युवा होने का स्वाभिमान और गर्व
युवा शक्ति के कंधों पर ही होता है समाज और राष्ट्र निर्माण का जिम्मा। जब-जब देश का युवा जागरुक हुआ है तब-तब देश ने तरक्की के सोपान तय किए हैं और सामाजिक एवं राष्ट्रीय परिवर्तन की धाराओं ने आकार पाया है। आज नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जयन्ती है और यह दिन हमें याद दिलाता है उस महान युगपुरुष के पूरे व्यक्तित्व और कर्मयोग से प्रेरणा पाकर अपने भीतर के सुप्त पड़े युवत्व को जगाने की। आज युवाओं की कोई कमी नहीं है मगर उन युवाओं की कमी है जिन्हें अपनी जवानी और जोश का भान हो, जीवन निर्माण और संसार को बदल डाल देने की क्षमताओं और महानतम सामथ्र्य का अहसास हो तथा समाज एवं देश के लिए काम आ सकने का पूरा-पूरा जज्बा हो।
युवा शक्ति की भारी भरमार है, जहां देखें वहां युवा शक्ति का महाज्वार दिखता है और जिधर देखें उधर युवाओं का सागर लहराता दिखता है। लेकिन नहीं दिखता तो सिर्फ युवाओं के भीतर का जोश, उछाह मारता युवत्व और निरन्तर अच्छाइयों भरे समाज की नवरचना तथा राष्ट्र निर्माण के लिए जरूरी ताकत। कुछ तो जमाने की मार ने घायल कर दिया है,? कुछ ऎसे लोगों ने कायल कर रखा है जिन्हें युवाओं के कंधे चाहिएं अपने कद बढ़ाने के लिए, कुछ विचित्र माध्यमों ने कबाड़ा कर दिया है और बचा-खुचा दम निकाल दिया है पाश्चात्यों ने।
युवा शक्ति आज चारों तरफ अभिमन्यु की तरह जाने कितने चक्रव्यूहों में फंसी हुई है। कुछ बाहर निकलने को तैयार नहीं हैं, कुछ बाहर निकलना चाहते हैं मगर समस्याओं और अभावों के साथ ही कुटिल चालों से भरे महारथियों की फौज बाहर खड़ी है जो कि बाहर की रुख करने वालों पर लपक पड़ती है। और ऎसे में युवा शक्ति वापस अपने दड़बों में घुस जाती है। न अंदर सब कुछ ठीक-ठाक है, न बाहर। सभी तरह आगे बढ़ने के रास्तों पर कई अज़गरों का डेरा है। किसम-किसम के इन अजगरों ने उन सारे मार्गों पर अपनी जिस्म से स्पीड़ ब्रेकर बना रखे हैं जहाँ से रास्ते अच्छाइयोें या बदलाव की ओर जाते हैं। ऎसे में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस का स्मरण करना और उनको जानना जरूरी है जिन्होंने अपने फौलादी बाजुओं का इस्तेमाल मातृभूमि की रक्षा के लिए किया।
आज नरमी की बजाय गरमी की जरूरत है और सुभाष बोस की ही तरह भट्टी जैसी गर्मी की आवश्यकता है। आज हमें बाहर से भी लड़ना है और भीतर से भी। सुभाष बोस ने कभी कोई समझौता नहीं किया बल्कि देश सेवा और राष्ट्र निर्माण के लिए वो सब कुछ किया जिसके लिए जवानी का समर्पण जरूरी है। आज उसी जज्बे को पैदा करने की जरूरत है तभी हमारे युवा होने का कोई अर्थ है वरना हमारे चेहरों से निरन्तर खत्म होता जा रहा ओज, यौवन का सामथ्र्य और जीवन जीने का उत्साह यों ही क्षरित होता रहेगा और आने वाली पीढ़ियों हमें निरन्तर उलाहना देती हुई वह सब कुछ कहने में कोई संकोच नहीं करेंगी जो सामान्य तौर पर सभ्य समाज में नहीं कहा जाता। युवा होने का मर्म समझेंं और अपने यौवन को जगाएं, देश के लिए ऎसा कुछ कर गुजरें कि आने वाले युगों तक नेताजी की तरह याद किया जाता रहे।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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