क्या आप अंग प्रदर्शन को ही आजादी कहते है ?
लड़किया अपने आप पर ध्यान नहीं देगी तो लड़के ध्यान देंगे जो अच्छी बात नहीं । जो छेड़ खानी या उससे भी बड़ी गुनाह की वजह भी बन सकती है । लड़किया फैशन जरुर करे लेकिन फैशन का मकसद अंग प्रदर्शन नहीं होना चाहिए । कोई अगर औरतोंको अपने वस्त्रोंपे ध्यान देने की बात कहे तो वोह बताने वाला हमेशा गलत क्यू होता है ? फिर सभी औरते ऐसी आग बबूला होती है जैसे उनका व्यक्ति स्वातंत्र्य , भाषण स्वातंत्र्य या संचार स्वातंत्र्य किसीने छीन लिया हो । वस्त्र शरीर ढकने के लिए होते है । नकि अंग दिखने के लिए।
जमाना बदल गया है लड़के बदन ढक के फैशन करते है और जिनको ढकना जरुरी होता है वो औरते अपना जिस्म दिखाकर फैशन करती है ।
समाज में रेप जैसी घटनाये एक विकृति है इसमें दोहराई नहीं । अपराधिको सजा भी होनी चाहिए लेकिन समाज में ऐसी विकृत मानसिकता क्यू बढ रही है ? इसका विचार करना भी बहोत जरुरी है । अंग प्रदर्शन अपने लज्जा का भाग है । अंग प्रदर्शन को निश्चित सीमा किसी ने तय नहीं है । कल रेपिस्टोंकी सजा को लेकर कड़े क़ानून बन सकते है । लेकिन अंग प्रदर्शन के फैशन को लेकर कभी कोई सीमा या कानून नहीं बन सकता वोह अपने आप पर निर्भर करता है ।
लज्जा ही स्त्रियोंका बड़ा गहना होता है । किसीको भी अपने हिन्दुस्तान की सभ्यता, संस्क्रुतिको को उसकी वेश भूषा को भूलना नहीं चाहिए । मराठी में कहते है, ''देश तसा वेश, जिन्स सोडून नववारी नेस'' वोह गलत नहीं है ।फैशन में सिर्फ अपने मन का ही नहीं देखने वालोंके मन का भी विचार करे । क्यू की पहनते है हम, और देखता सारा जग है इसका ख़याल रखे।
आलोक सिंह
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें