि हमारे आस-पास, समुदाय या क्षेत्र में जो कुछ घटित हो रहा है या होने जा रहा है उन सभी के बारे में हमें जानकारी होनी चाहिए, भले ही उस जानकारी का हमसे कोई दूर का रिश्ता तक न हो।
इसी तरह की फिजूल की जानकारियां पाने और अपने पास संग्रहित रखने की यह मनोवृत्ति ही हमारे लिए सर्वाधिक घातक हुआ करती है। मनुष्य की यह प्रवृत्ति जमाने भर के तमाम प्रदूषणों से कहीं ज्यादा और सीधी मारक होती है और इसका पूरा दुष्प्रभाव ऎसे लोगों की जिन्दगी पर पड़े बिना रहीं रहता है। फालतू की बातों, कामों या घटनाओं तथा हलचलों के बारे में गंभीर नहीं रहने वाले लोग अपने काम में मस्त रहते हैं और जिन्दगी के पूरे आनंद लेते हैं। इन लोगोें के पास ताजगी बनी रहती है और यह ताजगी ही उन्हें अपने व्यक्तित्व और कर्तृत्व के प्रति आशातीत सफलताओं की डगर दिखलाती रहती है। इसलिए जीवन जीने की कला का पहला पाठ यही है कि जिन विषयों या वस्तुओं का हमसे किसी भी प्रकार का कोई सरोकार नहीं है उनके बारे में जानने, सोचने और समझने या पाने की किसी भी प्रकार की चेष्टा कभी न करें।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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