कभी मत भूलो और कभी माफ मत करो:कलाम - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 25 जनवरी 2013

कभी मत भूलो और कभी माफ मत करो:कलाम


पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने यह कहते हुए कि भारत आतंकवादियों को ढूंढ निकालने में अमेरिका और इस्राइल का "कभी मत भूलो और कभी माफ मत करो" वाला दृष्टिकोण अपना सकता है और सुझाव दिया कि तीनों देशों को अपने खतरों से निपटने के लिये एक समन्वित टास्क बल के जरिये साथ आना चाहिए। 
    
कलाम ने रिसर्च एण्ड एनालिसिस विंग (रॉ) द्वारा आयोजित सातवें आर एन काव व्याख्यान में कहा कि  कभी मत भूलो और कभी माफ मत करो, भारत अपने अनुभवों से सीख ले सकता है और केन्द्रित नेटवर्क आधारित प्रौद्योगिकियों का अभियानों में प्रयोग कर सकता है। लोकतांत्रिक देशों अमेरिका-इस्राइल और भारत के लिये यह उचित रहेगा कि वे आतंकवादियों के खतरों से कारगर ढंग से निपटने के लिये कोई समन्वित टास्क बल के साथ एकजुट हों। 
   
रॉ के संस्थापक प्रमुख काव 1969 से 1977 तक बाहरी खुफिया जानकारी एकत्रित करने वाली एजेंसी के प्रमुख रहे। कलाम समान भर्ती योजना के जरिये भारतीय खुफिया सेवा के गठन के पक्ष में भी हैं, जो अग्रिम अभियान के लिये मानवश्रम और विशेष बलों से कर्मियों में समायोजन में सहायक हो। कलाम ने कहा कि एक नेतृत्व के तहत खुफिया एजेंसियों की जवाबदेही को परिभाषित किए जाने की जरूरत है। हर उपलब्ध आकंड़े पर एकीकृत नजरिया विकसित करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी एवं नेटवर्क आधारित समाधान का फायदा उठाया जा सकता है। यह जानने की जरूरत के आधार पर किया जा सकता है और इसमें इस बात से कोई लेना-देना नहीं होना चाहिए कि जानकारी किसके पास है।
    
देश में खुफिया एजेंसियों में व्यापक सुधार की जरूरत बताते हुए पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि खुफिया एजेंसियों को घटना के बाद नहीं, बल्कि इससे पहले से ही सक्रिय रहना चाहिए। कलाम ने कहा कि प्रौद्योगिकी आधारित गुप्त कार्रवाई अब वक्त की जरूरत बनती जा रही है। गंभीर किस्म की सूचनाओं के आधारभूत ढांचे में होने वाले नुकसान के खतरों से पारंपरिक तौर पर अपनाए जाने वाले युद्ध के तौर-तरीकों में बदलाव की जरूरत पैदा हो गयी है।
    
पूर्व राष्ट्रपति ने कहा कि आतंकवाद एवं अन्य राष्ट्र विरोधी गतिविधियों के स्रोत के खात्मे और संवाद के लिए प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल की उनकी काबिलियत को कमजोर करने की जरूरत है। साइबर अपराध के खतरों का जिक्र करते हुए कलाम ने नैतिक तौर पर मजबूत ऐसे हैकरों की फौज तैयार करने की अपील की जो जरूरत पड़ने पर हमले भी कर सकें और वक्त आने पर बचाव में भी सक्षम हों। साइबर सुरक्षा के खतरों से मुकाबले के लिए कलाम ने दो सुझाव दिए, जिनमें एक प्रौद्योगिकी उन्नयन है जबकि दूसरा साइबर सुरक्षा की शिक्षा में निवेश है। 
    
साइबर सुरक्षा में प्रौद्योगिकी उन्नयन के बाबत कलाम ने कहा कि एक सशक्त समन्वय एजेंसी और सरकारी नीति इसकी सफलता में अहम साबित होगी। कलाम ने कहा कि एक राष्ट्रीय एजेंसी की दरकार है जिसे सभी हमलों के बारे में सूचनाएं हासिल हो। हम अकेले ही ऐसे हमलों से नहीं निपट सकते। सूचनाएं साझा करना एक अहम मसला है। उन्होंने कहा कि खुफिया एजेंसियों को निश्चित तौर पर लगातार अपनी तकनीकी दक्षता बढ़ानी चाहिए, चाहे यह सिग्नल से जुड़ी खुफिया सूचनाएं हों या संचार से जुड़ी खुफिया सूचनाएं। चाहे यह निगरानी से जुड़ी हों या सूचनाएं साक्षा करने के तंत्र से जुड़ी हों या फिर सुरक्षा के डेटाबेसों से जुड़ी हों।   
    
पूर्व राष्ट्रपति ने वैज्ञानिकों, कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर एवं हार्डवेयर विशेषज्ञ जैसे पेशेवरों की मदद लेने का सुझाव दिया, ताकि कम्प्यूटर हैकिंग और साइबर युद्ध से जुड़े नवीनतम कौशल से खुफिया एजेंसियों को लैस किया जा सके। कलाम ने उदाहरण के तौर पर चीन का नाम लेते हुए कहा, चीन में हैकिंग संस्थागत रूप ले चुका है। वहां के सैन्य स्कूलों में विषाणु लेखन (वायरस राइटिंग) की शिक्षा दी जाती है।