बापू की बात
विलायत मंे जब महात्मा गांधी थे तब तक वे विश्व-प्रसिद्ध हो चुके थे। उनके विचारों का मूल्य था। कार्यों का महत्व था। एक दिन एक छात्र ने उनसे पूछा-‘बापू ! आप शराब पीने वाले आदमी से घृणा करते हैं ? बापू ने उŸार दिया-‘बुराई शराब में है। आदमी में नही। इसलिए घृणा शराब से होनी चाहिए, आदमी से नहीं। घृणा दुर्गुण से होनी चाहिए।
एक दिन एक आदिवासी जो प्रायः समुद्र तट पर आजीविका की खोज में घूमता-फिरता था, अमेरिकन अधिकारियों के सामने उपस्थित हुआ। उसने वह जैकेट अधिकारियों के सामने टेबिल पर रख दी और कहा - ‘कृपया देख लीजिए। इसमें की वस्तुएं सही-सलामत हैं कि नहीं।’ अधिकारियों ने जैकेट की जेबें उलट कर देखों। उनमें से जगमगाते हुए हीरे टेबिल और फर्श पर बिखर गये।यह देखते ही वह आदिवासी जैसे आया था पलटकर वैसे ही चल पड़ा- निर्लोभ, निरपेक्ष और असंग।
अधिकारियों ने उसे रोककर उसका नाम-धाम जानना चाहा, उसे पुरस्कार दना चाहा। किन्तु वह आदिवासी ठहरा नहीं। चलता ही बना। क्या करना था अब उसे वहां ठहरकर ? वे ठीकरे ही उसे यदि चाहिए होते तो वह हीरे ही फिर क्यों लौटाता ? उसे कुछ नहीं चाहिए था। जो कुछ उसके पास था, वह तो बड़े-बड़े संसार त्यागी संन्यासी-साधुओं के पास भी नहीं होता शायद। उसके पास संतोष, निर्लोभ तथा अस्तेय की महामूल्यवान निधि जो थी ! उस निधि के समक्ष चांदी के चन्द ठीकरों की क्या विसात ?
- आचार्य सम्राट् श्री देवेन्द्र मुनि जी म.
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