संस्कृत का श्लोक है:
विभुक्षिता किं न करोति पापम्, क्षीणाः जनाः निष्करुणा भवन्ति
त्वं गच्छ भद्रे प्रियदर्शनाय,न गंगदत्तः पुनरेति कूपम्
अर्थात विपत्ति के समय धैर्य ,बुद्धि और विवेक से काम लेना चाहिए।
मनुस्मृति 6/९२ में कहा गया है
धर्म शब्द संस्कृत की ‘धृ’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है धारण करना । परमात्मा की सृष्टि को धारण करने या बनाये रखने के लिए जो कर्म और कर्तव्य आवश्यक हैं वही मूलत: धर्म के अंग या लक्षण हैं । उदाहरण के लिए निम्न श्लोक में धर्म के दस लक्षण बताये गये हैं :
धृति: क्षमा दमो स्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह:
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्म लक्षणम्
विपत्ति में धीरज रखना, अपराधी को क्षमा करना, भीतरी और बाहरी सफाई, बुद्धि को उत्तम विचारों में लगाना, सम्यक ज्ञान का अर्जन, सत्य का पालन ये छ: उत्तम कर्म हैं और मन को बुरे कामों में प्रवृत्त न करना,चोरी न करना, इन्द्रिय लोलुपता से बचना, क्रोध न करना ये दस उत्तम अकर्म हैं । विपत्ति किसके जीवन में नहीं आती ? जीवन के कई चेहरों में से एक विपत्ति भी है ,जीवन में संघर्ष ही जीवन की सच्चाई है ,पर जब भी विपत्ति आती है,चाहे वो किसी भी रूप में आये जैसे रोग ,दुर्घटना,भावनात्मक ,परिजन की मृत्यु,प्राकृतिक विपदा,मानसिक आघात,उसकी इच्छाएं आकान्शाएं पूरी नहीं हों आदि मनुष्य इन्हें विपत्ति मानता है, ऐसे समय में इंसान विवेक खोने लगता है ,स्वभाव में क्रोध और चिडचिडापन आ जाता है.सोचने समझने की शक्ति क्षीण हो हाती है,मनुष्य विचलित हो जाता है, बेसब्री में सही निर्णय लेना व् उचित व्यवहार असंभव हो जाता है.उसका व्यवहार भी सामान्य नहीं रहता ,लोग उसके व्यवहार से खिन्न होते हैं , नहीं चाहते हुए भी समस्याएं सुलझने की बजाए उलझती जाती हैं ,मनुष्य निराश और हताश होने लगता है,निराशा और हताशा की स्थिति में अनुचित निर्णय लेता है ,वाणी और सोच से नियंत्रण कम होने लगता है स्वयं पर से विश्वास कम होने लगता है ,ऐसे समय में मनुष्य को धैर्य,धीरज,शांती और सहनशीलता से काम लेना चाहिए
जिस तरह मिट्टी युक्त गन्दला पानी अगर बर्तन में कुछ देर रखा जाए तो मिट्टी और गंद पैंदे में नीचे बैठ जाती है , उसी तरह विपत्ति के समय शांत रहने और धैर्य रखने में ही भलाई है. धीरे धीरे समस्याएं सुलझने लगेंगी,एक शांत मष्तिष्क ही सही निर्णय और उचित व्यवहार कर सकता है.हालांकि ऐसा कहना जितना आसान है जीवन में ऐसा करना उतना ही मुश्किल.पर अगर मनुष्य के जीवन में धैर्य,धीरज,शांती और सहनशीलता का समावेश जितना शीघ्र हो जाए हो जाए उतना ही शीघ्र इन्हें पा सकेगा,एवं जीवन भर विपत्ति के समय में उसकी मानसिक विचलता कम हो जायेगी साथ ही जीवन सरल हो जाएगा.
विपत्ति के समय क्या करना चाहिए ?
विपत्ति, के समय सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखें ,आपका मन अशांत नहीं रहे,एक शांत मष्तिष्क ही उचित निर्णय ले सकता है एवं संयत व्यवहार कर सकता है ,जिस प्रकार भरे हुए संदूक में सामान रखने के लिए कुछ सामान बाहर निकालना पडेगा उसी प्रकार मानसिक शांती के लिए पुरानी बातें एवं घटनाओं को जो आप को व्यथित करती हो ,याद ना करें उन्हें मष्तिष्क से बाहर निकालना आवश्यक होता है,सदा के लिए भूलना होता है. मानसिक शांती के लिए ,इश्वर की पूजा अर्चना करें ,ध्यान करें इससे आपका मनोबल बढेगा ,और आप स्थितियों का हिम्मत से मुकाबला कर सकेंगे.अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखें,कमज़ोर स्वास्थ्य निराशा बढाता है.बाबाओं और तंत्र मन्त्र से बचें इससे धन का अपव्यय तो होगा ही आप पथ से भी भटकते रहेंगे,झूठी आशाओं में जियेंगे,यथार्थ को पहचानें और उसके अनुरूप ही कर्म करें., बड़ों से मार्ग दर्शन लें,कोई महत्वपूर्ण निर्णय ना लें अगर लेना भी हो,तो मित्रों से या जिस भी व्यक्ति में आपको विश्वास है ,और आप समझते हैं वह आपको उचित सलाह देगा ,उससे सलाह लेकर ही निर्णय करें,क्रोध पर नियंत्रण करें ,क्रोध में या निराशा में उत्तर ना दें,असफलता में इश्वर या लोगों को ना कोसें,वाणी में संयम रखें ,व्यर्थ वाद विवाद में ना पड़ें,आत्म मंथन ,आत्म अन्वेषण एवं आत्म चिंतन करें ,अपनी गलतियों से शिक्षा लें और उन्हें भविष्य में नहीं दोहराएं.
स्लोवाकिया की एक कहावत है "जिस चीज़ को आप बदल नहीं सकते हैं, आपको उसे अवश्य ही सहन करना चाहिए" इसलिए सहन शक्ति बढानी चाहिए,छोटी छोटी बातों पर उत्तेजित ना हों.मानसिक अशांती के समय मनपसंद कार्य में मन लगाने का प्रयत्न करें,अच्छी प्रेरणास्पद और मनोबल बढाने वाली पुस्तकें पढ़ें. अपनी असफलताओं को याद नहीं करें ,ना ही अपनी कमजोरियों को,इससे निराशा घटने की जगह बाद जायेगी अपनी सफलताओं को और अपनी खूबियों को याद करिए और पूर्व में मिली विपत्ति में आप अपने सर को ऊंचा उठा कर रखें हीन भावना से ग्रस्त ना हों ,मन में सार्थक सोच रखें अनन्त आशा एवं आत्मविश्वास के साथ आनेवाले समय का सामना करें ,इस बात को याद रखें समय सदा इकसार नहीं रहता ,अगर दुःख का समय है तो सुख का समय भी आयेगा, ऐसा नहीं है कि केवल विपत्ति के समय ही इन सब बातों को करना चाहिए ,दैनिक जीवन में भी अगर इन बातों का समावेश हो जाए ,तो जीवन की कठिनाइयां स्वत: कम हो जायेंगी ,जीवन सरल लगने लगेगा,विपत्ति का समय भी तुलनात्मक दृष्टि से आसानी से निकल जाएगा .
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"
गुलमोहर ,एच -१,वैशाली नगर
अजमेर (राजस्थान)३०५००४
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