सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात के लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) आर. ए. मेहता की नियुक्ति को बुधवार को सही ठहराया। सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए एक झटका है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी. एस. चौहान और न्यायमूर्ति एफ. एम. इब्राहिम कलीफुल्ला की पीठ ने कहा कि गुजरात की राज्यपाल कमला बेनीवाल ने लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श करने के बाद की थी, जिसका प्रावधान संविधान में है।
न्यायमूर्ति चौहान ने फैसला सुनाते हुए कहा, "राज्यपाल को उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के परामर्श पर निर्णय लेना था, जो इस मामले में किया गया।" न्यायाल ने गुजरात सरकार की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह निर्णय सुनाया। याचिका में लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति को वाजिब ठहराने के उच्च न्यायालय के निर्णय को चुनौती दी गई थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता के. के. वेणुगोपाल ने 27 नवम्बर को गुजरात सरकार की ओर से पेश होते हुए न्यायालय में कहा था कि राज्यपाल बेनीवाल ने राज्य मंत्रिमंडल की सलाह को दरकिनार करते हुए अपनी मर्जी से निर्णय लिया। वेणुगोपाल ने कहा था कि बेनीवाल ने राज्य विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष से चर्चा की, लेकिन मुख्यमंत्री तथा मंत्रिमंडल के परामर्श को दरकिनार कर दिया।
गुजरात सरकार ने अपनी याचिका में दावा किया था कि लोकायुक्त के रूप में न्यायमूर्ति मेहता की नियुक्ति 'अवैध और संविधान के अनुच्छेद 163 में निहित गुजरात लोकायुक्त अधिनियम-1986 की धारा 3 का उल्लंघन है।'
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