अधिकार यात्रा के दौरान खगड़िया में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के काफिले पर हुए हमले के मामले में एसआईटी ने चार्जशीट दायर कर दी है. रिपोर्ट के मुताबिक हमला पूर्वनियोजित था. इसमें शिक्षकों की भूमिका कम और विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं की संलिप्तता ज्यादा पाई गई है. हालांकि कई जगहों पर हुए बवाल व हिंसा में कुछ शिक्षकों के भी शामिल रहने की बात कही गई है लेकिन इसकी शुरुआत मुख्यत: राजनीतिक दलों से जुड़े नेताओं द्वारा बलुआही से की गई. चश्मदीद गवाहों, वीडियो फुटेज, गवाहों के बयान व मोबाइल कॉल के विश्लेषण के बाद जांच के लिए गठित एसआईटी इस नतीजे पर पहुंची है. इस सिलसिले में अबतक तीन अलग-अलग चार्जशीट दायर की गई.
27 सितम्बर को अधिकार यात्रा के दौरान खगड़िया में मुख्यमंत्री के काफिले पर जानलेवा हमला किया गया था. कई जगहों पर काफिले को निशाना बनाने की कोशिश की गई और जमकर तोड़फोड़ की गयी थी. किसी तरह मुख्यमंत्री सभा को संबोधित कर मधेपुरा के लिए रवाना हो सके थे. नियोजित शिक्षकों पर घटना को अंजाम देने का आरोप लगा था. मामले की गंभीरता को देखते हुए पूरे घटनाक्रम की जांच के लिए एसआईटी बनाई गई. कई दिनों की जांच के बाद एसआईटी इस नतीजे पर पहुंची है कि घटना अचानक नहीं हुई बल्कि इसका ताना-बाना पहले ही बुना गया था. इसमें प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा कुछ संगठनों के नेता व कार्यकर्ता भी शामिल थे.
27 सितम्बर की घटना-एसआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री के बेगूसराय से खगड़िया आगमन से पहले ही बलुआही चौक के पास एनएच 31 को वार्ड पाषर्द शिवराज यादव, चंदन कुमार, मनोहर यादव, बाबू लाल शौर्य, नागेन्द्र सिंह त्यागी आदि के नेतृत्व में भीड़ ने जाम कर दिया. प्रशासन द्वारा समझाने-बुझाने पर वे सड़क से हटकर अगल-बगल खड़े हो गए. जब मुख्यमंत्री का काफिला खगड़िया में प्रवेश कर रहा था तभी बलुआही चौक के पास जमे लोग पूर्व नियोजित साजिश के तहत नेताओं के इशारे पर सड़क पर आ गए.
सुरक्षा बलों ने किसी तरह वहां से सीएम के काफिले को निकाल लिया. काफिला निकलने के बाद वहां मौजूद भीड़ सहनी टोला होते हुए समाहरणालय के सामने कचहरी रोड पहुंच गई. पहले से ही समाहरणालय गेट के पास राजनीतिक दल के नेता समर्थकों के साथ प्रदर्शन कर रहे थे. काफिले के पहुंचते ही बलुआही से आई भीड़ और वहां पहले से खड़े प्रदर्शनकारी मिलकर रोड़ेबाजी करने लगे. पथराव के लिए रेलवे पटरी पर रखे पत्थरों का प्रयोग किया गया. यह सबकुछ नेताओं के इशारे पर हो रहा था. भीड़ से एक राउंड फायरिंग भी की गई.
एसआईटी के मुताबिक योजनाबद्ध तरीके से भीड़ इधर-उधर फैलकर हिंसा पर उतारू थी.
साजिश के संबंध में एसआईटी का तर्क है कि बलुआही व समाहरणालय के पास मौजूद भीड़ का नेतृत्व कर रहे नेताओं के न सिर्फ मधुर संबंध हैं बल्कि वे घटना के दौरान भी एक-दूसरे से मोबाइल पर संपर्क बनाए हुए थे. उधर शिक्षक नेता मनीष सिंह के नेतृत्व में नियोजित शिक्षकों ने बाजार समिति सभा स्थल में घुसने का प्रयास किया. पास सिस्टम होने के चलते उन्हें रोक दिया गया तो वे मनीष सिंह के नेतृत्व में बाहर तोड़फोड़ करने लगे. इसके बाद उन्होंने सभास्थल की ओर जानेवाली सड़क को जाम कर दिया जहां उनकी पूर्व विधायक रणवीर यादव व उनके समर्थकों के बीच सड़क खाली कराने को लेकर झड़प हो गई. रिपोर्ट के मुताबिक इस वारदात के बाद मनीष सिंह के गांव वाले और समर्थक सूर्य मंदिर चौक के पास जमा हो गए.
राजनीतिक दल के कार्यकर्ता भी वहां पहुंच गए. परिसदन में रुकने के बाद करीब 5 बजे मुख्यमंत्री का काफिला सभास्थल के लिए निकला. काफिला जैसे ही गौशाला मोड़ से सूर्य मंदिर चौक की ओर बढ़ा, भीड़ ने नारेबाजी करते हुए पथराव कर दिया. सुरक्षा बलों ने मुख्यमंत्री को काफिले के साथ सभास्थल तक पहुंचाया. सभास्थल से मधेपुरा जाने के दौरान दोबारा सूर्य मंदिर चौक के पास पत्थरबाजी हुई पर माडर होते हुए उसे सुरक्षित एनएच 31 पर ले जाया गया. काफिला जाने के बाद 6.30 बजे समाहरणालय के विधि शाखा में उपद्रवियों ने तोड़फोड़ व आगजनी की.
कई को क्लीन चिट- घटना को लेकर खगड़िया के चित्रगुप्त नगर थाना में कांड संख्या 507/12 दर्ज किया गया जिसमें 75 नामजद व 5-6 सौ अज्ञात उपद्रवियों पर धारा 147/148/ 149/ 160/ 323/ 332/ 337/ 307/ 353/ 379/ 427/ 435/ 436/ 120 बी/ 504 भादवि, 27 आर्म्स एक्ट एवं 3/4 प्रिवेंशन ऑफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी एक्ट 1984 लगा है. लेकिन जांच के बाद दायर तीन चार्जशीट में एक में कुछ धाराएं नहीं लगाई गई हैं.
वीडियो फुटेज, साक्ष्य नहीं होने और चश्मदीद के बयान में नामों का उल्लेख नहीं होने के चलते कुछ लोगों को क्लीन चिट दी गई पर चार्जशीट में जिनके नाम शामिल हैं उनके खिलाफ पुख्ता साक्ष्य होने का दावा किया गया है. इसमें मोबाइल कॉल डिटेल्स के साथ घटनास्थल के आसपास उनके लोकेशन, वीडियो फुटेज में मौजूदगी और दूसरे कई सबूत मौजूद हैं. घटनाक्रम में एसआईटी को कई बड़े राजनीतिज्ञों की भूमिका संदिग्ध प्रतीत होती है पर अबतक के अनुसंधान में उनके खिलाफ आरोप-पत्र समर्पित करने हेतु पर्याप्त साक्ष्य नहीं मिले हैं.
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