झारखंड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के इस बात से इंकार करने के बाद कि सत्ता हस्तांतरण का कोई करार हुआ था, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने शुक्रवार को कहा कि पार्टी की बैठक में निर्णय लिया जाएगा कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली सरकार को समर्थन जारी रखा जाए या वापस ले लिया जाए। मुख्यमंत्री कार्यालय के एक सूत्र ने बताया कि मुंडा ने गुरुवार को झामुमो प्रमुख शिबू सोरेन को भेजे एक लिखित जवाब में कहा था कि सितम्बर, 2010 में सरकार गठन के समय ऐसा कोई करार नहीं हुआ था कि 28 महीने पूरे होने के बाद सत्ता झामुमो को सौंपनी होगी।
ज्ञात हो कि मुंडा सरकार 10 जून को ही 28 महीने पूरे कर चुकी है। सूत्र ने मुंडा के पत्र का हवाला देते हुए कहा कि मई 2010 में जब शिबू सोरेन मुख्यमंत्री थे, तब इस बात पर सहमति बनी थी कि वह भाजपा को सत्ता सौंप देंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया था। पत्र में कहा गया है कि चार महीने बाद जब भाजपा ने नई सरकार गठित की, उस समय सत्ता हस्तांतरण का कोई करार नहीं हुआ था। उपमुख्यमंत्री एवं शिबू सोरेन के बेटे हेमंत सोरेन ने शुक्रवार को संवाददाताओं से कहा, "हमें जवाब मिला है। हम छह और 10 जनवरी को होने वाली पार्टी की बैठक में इस पत्र पर चर्चा करेंगे।"
झामुमो ने सत्ता हस्तांतरण सहित सात बिंदुओं पर मुंडा से जवाब मांगा था। 2009 में हुए विधानसभा चुनाव में किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलने पर झामुमो और भाजपा की साझा सरकार गठित हुई थी तथा शिबू सोरेन मुख्यमंत्री बनाए गए थे। मई 2010 में भाजपा ने समर्थन वापस ले लिया था। उसी वर्ष सितम्बर में झामुमो के 18 विधायकों के समर्थन से अर्जुन मंडा के नेतृत्व में सरकार गठित हुई थी।
उल्लेखनीय है कि भाजपा के भी 18 विधायक हैं और 82 सदस्यीय विधानसभा मेंउसे ऑल इंडिया झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) और जनता दल (युनाइटेड) के दो विधायकों का समर्थन प्राप्त है। झामुमो के समर्थन वापसी से मुंडा सरकार अल्पमत में आ जाएगी।
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