- विधानसभा अध्यक्ष ने कटघरे में किया नेताओं और अधिकारियों को
- विकास की नहीं, वोट की राजनीति से पिछड़ा उत्तराखण्ड: कुंजवाल
देहरादून 17 जनवरी। राज्य के अस्तित्व में आये 12 वर्ष हो चुके हैं लेकिन इन 12 वर्षो मेें राज्य की सही स्थिति को कोई भी नेता राज्यवासियों के सामने नहीं रख पाया। बेबाक टिप्पणी के लिए जाने-जाने वाले विधानसभा अध्यक्ष गोविन्द सिंह कुंजवाल आज कल सुर्खियों में हैं। गैरसैंण को राजधानी के रूप में आगे लाने वाले विधानसभा अध्यक्ष कुंजवाल ने जहां बीते दिनों गैरसैण को ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित करने का बारे में दिए बयान पर राजनीति अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि अब उन्होंने एक बार फिर पहाड़ों की उपेक्षा का आरोप लगाते हुए अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया है, इतना ही नहीं उन्होंने सरकार से राज्य की राजधानी पर निर्णय लेने की मांग भी कर डाली है।
पत्रकारों से बातचीत में विधानसभा अध्यक्ष ने स्वीकार किया कि राज्य गठन के 12 साल बाद आज भी पहाड़ों की स्थिति वहीं बनी हुई है जो उत्तर प्रदेश के शासनकाल में थी। उन्होंने राज्य में राज करने वाली सरकारों पर आरोप लगाते हुए कहा कि इन सब ने पर्वतवासियों का उपयोग केवल वोट की राजनीति के लिए किया। बहुत ही बेवाकी से उन्होंने कहा कि सरकार किसी भी काम के मामले में बजट का रोना रोती रहती है। उन्होंने तिवारी सरकार उदाहरण देते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में कभी भी आर्थिक संसाधनों की कमी नहीं रही थी, और विकास कार्य जनता को दिखाई देते थे। लेकिन अब जब सरकार के पास छोटे-छोटे कार्य के लिए लोग जाते हैं तो सरकार बजट का रोना रो कर उन्हें टरका देती है, उन्होंने कहा कि धन का सही नियोजन न होने के कारण ही पहाड़ों का विकास नहीं हो पाया है। राज्य की सत्ता में आज तक काबिज सरकारों को समान रूप से जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में सरकार किसी की भी रही हो सभी राजनैतिक दलोें ने और नेताओं ने वोट की राजनीति की है।
राज्य के अस्तित्व में आए 12 साल हो जाने के बाद भी राजधानी के फैसले के न हो पाने को दुर्भाग्य पूर्ण करार देते हुए उन्होंने कहा कि दो-दो आयोगो के गठन और इन आयोगों पर लाखों रूपया खर्च किए जाने के बावजूद राजधानी का मसला अभी भी अधर में लटका है, उन्होंने सरकार से इस मामले में निर्णय लेने की मांग करते हुए कहा कि अब इस पर देरी ठीक नहीं। वहीं उन्होंने राज्य की नौकरशाही को भी कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि यदि अधिकारियों ने ही पहाड़ के विकास के लिए सोचने के साथ-साथ योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कुछ किया होता तो स्थिति आज कुछ होती। उन्होंने कहा कि इन 12 सालों में राज्य का सालाना बजट 17 सौ करोड़ से बढ़कर अब 8 हजार करोड़ तक पहुंच गया है लेकिन इस बजट का उपयोग पहाड़ों के विकास के लिए खर्च नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि राज्य के विधायकों की विधायक निधि का इस्तेमाल मंे भी लापरवाही बरती गई है, जो क्षेत्र के विकास के लिए बिल्कुल भी ठीक नहीं है। गौरतलब हो कि गैरसैंण को जहां विधानसभा अध्यक्ष ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाए जाने की बात करते हैं वहीं विधानसभा उपाध्यक्ष अनुसुया प्रसाद मैंखुरी गैरसैंण को स्थायी राजधानी बनाए जाने की बात करते हैं इसके पीछे उनका तर्क है कि गैरसैंण जहां उत्तराखंड का केंद्र बिन्दु है वहीं गैरसैंण से राज्य की अन्य सीमाओं की दूरी अधिकतम 278 किमी है, जबकि देहरादून की दूरी कई स्थानों से इससे कई अधिक है।
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि कुंजवाल के बयान के दूसरे दिन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने दो बार उनके आवास पर जाकर इस बयान पर बात की थी, और राजधानी के मुद्दे पर बाद में फैसला करने की बात कहीं थी, और वे अपने बयान पर कायम रहे थे। अब बदली परिस्थितियों में गैरसैंण में विधान भवन सहित कई अन्य महत्वपूर्ण भवनों का शिलान्यास गैरसैंण के पास स्थित भराड़ी सैंण में हो चुका है। लेकिन विधानसभा अध्यक्ष कुंजवाल के ताजातरीन बयान ने एक बार फिर राजधानी के मुद्दे सहित सरकार के कामकाज और अधिकारियों की मनमौजी पर सवाल खड़े कर राज्यवासियों सहित सरकार को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या उत्तराखंड में यह सब ही चलता रहेंगा या परिर्वतन की लहर राज्य के विकास की लहर बनेंगी।
(राजेन्द्र जोशी)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें