अभावों का रोना न रोएं, वरना... - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 20 जनवरी 2013

अभावों का रोना न रोएं, वरना...


जो है वह भी चला जाएगा !!!

अभावों के भाव आदमी की जिन्दगी में बचपन से लेकर जीवन पर्यन्त बने रहते हैं। ईश्वर ने मनुष्य शरीर प्रदान किया है, बुद्धि और बाहुबल दिया है तथा आगे बढ़ने के अवसरों और विकास की अनंत संभावनाओं से हमें नवाजा है। इनको अपनाकर हम अपने जीवन का निर्माण कर सकते हैं, सँवार सकते हैं। आदमियों की कई किस्में हैं। इनमें एक किस्म ऎसे लोगों की है जो पूरी मेहनत करते हैं और इन अवसरों का पूरा लाभ प्राप्त कर लेते हैं। कई लोग कड़ी मेहनत के बावजूद अपेक्षित लाभ प्राप्त नहीं कर पाते हैं। तीसरी तरह के लोग ऎसे हैं जो खुद कुछ करना नहीं चाहते। ये लोग अपने जीवन लक्ष्यों को तो बहुत ही ऊँचा बना लेते हैं मगर इसके अनुरूप परिश्रम करना नहीं चाहते हैं और यह चाहते हैं कि छलांग लगा कर कोई बड़ा पद, कोई खजाना या कोई बड़ी उपलब्धि किसी न किसी तरह प्राप्त भी कर लें और कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़े। आदमियों की इन सारी प्रजातियों में एक बात यह आम देखी जाती है और वह है अभावों का चिंतन, मनन और दुखड़ा रोना। बहुत सारे लोग उन सभी स्थानों पर होते हैं।

अपने यहाँ भी इनका जबर्दस्त बाहुल्य है जो आसानी से जीवनबसर की सारी सुविधाओं की प्राप्ति होने अथवा अनाप-शनाप धन-दौलत और जमीन-जायदाद पा चुकने के बावजूद कुछ न होने का रोना रोते रहते हैंं। हमारे आस-पास भी ऎसे खूब लोग हैं और अपने इलाके में भी। अपने गाँव-कस्बों और शहरों से लेकर महानगरों तक ऎसे लोगों की भरमार है जो अपने पास भगवान का दिया और खुद का अर्जित किया हुआ सब कुछ होने के बावजूद कुछ न होने का रोना रोते रहते हैं। ये लोग जीवन के लिए जरूरी सारे संसाधनों की उपलब्धता के बावजूद पूरी दुनिया के संसाधनों और सम्पत्ति को अपनी कर लेने की चाहत में इतने दुःखी रहते हैं कि जब कहीं किसी से  मुलाकात होगी या घर में बैठे रहेंगे, हमेशा अपने पास कुछ नहीं होने की बात कहते हुए खिन्न और दुःखी नज़र आएंगे। इस तरह का रोना रोने वालों में पुरुष और स्ति्रयां दोनों हो सकते हैंं। इनके पास जो कुछ सम्पदा और संसाधन होते हैं उनके बारे में ये लोग कभी खुशी व्यक्त नहीं कर पाते हैं और न ही यह असलियत बताने की स्थिति में होते हैं कि उनके पास कितना कुछ है जो औरों से कई गुना ज्यादा है।

अपने पास उपलब्ध वित्त, संसाधनों आदि को छिपा कर रखने और दूसरों के सामने कुछ न होने का रोना रोने वाले लोगों की संख्या हाल के वर्षों में इतनी बढ़ गई है कि हमारे रिश्तेदारों, साथ काम करने और रहने वाले संपर्कितों से लेकर पड़ोसियों और क्षेत्रवासियों तक में यही रुदन राग हर कहीं पसरा होता है कि उनके पास कुछ नहीं है। आश्चर्य की बात तो यह है कि बड़े-बड़े धनाढ्य और समृद्ध लोग भी अपने पास कुछ न होने का दुःख रोजाना ही कितनी-कितनी बार व्यक्त करते रहते हैं। यही राग वे लोग भी दोहराते रहते हैं जिनकी जिन्दगी अच्छी तरह गुजर रही होती है। दुनिया का सारा ऎश्वर्य और वैभव पा जाने की उच्चतम आकांक्षाओं को संजोने वाले अधिकांश लोेगों की जिन्दगी का यह तकिया कलाम  उनकी रोजमर्रा की जिन्दगी का अहम् हिस्सा बन चुका होता है। जो प्राप्त हो रहा है और जो मिला है उसी में संतोष की भावना आए बगैर हमारी ऎषणाओं की पूर्ति के सारे मार्ग अपने आप बंद ही रहते हैं, इस सत्य को जाने बिना हम अपने पास कुछ न होने का रोना रोते रहते हैं और यही कारण है कि हम सब कुछ अपने पास होते हुए भी वहीं के वहीं ठहरे हुए रहते हैं जहां से हमारे रुदन की शुरूआत होती है, थोड़ी-बहुत तरक्की हो सकती है लेकिन अपेक्षा के अनुरूप कुछ भी परिवर्तन संभव नहीं हो पाता है।

जो लोग अपने अभावों की बात करते हैं और जीवन निर्वाह के लिए सब कुछ पर्याप्त होने के बावजूद जहाँ कहीं मौका मिलता है, चर्चाओं में कुछ नहीं और खाली-खाली होने की बात करते हैं, उन्हें शायद पता नहीं होता कि दिन-रात में एकाध क्षण ऎसे आते हैं जब अपने मुँह से जो कोई बात निकल जाती है वह सत्य हो ही जाती है। ऎसे में हमेशा अपने पास कुछ न होने की चिंता और दुःख की अभिव्यक्ति से कोई समय ऎसा भी आ सकता है जब हमारी वाणी सत्य हो जाए और हमें अपने ही करमों की वजह से विपन्नता की ओर लौटने को विवश होना पड़े। यों भी यह शाश्वत सत्य है कि जो कुछ मिला है उसके लिए ईश्वर का धन्यवाद अदा करना चाहिए और उस पर पूरा भरोसा रखना चाहिए। ऎसा नहीं करते हुए जो लोग अभावों की बात करते हैं उनके सूक्ष्म विचार कभी न कभी स्थूल रूप ग्रहण कर लिया करते हैं और ऎसे में कभी यह स्थिति भी सामने आ सकती है कि हम हमारी गलतियों की वजह से वो सब कुछ खोने की यात्रा का आरंभ कर दें जो हमारे पास हमारा अपना कहने को है और जिसके होने के बावजूद हम असंतुष्ट और विषादग्रस्त बने हुए हैं।

होना यह चाहिए कि जीवन में किसी भी प्रकार का अभाव सामने आए, उसे दूर करने के लिए यथोचित परिश्रम करना चाहिए और उसके लिए सूक्ष्म वैचारिक स्तर पर भी प्रसन्नता और संतोष की भावना होने पर यह सूक्ष्म विचार ही स्थूलता प्राप्त करते हुए अपने लिए समृद्धि के द्वार खोलते हैं। इसलिए जीवन में हमेशा सकारात्मक चिंतन ही करना चाहिए ताकि सूक्ष्म से इन विचारों को स्थूल रूप प्राप्त होकर इनको सुनहरा आकार प्राप्त हो सके।



---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077

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