सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित करने के केंद्र के अधिकार पर सवाल उठाया है. न्यायमूर्ति आर एम लोढ़ा और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर की खंडपीठ ने कोयला आवंटन में अनियमितताओं को लेकर दायर जनहित याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान सरकार से कहा कि उसे दूसरे कानूनों, विशेषकर कोयला खदान कानून का गहराई से अध्ययन कर यह पता लगाना होगा कि क्या उसे इन संसाधनों के आवंटन का अधिकार है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि सांविधिक कानून के तहत इसका अधिकार सिर्फ राज्यों को ही है.केंद्र को बहुत से 'कानूनी स्पष्टीकरण' देने होंगे. अदालत ने कहा कि केंद्र खदान और खनिज कानून को नजरअंदाज नहीं कर सकता है जिसने केंद्र को कंपनियों को कोयला ब्लॉक आवंटित करने काकोई अधिकार नहीं दिया है.न्यायाधीशों ने कहा, 'खदान और खनिज (विकास और नियमन) कानून, 1957 के तहत सरकार को कोई भी अधिकार नहीं है. इस कानून से आगे निकलने का कोई प्रावधान नहीं है. आपको बहुत कानूनी स्प्ष्टीकरण देने होंगे.'
न्यायालय ने कहा, 'सवाल यह है कि क्या केंद्र सरकार को कानून के तहत अधिकार है और क्या समूचे विधायी तंत्र को नजरअंदाज करने का उसे अधिकार है. क्या आप कानून के विधायी प्रावधानों से आगे जा सकते हैं. कदाचित कानूनी नजरिए से इसमें बहुत संदेह है.' अटॉर्नी जनरल गुलाम वाहनवती ने कहा कि इन सवालों पर वह बगैर सोच विचार के जवाब नहीं देना चाहते. उन्होंने इन सवालों पर गौर करने के लिये कुछ समय देने का आग्रह किया, जिस पर बेंच ने केंद्र को जवाब के लिए 6 हफ्ते का समय दिया.
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