एक समय में एक ही काम करें !!!
आजकल हर आदमी बाहरी चकाचौंध और असीमित विधाओं एवं हुनर से प्रभावित होकर चाहता है कि वह हर फन में माहिर हो जाए और ऎसे मुकाम पर पहुंच जाए जहाँ कि उसे खूब पैसा और शौहरत प्राप्त हो। इसके लिए व्यक्ति हर कहीं नज़र दौड़ाता है, हाथ-पाँव मारता है और उन सारे हथकण्डों या उपायों का सहारा लेता है जो उसे कुछ न कुछ प्राप्ति कराते रहें। इसके लिए एक किस्म के लोग अच्छे और सकारात्मक कर्मों का सहारा लेते हैं और इनका लक्ष्य होता कि दूसरों को बिना कोई कष्ट पहुँचाये या उनके हकों की छीना-झपटी किए बगैर अपने व्यक्तित्व और कर्मयोग को व्यापक, उदात्त एवं उच्चतम श्रेणी प्रदान करते हुए आगे बढं़े। दूसरे किस्म के लोग ऎसे होते हैं जो अपने स्वार्थ और लाभों को पाने के लिए हरचंद कोशिश करते रहते हैं और अपने छोटे से स्वार्थ या ऎषणाओं को पूरा करने के लिए ये दूसरों का बुरा करने की किसी भी हद तक जा सकते हैं।
एक मामले में देखा जाए तो इनके जीवन के लक्ष्य और वृत्तियाँ दिखने में भले ही कैसी भी लगें पर असल में होती हैं हिंसक और क्रूर। जो इनके प्रत्येक कर्म, आचरण और व्यवहार में अपने आप परिलक्षित होती रहती हैं। इनके हाव-भाव और काम करने तथा कराने और काम निकलवाने के सभी तौर-तरीकों से अपने आप यह लग ही जाता है कि ये अपने कामों और लक्ष्यों को पाने के लिए किसी भी हद तक नीचे गिर सकते हैं। हर आदमी की कार्यशैली अलग-अलग होती है और यह जरूरी नहीं कि यह जितनी अपने लिए कारगर होती है उतनी ही दूसरों के लिए भी हो ही क्योंकि व्यक्ति की मानसिकता और प्रवृत्ति के अनुरूप ही सभी प्रकार के परिणाम सामने आते हैं। भावना और कर्म के प्रति श्रद्धा ही वह सर्वोपरि कारक हुआ करती है जिनसे किसी भी कर्म की समयबद्ध पूर्णता, गुणवत्ता और प्रभावों का आकलन हो सकता है। कर्म और परिणामों की इस पूरी यात्रा में सबसे बड़ी बात कर्म विशेष के प्रति श्रद्धा, समर्पण और लगाव ही महत्त्वपूर्ण है।
किसी भी काम को यदि पूर्णता देनी हो तथा यादगार एवं अनुकरणीय बनाना हो तो उसके लिए जरूरी है कि एक समय में एक ही काम करें और उसी के प्रति एकाग्रचित्त रहें। इससे कर्म के प्रति तल्लीनता का लाभ यह होगा कि जो काम हम करेंगे वह समय पर पूरा होगा, पूरी गुणवत्ता के साथ पूरा होगा तथा जिनके लिए किया जा रहा है उनके लिए ज्यादा से ज्यादा उपयोगी सिद्ध होगा। इससे भी अव्वल बात यह है कि ऎसे कार्यों की खुशबू लम्बे समय तक बनी हुई रहकर अनुकरणीय होती है और आने वाली पीढ़ियों तक इस गंध को महसूस किया जाता है। कोई सा कर्म क्यों न हो, इसकी सफलता के लिए यह जरूरी है कि एक समय में एक ही प्रकार का काम किया जाए। जो लोग इस नैसर्गिक सिद्धान्त का उल्लंघन करते हैं उनके जीवन में कोई सा काम न समय पर पूरा हो सकता है और न ही काम का परिणाम मनोनुकूल प्राप्त हो पाता है।
अपनी ज्ञानेन्दि्रयों और कर्मेन्दि्रयों से सीखने की कोशिश करें जो कि इस सिद्धान्त का पालन करती हैं। जैसे मुँह से खान-पान और वाणी का काम होता है और ऎसे में जब खा-पी रहे हों तब बोलने की क्रिया को विराम देना चाहिए और मौन होकर भोजन करना चाहिए इससे भोजन का पूरा फल प्राप्त होता है और वह शरीर के लिए उपयोगी साबित होता है। इसी प्रकार पानी या और किसी प्रकार का तरल पदार्थ लेते हुए वाणी को विराम देना चाहिए। जब वाणी का उपयोग हो रहा हो उस समय खान-पान को विराम देना चाहिए। जो लोग खान-पान करते हुए कुछ न कुछ चर्चाओं को करते रहने और बोलने के आदी होते हैं उनका भोजन तो निरस हो ही जाता है, ऎसे लोगोें की जबान भी तुतली हो जाती है और सामान्यतया ऎसे लोगों की वाणी सामने वालों पर कोई प्रभाव नहीं छोड़ पाती चाहे वे किसी भी सामान्य सी बात के लिए अपने मुँह से हजारों शब्दों की बौछार क्यों न करते रहें। दूसरी ओर जो लोग खान-पान के समय मौन रहते हैं या बोलते समय खान-पान से दूर रहते हैं उन लोगों की वाणी का प्रभाव और उच्चारण ज्यादा शुद्ध और प्रभावोत्पादक होता है।
जिन लोगों की जबान बोलते समय लड़खड़ाती है, तोतला बोलते हैं या वाणी का उच्चारण स्पष्ट नहीं निकल पाता उन सभी लोगों को चाहिए कि यदि अपनी वाणी शुद्ध करना चाहें तो यह संकल्प ग्रहण कर लें कि बोलना और खाना-पीना कभी एक साथ नहीं करेंगे। यह बात उन सभी लोगों पर भी लागू होती है जो पान-गुटखा और तम्बाकू चबाते रहते हुए बोलते हैं। इससे भी उनकी वाणी दूषित होती है और उनके द्वारा उच्चारित प्रत्येक शब्द झूठा हो जाता है और यही कारण है कि इनकी वाणी का ठोस प्रभाव सामने नहीं आ पाता। इसी प्रकार शरीर की दूसरी महत्त्वपूर्ण कर्मेन्दि्रयों के व्यवहार को भी समझने की कोशिश करनी चाहिए जो अपने आप एक समय में एक ही काम करती हैं और उनसे दूसरा काम नहीं लिया जा सकता। किसी कारण से ये दोनों काम एक साथ करना शुरू कर देती हैं तो समझ लेना चाहिए कि अंतिम समय में ही ऎसा होता है या यह अंतिम समय बस आने ही वाला है। एक समय में एक ही काम का सिद्धांत सभी स्थानों पर लागू होता है चाहे वह अपने घर-गृहस्थी के काम हों या फिर कर्मस्थलों के अथवा यायावरी। कर्म के प्रति दत्त चित्त होकर ही जीवन के तमाम लक्ष्यों में सफलता पायी जा सकती है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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