संसद में सरकार की जीत , पर विपक्ष की हार भी नही !!
हार है तो , आम खुदरा व्यापारियों की !!
( विपक्षी पार्टियों के विरोध का खोखलापन इस बात से भी परिलक्षित हो रहा है कि उन्होंने उस विरोध को संसद में मतदान तक सीमित या लगभग सीमित कर दिया | उसे लेकर उन्होंने समाज में खुदरा व्यपारियो को संगठित व आन्दोलित करने और उसके जरिये सरकार पर दबाव डालने का कोई प्रयास ही नही किया | इसका प्रयास न तो उन्होंने संसदीय बहस या वोटिंग से पहले किया और न ही अब करने आ रहे है | )
5 दिसम्बर के दिन केंद्र की कांग्रेस नेतृत्व सरकार ने लोक सभा में खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के प्रस्ताव को बहुमत से पास करवा लिया | दो दिन तक चले बहस के बाद हुए मतदान में प्रस्ताव के पक्ष में 253 सांसदों ने मत दिया | जब कि उसके विरोध या कहिये विपक्ष में 218 सांसदों ने मत दिया | इस तरह विधयेक के पक्ष में कुल 35 मत अधिक पड़े | हालाकि मतदान के समय विभिन्न पार्टियों के 29 सदस्य लोक सभा में उपस्थित ही नही थे | फिर समाजवादी पार्टी ( 22 सांसद ) और बहुजन समाज पार्टी ( 21 सांसद ) यानी कुल 43 सांसद मतदान के समय लोकसभा से बाहर चले गये | उन्होंने मतदान में हिस्सा नही लिया हालाकि बहस के दौरान इन दोनों पार्टियों ने भी अपने वक्तव्यों में खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष निवेश का विरोध किया था | जाहिर सी बात है कि अगर बहस में किये गये विरोध के मुताबिक़ वे विधेयक के विरोध में मतदान करते तो यह विधेयक ( 43 -- 35 ) 8 मतो से गिर जाता |
फिर अगले दिन राज्य सभा में भी सरकार ने इस विधेयक को पास करवा लिया | बसपा के सांडो ने वह उसके पक्ष में मतदान करके उसका प्रत्यक्ष समर्थन किया जबकि सपा के सांड मतदान के समय राज्य सभा से बाहर चले गये | इस तरह उत्तर प्रदेश की राजनीति में कट्टर प्रतिद्वन्दिता में लगी रही सपा -- बसपा के लोक सभा में अप्रत्यक्ष और फिर राज्य सभा में बसपा के प्रत्यक्ष तथा सपा के अप्रत्यक्ष समर्थन के जरिये ही यह विधयेक पास हुआ | दोनों ने ही अपनी प्रतिद्वन्दिता को दरकिनार कर और बहस के दौरान खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर किये गये अपने विरोध को भी दरकिनार कर केन्द्रीय सरकार को इस विधेयक पर जीत हासिल करने में मदद की | लेकिन इस विधेयक को पास करवाने और इसका वास्तविक विरोध न उठने देने के लिए सपा -- बसपा ही नही बल्कि अन्य दूसरी पार्टिया भी कम जिम्मेदार नही है | इस संदर्भ में याद रखने वाली पहली बात तो यह है कि नवम्बर 2011 में ही एकल ब्राण्ड के मालो सामानों के खुदरा व्यापार के लिए विदेशी मालिको को छूट दी जा चुकी है | सत्ता पक्ष और विपक्ष में बैठने वाली सभी पार्टियों ने इसे एक साल पहले ही स्वीकार कर लिया था | तब से आज तक उस विधेयक का विरोध किसी पार्टी ने जारी नही रखा | न तो वैचारिक रूप में और न ही व्यवहारिक रूप में | साफ़ मतलब है कि सभी पार्टियों के लिए एकल ब्राण्ड खुदरा व्यापार में विदेशी मालिको के लिए अपनी सहमती दे दी थी | अब यह विधेयक तो उसका अगला विस्तार या अगला चरण मात्र है | इसके अंतर्गत अब सारे ब्रांडो या कहिए सभी तरह के मालो सामानों के खुदरा व्यापार में 51 % तक विदेशी -- निवेश या विदेशी -- मालिकाने का अधिकार प्रदान कर दिया गया है |
फिर इस संदर्भ में याद रखने वाली दूसरी प्रमुख बात यह है कि लोक सभा में प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा के नेरित्व की एन डी ए सरकार ने 2002 में ही खुदरा व्यापार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी देने की तैयारी कर दिया था | उस समय विपक्षी पार्टी की भूमिका निभा रही कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के इस प्रस्ताव को '' राष्ट्र विरोधी '' का प्रस्ताव बताया था | भाजपा के भीतर के अन्य विरोधो तथा उसके नेतृत्व के घटक दलों के आपसी विरोधो के चलते यह मामला उस समय लटक गया था | फिर 2004 में तो खैर उसके हाथ से केन्द्रीय सत्ता ही निकल गयी , अन्यथा पूरी संभावना थी कि सत्ता में दुबारा आने के पश्चात वह इसे पास करवाती और कांग्रेस पार्टी विपक्ष में रहकर उसका वैसा ही विपक्षी विरोध करती जैसा कि भाजपा व उसके कई सहयोगी दलों ने अभी किया है | याद रखने वाली तीसरी प्रमुख बात यह है कि भाजपा नेतृत्व की एन .डी .ए सरकार से पहले संयुक्त मोर्चा सरकार ने विदेशी मालो सामानों के आयात पर लगे प्रतिबन्ध को घटाने के लिए नीतिगत बदलाव कर दिया था | फिर इसी नीति को बाद में भाजपा नेतृत्व की सरकार ने और कांग्रेस नेतृत्व की सरकार ने भी आगे बढाया | विदेशी मालो पर थोड़े बहुत लगे रहे प्रतिबन्ध को और ज्यादा घटाया |कोई भी समझ सकता कि विदेशी मालो सामानों को अधिकाधिक छूट देते बढाते जाने के बाद स्वंय विदेशी मालिको का उसके थोक व खुदरा व्यापार में आना उसका अगला चरण मात्र है | सभी जानते है कि संयुक्त मोर्चा तथा भाजपा नेतृत्व की एन डी ए सरकार और उसके बाद आई कांग्रेस नेतृत्व की यू पी ए सरकार में देश के सभी प्रमुख केन्द्रीय व सत्ताधारी पार्टिया प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप में शामिल रही है |
इसीलिए अब यानी 2012 में कोई पार्टी यह कह सकने की स्थिति में नही रह गयी है कि उसके केन्द्रीय शासन सत्ता में भागीदारी के दौरान विदेशी माल और उनके को देश के बाजार में घुसने की छूट विदेशी मालिको के मालो सामानों को मिली बढ़ी | फिर 2011 से खुदरा व्यापार में लगे अन्तराष्ट्रीय स्तर के मालिको कम्पनियों को एकल ब्राण्ड के खुदरा व्यापार के लिए छूट दी गयी | और अब 2012 में इसे पूरी छूट में बदलने का काम कर दिया गया |
इसके अलावा चौथी और अत्यंत महत्वपूर्ण बात यह है कि खुदरा व्यापार का क्षेत्र पहले देश की भी बड़ी व एकाधिकारी कम्पनियों के लिए भी पूरी तरह से खुला हुआ नही था | उस पर भी ( एम् . आर . टी पी कानून अर्थात एकाधिकारी प्रतिबंधात्मक कानून ) के जरिये कई क्षेत्रो के उत्पादन व व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था | साथ ही छोटे उद्यमियों एवं कारोबारियों के लिए कई क्षेत्रो में आरक्षित अधिकार भी मिले हुए थे | 1991 में उदारीकरण . वैश्वीकरण तथा निजीकरण की नीतियों को लागू करने के बाद इस प्रतिबंधात्मक कानून को हटाया जाने लगा |
फलत: विदेशी कम्पनियों के साथ सहयोग व साठ -- गाठ में बहुत पहले
जुडी और निरन्तर जुडती रही देश की दिग्गज कम्पनियों को खुदरा व्यापार में पूरी तरह घुसने बड़े -- बड़े माल शाप खोलने और चलाने की पूरी छुट पहले से ही मिलनी शुरू हो गयी थी | विदेशी कम्पनियों के माल सामानों के साथ खुदरा व्यापार भी अपने सहयोगियों व सहायक देशी कम्पनियों के जरिये पहले से ही आगमन होने लगा था |
अत: विदेशी मालो के साथ विदेशी कम्पनियों की सहायक देशी कम्पनियों को खुदरा व्यापार में मिलते रहे छूटो को देखते हुए विदेशी मालिको को खुदरा व्यापार करने की छूट मिलना वस्तुत: उसका अगला चरण ही माना जाएगा और माना भी जाना चाहिए | चूंकि इन नीतिगत बदलावों में सभी राजनितिक पार्टिया शामिल रही है | इसके विभिन्न चरणों को आगे बढाती रही है | लिहाजा इस समय खुदरा व्यापार में ज्यादातर विपक्षी पार्टियों द्वारा संसद में इसके विरोध में दिया गया मतदान भी उनके खोखले विरोध को ही परिलक्षित करता है |
उनके विरोध का खोखलापन इस बात से भी परिलक्षित हो रहा है कि उन्होंने उस विरोध को संसद में मतदान तक सीमित या लगभग सीमित कर दिया | उसे लेकर उन्होंने समाज में खुदरा व्यापारियों को संगठित व आन्दोलित करने और उसके जरिये सरकार पर दबाव डालने का कोई प्रयास नही किया | इसका प्रयास न तो उन्होंने संसदीय बहस या वोटिंग से पहले किया और न ही अब करने आ रहे है | जबकि इसी समय सरकारी नौकरियों में दलित समुदाय के पदोन्नति के आरक्षण को लेकर संसद से लेकर आफिसो व सडको तक समर्थन व विरोध चल रहे है | संसद में वोटिंग हो रही है और समाज में उसके समर्थन व विरोध के प्रदर्शन हो रहे है | फुटकर व्यापारियों के आन्दोलनो को न खड़ा करने और उनके मुकाबले संख्या में कही कम कर्मचारियों के इस परस्पर विरोधी आन्दोलन प्रदर्शन को समाज में बढावा मिलने का एक प्रमुख कारण यह है कि खुदरा व्यापारियों के आन्दोलन का सीधा असर धनाढ्य वर्गीय आर्थिक नीतियों के विरुद्ध जाएगा , जब कि कर्मचारियों का परस्पर विरोधी आन्दोलन समाज में जातिवादी राजनितिक , सामाजिक गोलबन्दी बढाने और उसके सत्ता स्वार्थी इस्तेमाल के काम अना है | जैसा कि पहले भी आता रहा है |
इसीलिए यह विधेयक को संसद में पास कराने में कांग्रेस नेतृत्व की वर्तमान सरकार की जीत तो है पर वह विपक्षी पार्टियों की भी हार नही है | कयोकी उन्होंने इस विधेयक को संसदीय व विपक्षीय विरोध ही किया | उसका वास्तविक विरोध कदापि नही किया गया | फिर सही मायने में यह जीत खुदरा व्यापार में लगी अन्तराष्ट्रीय कम्पनियों और उनके सहयोगी देशो की कम्पनियों की है | उसी तरह से यह हार भी दरअसल देश के आम खुदरा व्यापारियों की है |
एक और महत्वपूर्ण बात खासकर पिछले बीस सालो से निरन्तर बढाई जा रही वैश्वीकरणवादी नीतियों के जरिये उत्पादन व्यापार बाजार के हर क्षेत्र में देश व विदेश के बड़े धनाढ्य मालिको के छूटो अधिकारों को बढाया जाता रहा है | और जनसाधारण के विभिन्न हिस्से के मजदूरो , किसानो , दस्तकारो व छोटे कारोबारियों आदि के छूटो अधिकारों को काटा और घटाया गया है | इस बार इसका शिकार खुदरा व्यापारी खासकर छोटे और औसत खुदरा व्यापार में लगे चार करोड़ परिवार के लोगो को बनाया जा रहा है | अत: खुदरा व्यापार के इस विधेयक के विरोध के लिए अब स्वंय खुदरा व्यापारियों को ही संगठित होना होगा | साथ ही किसानो मजदूरों एवं अन्य छोटे व्यापारियों के साथ खड़े होकर इन जन विरोधी वैश्वीकरणवादी नीतियों का भी निरंतर विरोध करना होगा |
---सुनील दत्ता---
पत्रकार
1 टिप्पणी:
EVERY PARTY TAKES MONEY TO FAVOUR F D I , SOME ONE LIKE S P , BSP ,D M K are more BENEFITTED / OBLIGED by CENTRAL GOVT by means of SILENCE on THE CORRUPTION MADE by THEM in U P , TAMILNADU . FINALLY it will affect on NATION , ORDINARY MEN FEELS CHEATED . MONEY EFFECT in F D I approval is PROVEN by WALLMART'S BALANCE SHEET WHERE A HUGE AMOUNT SHOWN as EXPENCES in PROMOTION of F D I in INDIA
एक टिप्पणी भेजें