कमल हासन की फिल्म विश्वरूपम को लेकर हुए विवाद को देखते हुए केंद्र सरकार ने सोमवार को सिनेमेटोग्राफ अधिनियम की समीक्षा के लिए एक न्यायिक समिति का गठन किया ताकि इस अधिनियम को और मजबूत बनाया जा सके और यह सुनिश्चित किया जा सके कि केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) से मंजूरी मिलने के बाद फिल्म का प्रदर्शन न रूके।
दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश मुकुल मुदगल की अध्यक्षता वाली इस आठ सदस्यीय समिति में फिल्म अभिनेत्री शर्मिला टैगोर और कवि, गीतकार एवं सांसद जावेद अख्तर भी शामिल हैं। सेंसर बोर्ड से प्रदर्शन की मंजूरी मिलने के बावजूद जे जयललिता के नेतृत्व वाली तमिलनाडु सरकार द्वारा विश्वरूपम के प्रदर्शन पर रोक लगाने की घटना के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने इस समिति का गठन किया है।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने पिछले हफ्ते कहा था कि सेंसर बार्ड से मंजूरी मिलने के बाद किसी फिल्म के प्रदर्शन से जुड़ी अनिश्चितता को दूर करने के लिए सिनेमेटोग्राफ अधिनियम की समीक्षा किए जाने की जरूरत है। तिवारी ने कहा था कि समिति इस बात पर विचार करेगी कि क्या अधिनियम के वैधानिक बनावट या विनियामक ढांचे को और मजबूत करने की जरूरत है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि राज्य सेंसर बोर्ड के फैसले को लागू करें। संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार किसी फिल्म को प्रदर्शन के लिए योग्य या अयोग्य प्रमाणित करने का अधिकार केंद्र के पास है।
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