लोगों का सिर काटने के बाद पुलिस को चुनौती देने के लिए उनके शवों को तिहाड़ जेल के समीप फेंकने वाले एक सीरियल किलर को दिल्ली की एक अदालत ने मत्यु तक जेल की सजा सुनाई है। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कामिनी लाउ ने बिहार में मधेपुरा निवासी 44 साल के चंद्रकात झा को हत्या के उन तीन मामलों में से एक में आजीवन कारावास की सजा सुनायी जिनमें उसे दोषी साबित किया गया है। हत्या के दो अन्य मामलों में सजा की अवधि पांच और छह फरवरी को सुनायी जाएगी। न्यायाधीश ने कहा कि उसे वास्तविक आजीवन कारावास की सजा सुनाई जाती है। इसका अर्थ है कि उसे अपनी मत्यु तक जेल में रहना होगा।
झा को इसे पहले 1998 में एक हत्या के सिलसिले में पकड़ा गया था लेकिन पर्याप्त सबूत नहीं होने के कारण उसे बरी कर दिया गया। दिसंबर, 2007 में भी दिल्ली की एक अदालत ने उसे बरी कर दिया था कि क्योंकि पुलिस एक अन्य हत्या मामले में उसके खिलाफ आरोपपत्र दाखिल करने में विफल रही थी। अदालत ने आज दिल्ली की हत्या के सिलसिले में उसे सजा सुनाई। दिलीप का सिर विहीन शव 2007 में तिहाड़ जेल के समीप फेंक दिया गया। उसे अमित और उपेन्द्र की हत्या का भी दोषी ठहराया गया जिनके सिर विहीन शव तिहाड़ के समीप क्रमश: 2006 और 2007 में पाए गए थे।
हत्या करने के बाद झा ने कई पत्र लिखकर पुलिस को उसे पकड़ने की चुनौती दी थी। सफेद कुर्ता पायजामा और भूरी टोपी पहने झा को आज दोपहर सवा दो बजे अदालत में पेश किया गया। जब उसे सजा सुनाई जा रही थी वह शांत लग रहा था।पुलिस के अनुसार झा हत्या के कम से कम छह मामलों में शामिल है। अदालत ने उसे तीनों मामलों में परिस्थितिजन्य एवं फारेंसिक सबूतों के आधार पर हत्या का दोषी माना हैं। इन साक्ष्यों में हस्तलिपि विशेषज्ञों ने इस तथ्य की पुष्टि की है कि शवों के समीप बरामद पत्रों की हस्तलिपि झा की थी। पुलिस ने कहा कि झा अपने शिकार को अपने साथ रहने को कहता और उनकी अच्छी देखभाल करता था। कुछ समय बाद, वह उनसे परेशान हो जाता था और उनकी गतिविधियों से नाराज हो जाता। पुलिस के अनुसार झा अपने शिकार के हाथ पैर बांध कर उनका गला दबा देता था।
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