उच्चतम न्यायालय ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बगैर परीक्षण वाली दवाओं के गैरकानूनी तरीके से लोगों पर किए जा रहे परीक्षणों को रोकने में विफल रहने के लिए केन्द्र सरकार की आज तीखी आलोचना की और कहा कि इस तरह के परीक्षण देश में तबाही ला रहे हैं और इस वजह से अनेक नागरिकों की मौत हो रही है।
न्यायमूर्ति आर एम लोढा और न्यायमूर्ति अनिल आर दवे की खंडपीठ ने आज अपने अंतरिम आदेश में कहा कि देश में सभी क्लीनिकल परीक्षण केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य सचिव की निगरानी में ही किये जायेंगे।
न्यायाधीधों ने कहा कि इस मसले पर सरकार गहरी नींद में सो रही है और वह गैरकानूनी तरीके से क्लीनिकल परीक्षण करने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों के इस धंधे को रोकने के लिये समुचित तंत्र स्थापित करने में विफल हो गई है। न्यायाधीशों ने कहा कि आपको देश के नागरिकों के स्वास्थ्य की रक्षा करनी है। यह आपका कर्तव्य है। मौतों पर अंकुश लगना चाहिए और गैरकानूनी परीक्षण बंद होने चाहिए। न्यायालय ने कहा कि सरकार को इस पर तत्काल नियंत्रण लगाना चाहिए।
न्यायालय ने सरकार को उस समय आड़े हाथ लिया जब उसने यह दलील दी कि इस मसले पर गौर करने के लिए कई समितियां गठित की गयी हैं और वह इनके सुक्षाव मिलने के बाद न्यायालय को सूचित करेगी। इस पर न्यायाधीशों ने कहा, आप न्यायालय के पास तो वापस आ सकते हैं लेकिन उन व्यक्तियों का क्या होगा जो इस तरह के क्लीनिकल परीक्षणों में अपनी जान गंवा चुके होंगे। इस तरह से जान गंवाने वाले व्यक्ति तो वापस नहीं आ सकते हैं।
न्यायाधीशों ने कहा कि किसी समिति या आयोग का गठन करना बहुत आसान है। यह तो सिर्फ लोगों का ध्यान बांटने के लिये किया जाता है। महत्वपूर्ण मुद्दों से ध्यान बांटने का यह सबसे अच्छा तरीका है।
न्यायालय ने कहा कि सरकार का हलफनामा उसके पहले के आदेश के अनुरूप नहीं है। न्यायालय ने यह भी कहा कि सरकार उसके सवालों का जवाब देने से कतरा रही है।
शीर्ष अदालत ने गत वर्ष आठ अक्टूबर को विभिन्न कंपनियों की दवाओं के मनुष्यों पर कथित रूप से किये जा रहे परीक्षणों के बारे में केन्द्र और राज्य सरकारों से जवाब तलब किये थे। न्यायालय ने केन्द्र सरकार से ऐसे परीक्षणों के कारण होने वाली मौतों,यदि कोई हो, और इसके दुष्प्रभावों तथा पीडिम्त या उनके परिवार को दिये गये मुआवजे ,यदि दिया गया हो, के बारे में विवरण मांगा था।
न्यायालय ने यह निर्देश स्वास्थ्य अधिकार मंच नामक गैर सरकारी संगठन की जनहित याचिका पर दिया था। इस याचिका में आरोप लगाया गया था कि देश में बड़े पैमाने पर विभिन्न दवा कंपनियां भारतीय नागरिकों पर दवाओं के परीक्षण कर रही हैं। न्यायालय ने इस याचिका पर कोई विस्तृत आदेश देने की बजाय पहले ऐसे परीक्षणों के बारे में केन्द्र सरकार से जवाब तलब किया था।
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