अपनी विद्या-बुद्धि का उपयोग !!
विद्या और बौद्धिक क्षमताओं का उपयोग रचनात्मक कर्मों और संसार के कल्याण के लिए है और इसीलिए विद्या को विनय के साथ कल्याणकारी बताया गया है और इसका मूल उद्देश्य यह है कि व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को सँवारे और अपने आपको इस लायक बनाए कि समाज, क्षेत्र और संसार का भला कर पाने की क्षमताओं को प्राप्त कर ले और इसका पूरा-पूरा उपयोेग करे। जो लोग अपनी विद्या बुद्धि और सामथ्र्य का उपयोग रचनात्मक और सकारात्मक कार्यों के लिए करते हैं और प्राणी मात्र एवं संसार के कल्याण की भावना से काम करते हैं उन्हें प्राप्त विद्या का भण्डार अपने आप भरता रहता है और बौद्धिक धार पैनी होती रहती है जबकि दूसरी ओर अपनी विद्या-बुद्धि को क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति का माध्यम जो लोग बनाते हैं उनके भीतर से विद्या का पलायन धीरे-धीरे होने लगता है और ऎसे लोगों के लिए विद्या का स्थान अविद्या लेने लगती है।
ऎसे में विद्या का दुरुपयोग करने वाले लोग अपनी विद्या के बल को खो देते हैं। भगवान ने जिन लोगों को थोड़ी-बहुत भी विद्या या बौद्धिक बल दिया है और विद्वत्ता का मार्ग दिया है, उन सभी लोगों का दायित्व है कि अपने बौद्धिक हुनरों का उपयोग रचनात्मक और सकारात्मक विचारों के साथ करें और इसके लिए यह निर्णय कर लें कि पूरे जीवन में बुद्धि का उपयोग नकारात्मक या विध्वंसात्मक कार्यों के लिए नहीं करेंगे। जो लोग ईश्वर प्रदत्त विद्या-बुुद्धि का स्वार्थों के वशीभूत होकर किसी भी रूप में दुरुपयोग करते हैं अथवा विघ्नसंतोषी के रूप में सामने आते हैं उनकी बुद्धि मलीन होते-होते एक समय बाद अपने आप क्षीण हो जाती है और उसका स्थान ले लेती है अविद्या और दुर्बुद्धि। ऎसे लोग अपने जीवन में जो भी कर्म करते हैं वे सारे आसुरी व तामसिक होने लगते हैं और इनसे परिवेश और समुदाय में नकारात्मकता के विस्तार के साथ ही दुःखों का आविर्भाव होने लगता है।
अपनी विद्या या बुद्धि बल का उपयोग या तो स्वयं नकारात्मकता से करें या दूसरों के कहने और प्रभाव में आकर करें, तब भी बुद्धि का ह्रास होना आरंभ हो जाता है और इसका असर हमारे जीवन के साथ ही सभी प्रकार की परिवेशीय और क्षेत्रीय गतिविधियों पर भी होने लगता है। यों आजकल थोड़ा सा पढ़-लिख लेने वाले और मामूली सी बुद्धि पा जाने वाले लोग भी अपने आपको प्रबुद्धजन और बुद्धिजीवी समझने लगते हैं और इसी के अहंकार में डूबे हुए हर कहीं फूले हुए रहते हैं। ऎसे लोग अपनी बुद्धि को औने-पौने भावों में बेचकर जीवन में वह सब कुछ कर लेने को तैयार रहते हैं जो आम आदमी के लिए शोभा नहीं देता। आजकल बुद्धिजीवियों की खूब सारी किस्में इधर-उधर चक्कर काटने लगी हैं। कभी ये सत्ता और मुद्रा बाजारों के गलियारों में बड़े-बड़े लोगों की परिक्रमा करते हैं, कभी जयगान, कभी पद्य और गद्य में प्रशस्ति गान और कभी भाषणों और संदेशों के लेखन से लेकर उन सभी कामों में बढ़-चढ़ कर भागीदारी जताते रहते हैं जिन्हें आम लोग करना ठीक नहीं समझते।
