विषमताओं को चुनौतियां मानें !!!
हमारी अधिकांश जिन्दगी असुरक्षा के भय से घिरी रहती है। इस वजह से हम सदैव किसी न किसी प्रकार के भय, शंकाओं, भ्रमों और आशंकाओं से घिरे रहने के आदी हो गए हैं। फकीरी में जीने वाले बिरले लोगों को छोड़ दिया जाए तो सभी प्रकार के लोग जीवन में अक्सर किसी न किसी भय को भावी मानकर उसके बारे में निरन्तर सोचना शुरू कर देते हैं। हमारे जीवन में आए दिन बेवजह बन जाने वाली यही सोच जीवन के आकर्षण, आनंद और संतोष को लीलती रहती है और हमारा ज्यादातर समय उन बातों के बारे में सोचने, चिंता करने और भयग्रस्त होने का आदी हो जाता है जिनका कोई वजूद है ही नहीं। हमें यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि जो भावी घटनाएं सामने आ सकती हैं वे अपने जीवन के लिए चुनौतियां ही होती हैं और मनुष्य के रूप में हमें उन चुनौतियों का अच्छी तरह मुकाबला करते हुए रास्ता निकालना होता है तभी तो भगवान ने खूब सोच समझ कर हमें मनुष्य बनाया है, नहीं तो उसके पास क्या कमी थी दूसरी योनियों की। मनुष्य योनि हमें ही क्यों दी गई है? यह हमारे चिंतन का मुख्य विषय है और हमेशा होना भी चाहिए।
जिन आशंकाओं और अनहोनियों को हम भय मानकर उनसे डरते हैं वे सृष्टि के आदिकाल से होती आ रही हैं और इन पर मनुष्य ही विजय प्राप्त करता रहा है। अब इन पर विजय पाना और अधिक आसान हो गया है क्योंकि हमारी सहायता के लिए मशीनी और दूसरे प्रकार के वे संसाधन भी उपलब्ध हैं जिनमें हमारी शारीरिक क्षमताओं की बजाय रिमोट से संचालित करना मात्र ही होता है। ऎसे में दुनिया की बड़ी से बड़ी चुनौतियां अब बौनी होती जा रही हैं और इनका सीधा सा लाभ मनुष्य, समुदाय और विश्व को प्राप्त हो रहा है। व्यक्तिगत जिन्दगी से लेकर सामुदायिक जीवन हो या फिर वैश्विक परिवेश, सर्वत्र अब जिन्दगी आसान हो गई है और वह स्थितियां हमारे सामने हैं जिनमें भय या भावी अनिष्ट जैसी हर प्रकार की संभावनाओं को निर्मूल करने का सामथ्र्य हमारे हाथों में है। रोजमर्रा की जिन्दगी में हमारे सामने कई चाहे-अनचाहे हालात आते हैं। कई बार हमारे मन की सोची होती है और कई बार अनचाही भी हो जाती है। इन स्थितियों में भावी के प्रति असुरक्षा होना स्वाभाविक है और तब मन-मस्तिष्क भय से भर जाता है और इसका विपरीत प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है।
आज के दौर में अधिकांश व्यक्तियों की शारीरिक व्याधियों का मूल कारण अज्ञात भय की भावना है। चाहे फिर वह घर-परिवार या काम-धंधे को लेकर हो, जमीन-जायदाद और संबंधों के मामले में हो या फिर यश-प्रतिष्ठा की दिनों दिन बढ़ती जा रही भूख की। इन सारे मामलों से जुड़ा भय भी हो तो वह बेकार है। हर व्यक्ति को यह आकलन करना चाहिए कि उसने पूरे जीवन में जितनी बार भय को स्वीकारा उतनी बार भय निष्प्रभावी और काल्पनिक ही रहा और बाद में जाकर यह अहसास अपने आप होता रहा कि हमने बिना किसी वजह से भय मान लिया था। यह बेतुका और आधारहीन भय ही एकमात्र कारण है जिसकी वजह से आदमी अपने जीवन के सारे आनंदों से दूर होता जा रहा है और हालत ये है कि आदमी अपने पास जीवनानंद के सारे संसाधन और सुकूनदायी परिवेश होने के बावजूद दुःखी, विषादग्रस्त और सशंकित रहने लगता है।
भय की सम्पूर्ण काल्पनिकता को त्यागें और भावी घटनाओं तथा दुर्घटनाओं, चाहे या अनचाहे कामों को कर्मयोग का हिस्सा मानें और सभी प्रकार की भावी गतिविधियों को चुनौतियों के रूप मेें स्वीकारते हुए इन पर विजय पाने के लिए पूरे उत्साह, एकाग्रता एवं समर्पण के साथ काम करें। ऎसा होने पर ही भय की आशंकाएं और भ्रम समाप्त हो पाएंगे और जीवन में प्रत्येक क्षण पर भविष्य की गतिविधियों का प्रवाह अपने सुकून के लिए मोड़ने का रास्ता निकलता रहेगा। जीवन में दृढ़ इच्छाशक्ति और संकल्पों साथ जब हम भय को त्याग कर चुनौतियों पर विजय के आमंत्रण को स्वीकार कर लेते हैं तब हमारे जीवन से भय पलायन कर जाता है और उसका स्थान ले लेता है चुनौतियों पर सहजता एवं सरलतापूर्वक विजय का निरन्तर चलने वाला विजय अभियान। जीवन का कोई संघर्ष ऎसा नहीं होता जिसमें आदमी के पास विजय की अनंत संभावनाएं और अपार ऊर्जाएं न हों। जरूरत तो सिर्फ और सिर्फ अपनी मानसिकता को बदल कर सकारात्मक करने भर की है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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