बड़ा दिन देता यही संदेश !!
पुरी दुनिया आज बड़ा दिन मना रही है और सर्वत्र इसी का उल्लास हिलोरें ले रहा है। इस उत्सवी आनंद में हर कोई खो जाना चाहता है। सांता क्लॉज के उपहार हों या प्रभु यीशु की कृपा या अपने भीतर उमड़ रही उल्लास की सरिताएँ.....। इन सभी में बडे़ दिन का जो प्रभाव और प्रवाह बना हुआ है, वह यदि साल भर बरकरार रहे तो यह दुनिया ही स्वर्ग बन जाए। मानव जीवन की विभिन्न कही-अनकही विषमताओं, पीड़ाओं और तमाम तरह की समस्याओं के बीच जीवनी शक्ति का संचार करने और सम-सामयिक वैषम्य की पीड़ाओं का अहसास क्षीण करने में ये उत्सवी माहौल काफी मददगार सिद्ध होते हैं। इन्हें मनाने के तौर-तरीकों से लेकर आमजन की सहभागिता और उदात्त परम्पराओं का जो दृश्य उपस्थित होता है वह पूरे परिवेश के लिए आनंद व सुकून की वृष्टि करने वाला होता है। बड़ा दिन सिर्फ एक दिन के उल्लास की अभिव्यक्ति में ही सिमट कर रह जाने वाला उत्सवी दिवस नहीं है बल्कि यह दिन वस्तुतः मानव कल्याण व सृष्टि की सेवाओं के लिए बहुत कुछ करने की दृष्टि से बड़े-बडे़ और व्यापक प्रभाव स्थापित करने वाले संकल्प लेने का दिन है।
और कुछ नहीं तो किसी भी तरह का एक अच्छा संकल्प हम इस दिन लें व पूरे समर्पण तथा दृढ़ इच्छाशक्ति के साथ इसकी पूर्णता के लिए प्रयास करें। अपनी ऊर्जा और सामथ्र्य को देखकर अपने बंधुओं-भगिनियों, अपने क्षेत्र के जरूरतमंद लोगाें की सेवा का व्रत लेकर उस दिशा में काम करना शुरू कर दें। अपने इलाके, देश और दुनिया की वहबूदी के लिए जिन लोगों ने अतीत में बड़े संकल्प लेकर बड़े-बड़े परिवर्तनों से साक्षात कराया और दुनिया में नाम कमा गए, वे लोग भी हमारी ही तरह अपनी ही प्रजाति के ही थे। इनमें भी वे ही क्षमताएँ थीं जितनी प्रभु ने हमें दी है। अंतर सिर्फ इतना था कि उनकी निगाहें आक्षितिज पसरे हुए संसार और दुनिया के लोगाें की तरफ थी और हमारी दृष्टि परिधि अपने घर-परिवार व मोहल्ले या क्षेत्र से बाहर नहीं। वे लोग जमाने के लिए जीते व मरते थे और उनके मन में यही था कि दुनिया को कुछ देकर जाएं। उन्हीं की तरह हम भी आसमानी ऊँचाइयों को देखें, वैश्विक व सार्वजनिक सोच रखें और संकल्प लेकर समर्पण भाव से जुट जाएं तो हम भी वे सारे महान काम कर सकते हैं जो हमारे पुरखे कर गए, जिन्हें हम आज भी गर्व और गौरव के साथ याद करते हैं।
समाज में संसाधनों की कोई कमी नहीं है। आज समाज को सेवा की आवश्यकता है। पीड़ित मानवता की सेवा ही युगीन जरूरत है और एक मात्र सेवाव्रत को ही जीवन में अंगीकार कर लिया जाए तो इसी से आत्म आनंद और ईश्वर दोनाें की प्राप्ति एक साथ हो जाना पूर्ण संभव है, और वह भी अत्यंत सहजता से। इस शाश्वत सत्य को जो अन्तर्मन से जान लेता है उसके इहलोक और परलोक दोनों सुधर जाते हैं। इस दृष्टि से विभिन्न सेवा मिशनों व मिशनरियों के सेवा व्रत वास्तव में सराहनीय कहे जा सकते हैं जिनमे मैत्री, करुणा, दया और मानवीय मूल्यों का साकार स्वरूप स्वयमेव मूर्तिमान होता दिखाई पड़ता है। यह भी सच है कि सेवा से ही हमारे उपनिषदों में वर्णित ब्रह्म वाक्यों ‘तत्वमसि’ और ‘आत्मवत सर्वभूतेषु’ को साकार किया जा सकता है। यह सेवा व्रत ही हमें एकात्मता, समरसता और जगत के प्रति चरम संवेदनशीलता के साथ जगदीश्वर की अहैतुक कृपा अनुभव करा कर आत्म साक्षात्कार का मार्ग दर्शा देता है।
प्रभु यीशु ने प्राणीमात्र की सेवा और परोपकार का जो उपदेश दिया है वह आज की दुनिया के उद्धार का सर्वोपरि मूल मंत्र है। आज धन-वैभव और संसाधनों की हर कहीं भरपूर उपलब्धता के बावजूद आदमी के भीतर से सेवा भाव गायब है। ऎसे में सृष्टि के तमाम संसाधनों का न कोई प्रभावी उपयोग है न औचित्य। प्रत्येक कर्म में सभी पक्षों के बीच आत्मीय जुड़ाव उदात्तता के साथ पूर्ण संवेदनशीलता का होना नितांत जरूरी है और इसी धरातल पर उतर कर ही सेवा व्रत को पूर्ण सफल व अविस्मरणीय बनाया जा सकता है। सरकारी, अद्र्ध सरकारी व गैर सरकारी क्षेत्रों से लेकर सामाजिक स्तर या स्वयंसेवी संगठनों की गतिविधियों की बात हो, सुविधाओं और संसाधनों से लेकर योजनाओं व कार्यक्रमों की कोई कमी नहीं है। असंख्य अवसर हैं मगर इसके लिए राह दिखाने वाले, लाभ दिलवाने वाले और इन क्षेत्रों से जुडे़ नुमाइन्दों में यदि केवल सेवा भावना का ही समावेश हो जाए तो स्वर्ग को हम धरती पर उतार ला सकते हैं।
पर ऎसा असंभव तो नहीं मुश्किल जरूर है क्योंकि अब सेवा अपने अर्थ बदलती जा रही है। सेवा और स्वार्थ परस्पर घोर विरोधाभासी हैं इसीलिए जैसे-जैसे स्वार्थ का प्रवेश होता रहेगा, वैसे-वैसे सेवा भावना अपने आप पलायन करती जाएगी। आज हमारे कर्म में स्वार्थ को तिलांजलि देकर सेवा को अंगीकार करने की जरूरत है। आम जनजीवन और हमारे कर्म में सिर्फ निष्काम सेवा का भाव जिस दिन जग जाएगा वह दिन युग परिवर्तन की नींव को समर्पित होगा। आज का बड़ा दिन इसी भावना का प्रतीक है कि सेवा से ईश्वर को पाने की यात्रा का आरंभ करें। इसके साथ यह भी संदेश देता है कि जो बड़े हैं वे बडप्पन छोड़ें और जो छोटे हैं वे हीनता को। प्रभु यीशु ने जगत कल्याण व मानवता की सेवा में जा संदेश समर्पित किए हैं उन्हें आधार बना कर जीवन की दिशा और दशा तय करें, संसार की दशा अपने आप बदल जाएगी। सभी को बड़े दिन की हार्दिक मंगलकामनाएँ। मेरी क्रिसमस......
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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