छोटे-छोटे टटपुंजियों से लेकर बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों की हालत ऎसी होती जा रही है कि ये अपनी विद्या और बुद्धि का दुरुपयोग करते हुए विद्या की देवी सरस्वती और अपने पुरखों के अपमान का कोई विषय बाकी नहीं रखना चाहते। दुनिया में अपनी विद्या और बुद्धि का उपयोग नालायकों और मूर्खों के लिए करना हमारी सबसे बड़ी अज्ञानता और बौद्धिक दिवालियेपन का द्योतक है। हमारा अपना इलाका हो या दूसरे क्षेत्र। सब जगह हालात ये हैं कि बुद्धि के नाम पर लोग अपनी जायज-नाजायज भूख और प्यास मिटाने के लिए दिन-रात जाने क्या-क्या जतन कर रहे हैं। अपने आपको बुद्धिजीवी कहलाने और बड़े लोगों का प्रशस्तिगान करने वाले लोग हमारे आस-पास भी खूब संख्या में देखे जाते हैं। इनमें से कई सारे लोग तो ऎसे हैं जो बुद्धिहीनों के लिए बुद्धि बेचने भरे बाजार में खुद को लुटा रहे हैं। व्यक्ति चाहे कितना पढ़-लिख जाए, शिक्षाविद् और शिक्षाशास्त्री, विद्वान और बुद्धिमान, प्रज्ञावान आदि कितने ही नामों से भले ही दुनिया और मीडिया में छाया रहे, उसकी असलियत यही हुआ करती है कि वह उन लोगों से भी गया बीता होता है जो अनपढ़ हैं। अशिक्षित लोगों में भी इनसे ज्यादा ज्ञान होता है कि मनुष्य जन्म पाकर उन्हें क्या करना है और क्या नहीं करना चाहिए।
संसार भर के दार्शनिकों और उद्भट विद्वानों का अनुभव यही कहता है कि मूर्खों और नालायकों के लिए इस्तेमाल होने वाले लोग न सुखी रह सकते हैं, न शांत और स्वस्थ या आनंदमय। क्योंकि ये जिन लोगों के लिए हथियार के रूप में इस्तेमाल होते हैं उन लोगों को हमेशा नए हथियार चाहिए होते हैं और ऎसे में बुद्धि बेच कर कमा खाने वाले और प्रतिष्ठा पाने वाले लोग एक निश्चित समय तक ही बाजारों और पाश गलियों में अपनी पहचान कायम रख पाते हैं। कुछ समय बाद इन लोगों को फिर ‘पुनर्मूषको भवेत’ वाली स्थिति में लौटना ही पड़ता है। ये अलग बात है कि कई शातिर चूहे बड़े-बड़े लोगों के घरों, दफ्तरों और बेडरूम-बाथरूम्स से लेकर कीचन तक का पता रखने वाले होने की वजह से हर बार नए-नए मुखौटे धारण कर मुख्य धारा में आ ही धमकते हैं। और जब तक उनकी हकीकत का पता चलने लगता है तब तक परिवेश में इतना अधिक बदलाव आ चुका होता है कि इन्हें पहचानने वाले दूसरे पालों में जा दुबकते हैं। इतना सब कुछ होते रहने के बावजूद अपात्रों के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करने वाले लोेग जीवन के उत्तरार्ध में खुद को भी पराया महसूस करने लग जाते हैं और यहीं जाकर इन्हें शाश्वत सत्य का अच्छी तरह भान हो पाता है। इसलिए विद्या और बुद्धि के माध्यम से जीवन निर्माण और आशातीत सफलताएं पाने का स्वप्न सामने हो तो मूर्खों, नालायकों और बेईमानों के लिए अपनी बुद्धि का इस्तेमाल न करें, चाहे सामने वाले ये लोग कितने ही बड़े ओहदे पर क्यों न हों।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
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