उपेक्षा से ही संभव है इनका उन्मूलन
अक्सर यह सबके साथ होता है। आम तौर पर हमारी जिन्दगी में कई घटनाएं ऐसी होती हैं जो हमारे मन के अनुकूल नहीं हुआ करती हैं और ऐसे में हमारी संवेदनशीलता की वजह से पीड़ा होना स्वाभाविक ही है। लेकिन परेशानी वाली बात यह है कि हम इस पीड़ा को उस दिन मात्र की नहीं मानकर अपनी जिन्दगी का हिस्सा बना लेते हैं और बार-बार स्मरण करते रहकर दुःखी या खिन्न रहते हैं। बात घर-परिवार या समाज की हो अथवा मीडिया में आने वाली नकारात्मक खबरों की हो, इनका हम पर प्रभाव इसलिए पड़ता है कि हम संवेदनशील होते हैं। जो लोग संवेदनहीन हैं अथवा इस प्रकार के नकारात्मक विचारों या खबरों से बहुत दूर हैं उन्हें इनसे कोई फर्क नहीं पड़ता कि उनके बारे में या उनसे संबंधितों के बारे में क्या कुछ सामने आ रहा है और क्या प्रतिक्रियाएं हो रही हैं।
समाज में आजकल जो कुछ परोसा जा रहा है और सामने आ रहा है उसमें अधिकांश विचार या चर्चाएँ नकारात्मकता से भरी हुई होती हैं और इनमें से कई बातें तो ऐसी होती हैं जिनका सत्य या यथार्थ से दूर-दूर तक का कोई संबंध नहीं हुआ करता। ऐसी बातें सिर्फ औरों की संवेदनाओं को कुरेदने, परेशान या प्रताड़ित करने और मानसिक दुःख पहुंचाने के मकसद से ही की जाती हैं। ऐसी अधिकांश बातों का समाज से कोई संबंध नहीं होता और न ही इनसे समाज का कोई भला हो सकता है। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि समाज में नकारात्मक विचारों और बेहूदा चिंतन करने वाले लोगों का जमावड़ा होता जा रहा है क्योंकि किसी भी कर्म में अब बुद्धि या हुनर का पैमाना नहीं रहा है। हर कोई व्यक्ति हर कहीं घुसपैठ करने और हर प्रकार का काम करने के लिए तैयार हो जाता है।
बेकारी और बेरोजगारी के मौजूदा दौर में कई पेशों में ऐसे-ऐसे लोग घुस आए हैं जिनका विद्या, बुद्धि, हुनर, समाजसेवा, सामाजिक हितों या क्षेत्रीय विकास के स्वस्थ चिंतन, दूरदर्शी दिशा-दृष्टि आदि से कोई संबंध नहीं है। इनका सिर्फ एक ही लक्ष्य होकर रह गया है- पैसा कमाना और बनाना। इनके लिए समाजहित, क्षेत्र हित आदि सब गौण हैं। ऐसे में किसी भी पेशे से गुणवत्ता और सामाजिक हितों की बात सोचना बेमानी हो चला है। सब तरह फ्री स्टाईल है। जिसे जहाँ मौका मिलता है, औरों को धकिया कर घुस जाता है और फिर उन्मुक्त और स्वच्छन्द होकर वह हर काम कर गुजरता है जिससे बिना कुछ परिश्रम किए बहुत कुछ प्राप्त हो जाता है। कभी प्रलोभन और दबाव से तो कभी भभकी दिखाकर। और कुछ नहीं तो भिखारियों की तरह बड़े-बड़े कटोरे और तगारे सामने रखकर मिन्नतों के जरिये औरों को खुश रखने और करने की तमाम कलाबाजियों के हुनरों का सहारा लेकर।
इन स्थितियों में जो कुछ परिवेश में होने लगता है वह मानवीय वैचारिक प्रदूषण की भेंट चढ़ जाता है। इन तमाम स्थितियों में नकारात्मकता का बार-बार चिंतन करने, दूसरों के सामने रोना रोने अथवा अपनी स्थिति स्पष्ट करने जैसे फिजूल के कामों को त्यागना चाहिए। हमारे लिए, हमारे काम-काज के बारे में अथवा हमसे संबंधित परिवेशीय घटनाओं के बारे में मिथ्या चर्चाओं, भ्रमों, आशंकाओं और बातों आदि से संबंधित हर प्रकार की नकारात्मकता को कभी बांधे न रहें बल्कि इन्हें प्रारंभिक स्तर पर ही समाप्त कर दें। इसके लिए सबसे बड़ा और कारगर ब्रह्मास्त्र है उपेक्षा। इन विचारों व चर्चाओं तथा इनसे रस लेने वाले लोगों की पूरी तरह उपेक्षा कर दी जानी चाहिए।
यह प्रयास भी किया जाए कि किसी भी रूप में ये नकारात्मक विचार फिर सामने न आ पाएं। उपेक्षा से बढ़कर दुनिया में कोई ऐसा अस्त्र-शस्त्र नहीं है जो नकारात्मकता को नेस्तनाबूद और प्रभावहीन कर सके। इस प्रकार की बातों के प्रति उपेक्षा का भाव आ जाने पर हमारी कई सारी समस्याओं का खात्मा अपने आप होने लगता है। नकारात्मक लोग भी जब अपनी बेतुकी गतिविधियों की उपेक्षा होते देखते हैं तब वे अपनी ऊर्जा हम पर व्यर्थ नहीं करते बल्कि उनके लक्ष्य या तो भटक जाते हैं अथवा राह बदल लेते हैं। नकारात्मक सोच-विचार के लोगों को कभी भी अपना मानने या बनाने की कोशिश न करें क्योंकि ऐसे लोगों के जीवित रहने के लिए यही एक बड़ी पौष्टिक खुराक है कि लोग उनकी क्रियाओं पर प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए विवश हो जाएं।
जब ऐसे मूर्खों की हरकतों पर कोई प्रतिक्रियाएं सामने नहीं आती हैं तब इनका क्षरण अपने आप शुरू हो जाता है, इसके लिए हमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं पड़ती। इस आसान मार्ग को अपनाने वाले लोग खुद भी खुश रहते हैं और जमाने भर को खुश रख पाते हैं। मूर्खों, नालायकों और पशु बुद्धि के लोगों की तमाम हरकतों पर लगाम कसने का एकमात्र उपाय है - उपेक्षा....उपेक्षा और उपेक्षा। यह उपेक्षा ही ऐसे लोगों के लिए विष का काम करती है। इन लोगों की मानसिक और शारीरिक क्षरण यात्रा की शुरूआत ही उपेक्षा के रास्ते से होती है। ऐसे लोगों की उपेक्षा करें और समाज को इनसे बचाएँ। यही वर्तमान युग की सबसे बड़ी आवश्यकता और हमारा प्राथमिक फर्ज है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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