हमारी पूरी दुनिया कई किसम के लोगों से भरी पड़ी है। इनमें खूब सारे लोग ऎसे-ऎसे स्थानों पर कुण्डली मारकर बैठे हुए हैं जिन्हें शोभनीय और शक्ति सम्पन्न माना जाता है और यह मान्यता चली आ रही है कि ये ही शक्ति केन्द्र हैं जिनसे होकर तरह-तरह की शक्तियों का संचरण समुदाय की ओर होता है। इन शक्ति केन्द्रों में से कई तो बिजूकों की तरह हैं, मात्र नाम और पद का खौफ रखने वाले। कई ऎसे हैं जो किसी पुराने पुण्य या गुणीजनों की कमी से कुछ पा गए हैं, कई सारे ऎसे हैं जो आधे-अधूरे हैं। इनके साथ ही खूब सारे ऎसे हैं जो जाने कैसे कुछ बन बैठे हैं। इस बारे में न इन्हें कुछ पता है न औरों को। बहरहाल चाहे जिस किसी भी कारण से शक्ति केन्द्र बने हुए हों मगर इनमें से कुछ बिरलों को छोड़ दिया जाए और अधिकांश की स्थिति को देखा जाए तो इनका समूचा व्यक्तित्व कहीं से कोई प्रभाव नहीं छोड़ता।
लेकिन अहंकार और दूसरी बुराइयों का जमघट इतना कि आम लोग भी इनके बारे में टिप्पणी करने से नहीं चूकते। यों देखा जाए तो व्यक्ति का पूरा व्यक्तित्व उसके चाल-चलन और चरित्र से नापा जाता है और इसी से उनका मूल्यांकन भी होता है। किसी भी बड़े आदमी का व्यवहार और कार्यशैली को देखना हो तो यह देखना चाहिए कि उसका व्यवहार किसी अपरिचित आम आदमी के साथ कैसा है। प्रभावशाली लोगों और किन्हीं प्रकार के प्रलोभनों या दबावों से होने वाले कार्यों या व्यक्तित्व में आ जाने वाली क्षणिक सरलता, सहजता और कार्य संपादन को किसी भी बड़े कहे जाने वाले आदमी के व्यक्तित्व और कार्यशैली का आधार नहीं माना जा सकता।
हमारे रोजमर्रा के जीवन की बात हो या सामान्य काम-काज की, आम तौर पर लोगों के कार्य और व्यवहार में सम सामयिक अंतर इतना देखा जा सकता है जैसा जमीन-आसमान का। एक के साथ सौम्य और माधुर्य, और दूसरों के साथ दूसरी तरह का व्यवहार। यह दोहरा-तिहरा चरित्र जो लोग अपनाते हैं उनका पूरा व्यक्तित्व दूसरों की ऊर्जा पर निर्भर करता है चाहे वे दूसरी शक्तियां आदमी के रूप में हों या किन्हीं और आकारों में। समाज-जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो लोग कहीं भी लगे हुए हैं उनके जीवन की सफलता इसी में है कि वे ऎसे काम कर जाएं कि लोग उनके कर्मयोग को हमेशा अच्छाइयों के साथ याद करें न कि ऎसे काम करें कि लोग बाद में उन्हें तरह-तरह की बातें कहते हुए बुराइयों और बद्दुआओं के साथ याद करें।
हमारे काम करने का क्षेत्र कोई सा हो, इसे लोभ-लालच की पूर्ति और कामचोरी की बजाय लोक सेवा का माध्यम बनाएं और ऎसे काम कर जाएं कि इनकी गंध आने वाली पीढ़ियों तक आती रहे। इसके लिए यह जरूरी है कि हम अपने व्यक्तित्व पर पद और मद को हावी न होने दें और वर्ष में कई बार अपने पद और मद से परे होकर सोचें। ऎसा कर लिए जाने पर हमें हमारी असलियत और औकात का पता अपने आप लग सकता है। जो लोग पद और मद के अहंकार से लक-दक होकर मानवीय संवेदनाएं भुला बैठे हैं उन लोगों को तहेदिल से यह सोचना चाहिए कि जहां कहीं किसी भी आदमी के पद और व्यक्तित्व में असंतुलन आ जाता है वह जीवन के अंतिम समय तक बना रहता है। इसलिए जीवन से इस असंतुलन को हटाएं और जहां कहीं हैं वहां अपने दायरों, मर्यादाओं और लक्ष्मण रेखाओं का अच्छी तरह भान रखें, तभी हमारा होना और जीना सार्थक है वरना खूब लोग आए और चले गए, हम भी उसी लाईन में लगे हुए हैं।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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