भारत इस साल के आखिर तक लद्दाख में हिमालय की पहाड़ियों पर दुनिया के सबसे बड़े सौर दूरबीन का निर्माण शुरू कर सकता है। इसके जरिए सूरज से सम्बंधित प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाएगा। बेंगलुरू के इंडियन इंस्टीट्य़ूट ऑफ एस्ट्रोफिजिक्स (आईआईए) द्वारा बनाया गया दो मीटर का अत्याधुनिक राष्ट्रीय वृहद सौर दूरबीन भारतीय वैज्ञानिकों को सूरज के अध्ययन के लिए शोध करने में मदद करेगा।
आईआईए के पूर्व निदेशक सिराज हसन ने यहां भारतीय विज्ञान कांग्रेस के एक सत्र में कहा, ''केंद्र सरकार को एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट सौंपी गई है। हम इस साल के आखिर तक दूरबीन का निर्माण शुरू कर पाएंगे। परियोजना 2017 तक पूरी हो सकती है।''
परियोजना पर 150 करोड़ रुपये खर्च होंगे और यह दूरबीन दुनिया के उन कुछ दूरबीनों में से एक होगा, जिसका दिन और रात दोनों वक्त उपयोग किया जा सकता है। हालांकि दुनिया का सबसे बड़ा दूरबीन हवाई के मौना किया में स्थित 10 मीटर का ऑप्टिकल दूरबीन है, लेकिन यह भारतीय दूरबीन सौर दूरबीनों में सबसे बड़ा होगा।
अब तक दुनिया का सबसे बड़ा सौर दूरबीन मैकमैथ-पीयर्स सौर दूरबीन है, जिसका व्यास 1.6 मीटर है और जो अमेरिका के अरीजोना में किट पीक नेशनल ऑब्जवेटरी में स्थित है। हसन ने कहा कि पेंगोंग झील के पास मेरक गांव में एक उपयुक्त स्थान का चुनाव कर लिया गया है। यह गांव जम्मू और कश्मीर के लद्दाख क्षेत्र में स्थित है। आईआईए इस परियोजना की नोडल एजेंसी के रूप में काम करेगी, जिसमें भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्य़ूट ऑफ ऑब्जरवेशनल-साइंसेज, टाटा इंस्टीट्य़ूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च एंड इंटर-यूनीवर्सिटी सेंटर जैसे वैज्ञानिक संस्थानों की भी सहभागिता रहेगी।
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