दंड पर फैसला से पहले सलाह मशविरे की जरूरत. - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 4 फ़रवरी 2013

दंड पर फैसला से पहले सलाह मशविरे की जरूरत.


सरकार ने आज कहा कि किशोर न्याय कानून में परिभाषित किशोर की उम्र सीमा कम करने और जघन्य अपराध करने वाले नाबालिग को कडा दंड देने के बारे में कोई फैसला करने से पहले व्यापक पैमाने पर सलाह मशविरे की जरूरत है। वित्त मंत्री पी चिदंबरम और सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी ने यहां संवाददाताओं से बातचीत के दौरान महिलाओं के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए कडे दंडात्मक प्रावधानों वाला अध्यादेश लाने के फैसले को सही ठहराया।

उन्होंने महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा पर अध्यादेश लाने के फैसले को सही ठहराते हुए कहा कि इस तरह का कानून जल्द से जल्द लाने की सार्वभौमिक मांग के मद्देनजर ही यह कदम उठाया गया। सरकार ने कहा कि यह अध्यादेश ज्यादा से ज्यादा लोगों की सहमति के फलस्वरूप आया है।

चिदंबरम ने संवाददाताओं से कहा कि अध्यादेश अपराधियों के लिए निवारक का काम करेगा। उन्होंने कहा कि न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति की सभी सिफारिशों को हालांकि इस अध्यादेश में शामिल नहीं किया गया है लेकिन समिति के किसी भी सुझाव को नामंजूर नहीं किया गया है। उन्होंने कहा कि इस मुद्दे पर चर्चा के लिए विधेयक संसद में पेश किया जाएगा और आम सहमति बनने के बाद इसे पारित किया जाएगा। चिदंबरम ने कहा कि सरकार को उम्मीद है कि अध्यादेश में कडे प्रावधान अपराधियों के लिए तब तक निवारक का काम करेंगे जब तक संसद कोई नया कानून नहीं बना लेती। राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अध्यादेश को कल ही मंजूरी दी है।

वित्त मंत्री मीडिया पर मंत्रीसमूह के अध्यक्ष हैं। उन्होंने इस बात से इंकार किया कि सरकार ने अध्यादेश लाकर जल्दबाजी की है। चूंकि किसी आपराधिक कानून को बीती घटना पर लागू नहीं किया जा सकता इसलिए अध्यादेश लाने की आवश्यकता पडी। उन्होंने कहा कि हम एक गंभीर मुद्दे से निपट रहे हैं। ‘‘ मैं हर किसी से अपील करता हूं कि इसे पूरी गंभीरता और संवेदनशीलता के साथ देखा जाए। मैं हर किसी से अपील करता हूं कि संविधान में प्रदत्त विधायी प्रक्रिया का सम्मान किया जाए।’’ किशोर न्याय कानून में संशोधन कर आयु सीमा कम करने की मांग के बारे में चिदंबरम ने कहा कि इसके लिए आम सहमति बनानी होगी और इसके लिए अलग से विधेयक लाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि एएफएसपीए (सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून) में संशोधन की मांग के प्रति भी अभी कोई आम सहमति नहीं बनी है।

वित्त मंत्री ने कहा कि कल लागू हुए अध्यादेश में 22 धाराएं हैं, जिनमें से 11 धाराएं आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2012 से ली गयी हैं। तिवारी ने कहा कि सरकार के लिए अनिवार्य है कि अध्यादेश की जगह विधेयक संसद में पेश किया जाए और छह सप्ताह के भीतर विधेयक को पारित कराया जाए। उन्होंने इस बात से इंकार किया कि अध्यादेश जल्दबाजी में लाया गया है। उन्होंने कहा कि यह अध्यादेश गंभीर प्रयासों का नतीजा है। संसद में दलगत राजनीति से उपर उठकर इस मुद्दे पर चर्चा होनी चाहिए। चिदंबरम ने कहा कि किशोर की आयु कम करने के मुद्दे पर गृह मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय विचार करेगा।

चिदंबरम ने कहा कि किशोर न्याय कानून एक अलग कानून है। आयु सीमा कम की जाए या नहीं, इसे कुछ खास किस्म के अपराधों के लिए (जिन्हें जघन्य अपराध की श्रेणी में माना जाता है) कम किया जाए या नहीं, , ऐसा मामला है, जिस पर पूरी सतर्कता से विचार करने की आवश्यकता है और यह संविधान की मान्य सीमाओं के तहत होना चाहिए। जरूरत पडी, तो सरकार इस मुद्दे को संसद में रखेगी। उन्होंने कहा कि वैवाहिक बलात्कार और कार्यस्थल पर उत्पीडन जैसे मुद्दों पर आम सहमति के अभाव में, ही इन्हें अध्यादेश में शामिल नहीं किया गया है।

