स्ट्रासबर्ग स्थित यूरोपीय संसद ने भारत में जातीय भेदभाव के खिलाफ हाल में एक निंदा प्रस्ताव पारित किया है। संसद ने कहा है कि कानूनी प्रतिबंध के बावजूद वहां हाथ से मैला ढोने की प्रथा लगातार जारी है। इंटरनेशनल दलित सॉलिडरिटी नेटवर्क (आईडीएसएन) ने कहा है कि यह प्रस्ताव 13 दिसम्बर को पारित हुआ। यूरोपीय संसद की वेबसाइट पर भारत और कांगो में मानवाधिकार की स्थितियों पर प्रस्ताव उपलब्ध हैं।
यूरोपीय संसद ने माना है कि भारत में जातीय भेदभाव समाप्त करने के लिए काफी कुछ किया गया है। लेकिन संसद ने हरियाणा में बलात्कार के मामले और तमिलनाडु में हिंसा (जिसमें 1,000 से अधिक दलित बेघर हो गए थे) जैसी हाल की घटनाओं का भी जिक्र किया है।
सदस्यों ने कहा है कि जो कानून दलितों की दशा सुधार सकता है, उसमें कोई सफलता नहीं मिल पाई है। जबकि दलित, देश की आबादी में एक-चौथाई हिस्सेदारी रखते हैं। प्रस्ताव में कहा गया है कि यूरोपीय संसद दलितों के खिलाफ प्रकाशित और अप्रकाशित उत्पीड़नों से चकित है।
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