भगवान का अपमान न करें!!!!!
अपने स्वार्थों और ऎषणाओं की पूर्ति के लिए आदमी वो सारे काम कर सकता है जो एक आदमी को नहीं करने चाहिएं। आजकल का आदमी अपने भीतर की आदमीयत, ्र नैतिक मूल्यों और सिद्धान्तों की बलि देकर भी अपने हितों को साधने को ही जीवन का चरम धर्म, फर्ज और लक्ष्य मान बैा है और दिन -रात इसी उधेड़बुन में लगा रहता है कि उसे वह सब कुछ कैसे प्राप्त हो जाए? अपने मकसद की प्राप्ति के लिए आदमी कभी पूरी तरह झुक कर विनयी होता हुआ अभिवादन करता है, कभी दण्डवत चरणस्पर्श करता है और कभी सामने इतना पसर जाता है जैसे कृपा पाए बगैर बस अब मर ही जाने वाला है।
आजकल के लोगों के लिए विद्वत्ता, योग्यता और शिष्टता कोई पैमाना नहीें है बल्कि एक ही पैमाना रह गया है कि जो जितना अधिक से अधिक काम मेें आने वाला है अथवा आने की संभावनाएं हैं वह हमारे लिए महानतम शख्सियत है और उसी के गुणगान करने में जीवन के सारे स्वार्थों की पूर्ति होने वाली है। हमारे यहां बड़े लोगों की कोई कमी नहीं है और उन लोगों की भी कोई कमी नहीं है जो बड़े लोगों की परिक्रमाओं और उनकी जयगान के लिए पैदा हुए हैं। याें भी जब भी कोई बड़ी हस्तियां पैदा होती हैं उन्हीं के काल में ही उनके अनुचरों, कीर्तिगान करने वाले, मालिश करने वाले, आस-पास घूमने वाले और उन्हीं के माहौल में उन्हीं के लिए रमने वाले लोगों की भीड़ भी साथ ही साथ पैदा होती है।
आज भी बड़े लोग भी हैं उनकी सेवा चाकरी और हर प्रकार का ध्यान रखने वाली भीड़ भी है। हमारे अपने इलाके में भी ऎसे लोग हैं और दूर-दूर तक भी। सभी क्षेत्रों में ऎसे लोगों की भरमार है। हालत ये होती जा रही है कि लोग उस ईश्वर को तो भुला बैठे हैं और अपने साथ ही धरा पर आए लोगों को ईश्वर की तरह पूजने मेें कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहे हैं। ढेरों बड़े लोगों की जमात भी ऎसी है कि जो अपने आपको ईश्वर की तरह मानने लग गई है और वह हर स्वागत अभिनंदन और वंदन के तरीके अपना रही है जो ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए उपयोग में लाए जाते रहे हैं। दोनों तटों पर खूब भीड़ है । पूजने वाले भी खूब हैं और पूजवाने वाले भी।
हर बाड़े में हर तरह के लोग हैं जिनके जीवन का मकसद ही हो गया है अपने स्वार्थों और ऎषणाओं की पूर्ति के लिए सब कुछ दांव पर लगा देना। चाहे वह इज्जत, स्वाभिमान, आदर्श और जीवन निर्वाह के सारे मूल्य तक क्यों न हों।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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