चिदंबरम ने कहा कि अध्यादेश इसलिए लाया गया क्योंकि महिलाओं के खिलाफ अपराध ऐसा मामला है, जिसमें विलंब नहीं किया जा सकता। केवल अध्यादेश के जरिए ही कानून तत्काल बनाया जा सकता है जबकि विधेयक पारित कराने में समय लगेगा। अध्यादेश में आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2012 के कुछ प्रावधान शामिल किये गये हैं। यह विधेयक अभी गृह मामलों की संसद की स्थायी समिति के विचाराधीन हैं। समिति की सिफारिशों को महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा संबंधी विधेयक में शामिल किया जाएगा। अध्यादेश को केवल ‘ शुरूआती बिन्दु ’ बताते हुए चिदंबरम ने कहा कि राजनीतिक पार्टियों सहित सभी वर्ग के लोगों को इस मुद्दे पर समर्थन देना चाहिए।

वित्त मंत्री ने और अधिक त्वरित अदालतों के गठन की आवश्यकता जताते हुए कहा कि इसके लिये और अधिक न्यायाधीशों की भी जरूरत है। उन्होंने कहा कि पुलिस बल विशेषकर सिपाही स्तर के कार्मिकों को अधिक संवेदनशील बनाने की भी आवश्यकता है। आपराधिक कानून (संशोधन) अध्यादेश 2013 में अलगाव के दौरान किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ की गयी यौन हिंसा के लिए भी दंड बढाया गया है और अब इस अपराध के लिए सात साल तक की कैद हो सकती है । राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कल ही इस अध्यादेश को मंजूरी दी है। अध्यादेश की जानकारी देते हुए चिदंबरम और तिवारी ने बताया कि धारा-376 (बलात्कार) की उपधारा-1 या उपधारा-2 के तहत दंडनीय अपराध करने वाले व्यक्ति, जिसके अपराध के फलस्वरूप कोई जख्मी होता है और बाद में उसकी मौत हो जाती है या फिर वह कोमा जैसी स्थिति में पहुंचता है तो उसे कडे कारावास की सजा होगी। यह सजा 20 साल से कम नहीं होगी लेकिन इसे आजीवन कारावास तक बढाया जा सकता है यानी उसके स्वभाविक जीवन के शेष बचे हिस्से के दौरान उसे कारावास में ही रहना होगा या फिर उसे सजा ए मौत हो सकती है।

ऐसे मामलों में जहां किसी व्यक्ति के साथ एक या अधिक लोग यौन हिंसा करते हैं तो हर अपराधी को कम से कम 20 साल के कडे कारावास की सजा हो सकती है। इसे बढाकर आजीवन कारावास भी किया जा सकता है यानी उसके शेष बचे जीवन के हिस्से के दौरान उसे जेल में रहना होगा और पीडिता को मुआवजा भी देना होगा।

अध्यादेश के मुताबिक तेजाब फेंकने से यदि किसी को स्थायी या अस्थायी नुकसान पहुंचता है या वह गंभीर रूप से जख्मी होता है तो ऐसे अपराध के लिये अपराधी को कम से कम दस साल और अधिकतम उम्र कैद की सजा हो सकती है। इसके अलावा इस अपराध के लिये उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है, जो अधिकतम दस लाख रूपये हो सकता है।

यौन हिंसा का अपराध बार बार करने वाले को आजवीन कारावास होगा। इसका मतलब है कि उसे स्वाभाविक जीवन का शेष हिस्सा जेल में गुजारना पड सकता है या फिर उसे मौत की सजा हो सकती है। यदि कोई पुलिस अधिकारी या सरकारी कर्मचारी या सशस्त्र सेनाओं का कोई कर्मी यौन हिंसा का दोषी पाया जाता है तो उसे कम से कम दस साल के सश्रम कारावास की सजा मिलेगी। इस सजा को आजीवन कारावास में तब्दील भी किया जा सकता है । इस अपराध के लिये जुर्माने का भी प्रावधान है।

किसी का पीछा करना, गलत नीयत से घूरना या महिलाओं के प्रति अन्य किस्म के अपराधों के लिए भी दंडात्मक प्रावधान किये गये हैं। अवांछित शारीरिक संपर्क, यौन अनुग्रह या मांग या इस इरादे से किसी को ओर बढना भी अपराध की श्रेणी में रखा गया है और इसके लिए पांच साल की कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान किया गया है।

अश्लील टिप्पणी या अश्लील फिल्म दिखाना, मौखिक या गैर मौखिक रूप से कोई यौन दुराचरण करने की स्थिति में सजा का प्रावधान है जिसे बढाकर एक साल किया जा सकता है या जुर्माना भी हो सकता है या फिर दोनों का प्रावधान है।

गलत नीयत से किसी को घूरने की स्थिति में कम से कम एक साल की कैद का प्रावधन है जिसे तीन साल तक बढाया जा सकता है। ऐसे मामलों में पहली बार अपराध के लिए जुर्माना किया जाएगा । दूसरी बार या इसके बाद कई बार इस तरह का अपराध करने की स्थिति में सात साल का कारावास हो सकता है और जुर्माना लगाया जाएगा। पीछा करने के लिए कम से कम एक साल के कारावास का प्रावधान है, जिसे बढाकर तीन साल किया जा सकता है और ऐसे मामलों में दोषी को जुर्माना भी देना होगा। 

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