आइये कबीर की तरह ही विवेकानंद को भी बाँट ले - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 13 जनवरी 2013

आइये कबीर की तरह ही विवेकानंद को भी बाँट ले


अफ़सोस होता है जब लोग अपने क्षुद्र लाभ के लिए महापुरुषों का बेजा इस्तेमाल करते हैं।स्वामी विवेकानंद, संभवत: भारत के इतिहास में पहले और एकमात्र सन्यासी जिन्हे हम साम्यवादी कह सकते हैं। हमेशा रूढ़ीवाद के विरुद्ध अपना युद्ध लड़ते रहे। मुष्टिमेय सवर्णों द्वारा धर्म के अपहरण के विरुद्ध आग उगलते रहे। भारतीय समाज में धार्मिक तथा सामाजिक बहुवाद के प्रबल पक्षधर थे। विश्वास न हो तो उनकी समग्र रचनाओं को मनोयोग से बांच लें।    ---अमृत दासगुप्त.

दासगुप्त साहब, की बात में दम है, संघ के विचारक क्या समझते है ये तो मोदी की चुनावी यात्राओं में स्वामी विवेकानंद के पोस्टर बैनर आने से तय हो गया था पर इससे वाम क्यों दुखी है ?? आखिर क्यों? स्वामी विवेकानंद तो देश के धार्मिक नेतृत्व थे जबकि वाम तो धर्म को अफीम मानता है तो क्या दरअसल ये भारतीय वाम आन्दोलन का रीजनलिस्म(क्षेत्रीयवाद) है ??

वाम के बाद जो सबसे दुखी जमात है वे सामाजिक क्रांति वाले लोग है जो स्वामी विवेकानंद और उनके धर्म में आस्था नहीं रखते पर एक दो किताबो के बल पर ही विवेचना कर रहे है। ये लोग लगभग हर मंच से प्रतिनिधित्व की बात करते है, वे खुद मानते रहे है की अमुक बिरादरी का होने पर ही आप उसके दर्द-अनुभव को समझ सकते है पर देखिये ये लोग कैसे गृहस्थ जीवन जीते हुए, राजनीति करते हुए, स्वामी जी के तप, ज्ञान व् संन्यास वृत्ती का अन्वेषण कर रहे है।


---पूजा शुक्ला के फेसबुक वाल से साभार---

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