चीनी अखबार ने की भारतीय प्रणाली की आलोचना - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

Breaking

प्रबिसि नगर कीजै सब काजा । हृदय राखि कौशलपुर राजा।। -- मंगल भवन अमंगल हारी। द्रवहु सुदसरथ अजिर बिहारी ।। -- सब नर करहिं परस्पर प्रीति । चलहिं स्वधर्म निरत श्रुतिनीति ।। -- तेहि अवसर सुनि शिव धनु भंगा । आयउ भृगुकुल कमल पतंगा।। -- राजिव नयन धरैधनु सायक । भगत विपत्ति भंजनु सुखदायक।। -- अनुचित बहुत कहेउं अग्याता । छमहु क्षमा मंदिर दोउ भ्राता।। -- हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता। कहहि सुनहि बहुविधि सब संता। -- साधक नाम जपहिं लय लाएं। होहिं सिद्ध अनिमादिक पाएं।। -- अतिथि पूज्य प्रियतम पुरारि के । कामद धन दारिद्र दवारिके।।

सोमवार, 31 दिसंबर 2012

चीनी अखबार ने की भारतीय प्रणाली की आलोचना


दिल्ली दुष्कर्म पर मचे बवाल पर चीन के एक प्रभावशाली अखबार ने अपनी आलोचनात्मक टिप्पणी में कहा है कि भारत का "अक्षम और विषम लोकतंत्र" सामाजिक बुराइयों का हल मुहैया नहीं करा सकती। दिल्ली दुष्कर्म पीड़िता की मौत के बाद ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, "भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था जाहिर तौर पर इस प्रकार की समस्याओं का हल नहीं करती, बल्कि इन्हें वैधानिकता प्रदान करती है।" अखबार के लिए लिन सू ने अपने लेख में लिखा है, "भारतीय लोकतंत्र अब कुछ चुनींदा कुलीनों और हितसाधक समूहों के हाथों की कठपुतली हो कर रह गई है। इसी ने देश में मौजूदा विरोध प्रदर्शनों और अगस्त महीने में भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को बल दिया।" सू ने नई दिल्ली की सड़कों पर चल रहे प्रदर्शन को चीन के लिए एक सबक बताया है।


लेखक ने कहा है, "छह दशक पहले चीन और भारत समान विकास दर वाले देश थे, लेकिन चीन के सुधार कार्यक्रम शुरू करने और खुलापन लाने के बाद दोनों में भारी अंतर आ गया। विश्लेषण करने पर पता चलता है कि आर्थिक विकास के लिहाज से भारत, चीन से एक दशक पीछे और सामाजिक विकास के लिहाज से तीन दशक पीछे है।"  लेख में यह भी कहा गया है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश भारत को पश्चिम में इसकी व्यवस्था के कारण अत्यंत संभावनाशील की निगाह से देखा जाता है। लेकिन, एक अक्षम और विषम लोकतंत्र इस संभावना का दोहन करने में सक्षम नहीं होता।



भारत सरकार की आलोचना धीमी प्रतिक्रिया के लिए की जाती है और देश की कानून लागू करने वाली पद्धति लापरवाह मानी जाती है। अखबार ने लिखा है कि भारत में अदालतों तक पहुंचे दुष्कर्म के मामलों में 26 प्रतिशत में ही सजा हो पाती है। इसके अलावा देश की महिलाओं को दोयम दर्जे का बनाने वाली परंपरागत समाजिक संस्कृति की निंदा की जानी चाहिए।



लोकतंत्र राष्ट्रीय राजनीति और सरकार की निगरानी में लोगों की प्रभावी भागीदारी सुनिश्चित करे। प्रभावी लोकतंत्र का दायरा चुनावी राजनीति से कहीं ज्यादा बड़ा होता है। अपने धुर विचारों के लिए माने जाने वाले ग्लोबल टाम्स ने नई दिल्ली में 2011 में 572 दुष्कर्म की घटनाओं का आंकड़ा पेश करते हुए कहा है कि बीते 40 सालों में देश में दुष्कर्म की घटनाओं में सातगुनी वृद्धि हुई है।

कोई टिप्पणी नहीं: