राष्ट्रपति शासन के कगार पर झारखंड. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 24 दिसंबर 2012

राष्ट्रपति शासन के कगार पर झारखंड.


झारखंड में ग्यारह सितंबर, 2010 को गठित अजरुन मुंडा सरकार का 28 माह का कार्यकाल ग्यारह जनवरी 2013 को पूरा हो रहा है. वर्ष 2000 में गठन के बाद 12 वर्ष में आठ सरकारें और दो बार राष्ट्रपति शासन देख चुका खनिज संपदा से परिपूर्ण झारखंड राज्य वर्ष 2012 बीतते बीतते गठबंधन सरकार में शामिल दलों के बीच नेतृत्व संभालने को लेकर चल रही रस्साकशी के चलते एक बार फिर राष्ट्रपति शासन के कगार पर खड़ा दिख रहा है.

झारखंड में ग्यारह सितंबर, 2010 को गठित अजरुन मुंडा सरकार के उसी दिन से उसकी प्रमुख गठबंधन सहयोगी झारखंड मुक्ति मोर्चा सत्ता संभालने को आतुर है जबकि भाजपा नेतृत्व इसके लिए तैयार नहीं है. सितंबर, 2010 में राज्य की बागडोर तीसरी बार भाजपा नेता अजरुन मुंडा ने संभाली. लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन पिछले वर्ष से ही यह बयान देने लगे कि उनकी पार्टी ने भाजपा के साथ राज्य की सत्ता की बागडोर आधे आधे समय के लिए संभालने का समझौता किया था जिसके अनुसार राज्य की वर्तमान विधानसभा के शेष 56 माह के कार्यकाल में भाजपा और झामुमो को 28-28 माह के लिए सत्ता संभालनी है.

शिबू सोरेन के इन बयानों पर पहले किसी ने ध्यान नहीं दिया लेकिन इस वर्ष अगस्त, सितंबर और अक्तूबर में उनके ऐसे बयानों से राज्य सरकार परेशान हो गई. शिबू सोरेन ने पांच अक्तूबर को कहा कि झामुमो केन्द्र की संप्रग सरकार को अपना समर्थन जारी रखेगा। फिर सात नवंबर को सोरेन ने राज्य में सत्ता परिवर्तन की तिथि की घोषणा कर दी. उन्होंने साफ कहा कि जनवरी 2013 में या तो भाजपा राज्य सरकार का नेतृत्व झामुमो को दे या वह भाजपा के अजरुन मुंडा के नेतृत्व वाली वर्तमान सरकार से अपना समर्थन वापस ले लेंगे.

वर्ष 2011 में राज्य में 28 माह बाद सत्ता परिवर्तन की सोरेन की मांग का उनके ही बेटे और राज्य सरकार में उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने समर्थन नहीं किया और स्पष्ट कह दिया कि उनकी जानकारी में ऐसा कोई समझौता भाजपा के साथ नहीं हुआ था. लेकिन इस बार हेमंत सोरेन ने सुर बदलते हुए कहा दिया ‘गुरूजी जो बोल रहे हैं वह ठीक ही होगा और जनवरी में राज्य में सरकार का नेतृत्व झामुमो ही संभालेगा.’

दोनों प्रमुख गठबंधन दलों भाजपा और झामुमो के बीच चल रही इस रस्साकशी के चलते राज्य में सरकारी मशीनरी लगभग ठप हो गई. छह नवंबर को मुख्यमंत्री अजरुन मुंडा ने कहा कि राज्य में अधिकारियों को विकास कायरें को द्रुत गति से बढ़ाते रहना चाहिए. विकास कार्य पर इस बात का असर नहीं पड़ना चाहिए कि सत्ता किसकी है. मुख्यमंत्री ने जहां सत्ता में भागीदारी के मुद्दे पर चुप्पी साधे रखी वहीं भाजपा के वरिष्ठ नेता और हजारीबाग से सांसद यशवंत सिन्हा ने ग्यारह नवंबर को कहा कि भाजपा नेतृत्व ने झामुमो के साथ 28-28 माह में सत्ता परिवर्तन का कोई समझौता नहीं किया था.

दोनों गठबंधन सहयोगियों में तकरार का लाभ उठाते हुए कांग्रेस के झारखंड प्रभारी और राष्ट्रीय प्रवक्ता शकील अहमद ने 18 नवंबर को कहा कि भाजपा और झामुमो को स्पष्ट करना चाहिए कि दोनों में से कौन सच बोल रहा है.अभी पिछले सप्ताह 15 दिसंबर को भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने कहा कि राज्य में अजरुन मुंडा की सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी और जनवरी, 2013 में सरकार के नेतृत्व में कोई परिवर्तन नहीं किया जायेगा.

भाजपा के झारखंड प्रभारी हरेन्द्र प्रताप ने तो यहां तक कह दिया कि यदि झामुमो में नयी सरकार के गठन के लिए ज्यादा छटपटाहट है तो वह राज्यपाल के पास जाकर वर्तमान सरकार से अपना समर्थन वापस ले ले. इस बयान के आते ही जैसे राज्य में भूचाल आ गया और झामुमो ने इसका कड़ा प्रतिवाद किया. खुदरा व्यापार के क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के मामले में झामुमो ने संसद में हुए मतदान में केन्द्र की संप्रग सरकार का समर्थन किया. उसके लोकसभा सांसद कामेर बैठा ने ग्यारह दिसंबर को लोकसभा में एफडीआई पर हुए मतदान के दौरान संप्रग सरकार के समर्थन में मतदान किया जिस पर भाजपा और राजग ने कड़ी प्रतिक्रिया की.

अपनी प्रतिक्रिया में झामुमो नेता और उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा कि मार्च, 2010 में उनके पिता शिबू सोरेन के केन्द्रीय बजट पर संसद में भाजपा के लाये गये कटौती प्रस्ताव के खिलाफ मतदान करने पर ही झारखंड में भाजपा ने उनके नेतृत्व वाली सरकार से समर्थन वापस ले लिया था जिससे दिसंबर, 2009 में गठित सरकार छह माह का कार्यकाल भी पूरा करने से पहले ही गिर गयी थी. उन्होंने भाजपा नेतृत्व को चुनौती दे डाली कि यदि उनमें नैतिकता है तो अब वह एफडीआई मामले में वैसी ही स्थिति पैदा होने पर झामुमो का साथ त्याग कर राज्यपाल के पास जाकर अपनी सरकार का इस्तीफा दे दें.

मुंडा ने भाजपा की 21 दिसंबर को रामगढ़ में आयोजित हुंकार रैली में कहा कि 28 -28 माह के लिए राज्य सरकार का नेतृत्व बदलने की बात कह कर झामुमो राज्य को एक बार फिर राष्ट्रपति शासन की ओर धकेल रहा है.

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