मनुष्य ईश्वर का ही अंश है और इसलिए परस्पर सीधा संबंध रहता आया है। ईश्वरीय रश्मियां और संकेत प्रत्येक मनुष्य तक पहुंचती जरूर हैं लेकिन हम उन्हें प्राप्त करने और समझने की क्षमता खो बैठे हैं। इसका मूल कारण यह है कि हममें पहले की तरह निर्मलता, शुचिता और निष्कपटता के भाव समाप्त हो गए हैं। हमारी बुद्धि तथा मन पर मैली वृत्तियों, स्वार्थ, राग-द्वेष, ईष्र्या और दूसरे आसुरी भावों का जबर्दस्त आधिपत्य इतना है कि अच्छी बातें और श्रेष्ठ विचारों की पहुंच हम तक होने के बावजूद हमारी ग्राह्यता क्षमता का ह्रास हो चला है। मनुष्य के जीवन में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त जो-जो भी अच्छी-बुरी घटनाएँ हुआ करती हैं उनके घटित होने से पहले ईश्वर की ओर से हमें किसी न किसी रूप में एक, दो या तीन बार संकेत प्राप्त हो जाते हैं। इन संकेतों की हम तक पहुंच तो नियमित रूप से होती रही है लेकिन हम उन्हें पकड़ पाने का सामथ्र्य भुला बैठे हैं अथवा पूर्वाभास हो जाने के बावजूद संभल नहीं पाते और अवज्ञा कर देते हैं जिसका खामियाजा हमें निश्चित ही भुगतना पड़ता है जिसका अहसास हमें तब होता है जब हमारे हाथ में कुछ नहीं होता, सिवाय सब कुछ चुपचाप मूक पशु की तरह देखते रहने के।
ईश्वरीय संकेतों की मनुष्य तक पहुंच का यह दौर तभी से शुरू हो जाता है जब हम मनुष्य के रूप में जन्म लेते हैं। ईश्वरीय संकेतों को पहचानने और समझ पाने का सामथ्र्य हमारे चित्त की शुद्धि, पवित्रता और सहजता पर निर्भर हुआ करती है। हम जितने अधिक निर्मल, निरहंकारी, निर्मोही, निष्कपट और सहज रहेंगे, उतने ही ये संकेत हमें स्पष्ट सुनाई देंगे या अनुभवित होंगे। आज के युग में ऎसे लोग बहुत कम रह गए हैं जिनमें ईश्वरीय संकेतों को पकड़ पाने का सामथ्र्य है। निस्पृही और भगवद्मार्गी, संस्कारित, सदाचारी लोगों के जीवन में होने वाली प्रत्येक प्रकार की घटनाओं का पूर्वाभास इन्हें पहले ही हो जाता है। लेकिन अधिकांश लोग ऎसे हैं जिन्हें ईश्वरीय संकेत का ज्ञान नहीं होता। इसका यह अर्थ नहीं है कि ये संकेत उन तक नहीं पहुंचते, बल्कि सच तो यह है कि ईश्वरीय संदेश और जीवन निर्माण व परिवेश से जुड़े दिव्य विचारों का प्रवाह उन तक नियमित रूप से होता रहता है मगर प्राप्तकत्र्ताओं के मनोमालिन्य के साथ ही पवित्रता के अभाव के साथ ही हमेशा सांसारिक वृत्तियों में रमे रहने वाले लोग हमेशा ऎसे मायावी शोरगुल में रमे रहते हैं कि उन्हें इस संकेतों का आभास तक नहीं हो पाता है और ये संकेत अपनी अवज्ञा का मलाल लिये हुए वापस लौट पड़ते हैं।
ऎसे में इन लोगों को बाद में दुःखी होना पड़ता है और ये अपने दुर्भाग्य या गलतियों के लिए ईश्वर को दोषी ठहराते रहते हुए जिन्दगी भर कोई न कोई रोना रोते रहते हैंं। हम चाहें कितने ही व्यस्त क्यों न हों, अपनी रोजमर्रा की जिन्दगी में हमें कुछ मिनट ऎसे निकालने चाहिएं जब हम शून्य में जाने की कोशिश करें। यह समय पूजा-पाठ या ध्यान का हो सकता है या फिर जब फुरसत मिले तब। कोशिश यह होनी चाहिए कि रोजाना कुछ न कुछ समय जरूर निकालें। होता यह है कि ईश्वरीय संकेत अपने करीब आने के बाद अपने आभामण्डल का चक्कर काटते रहते हैं और उस क्षण की प्रतीक्षा करते हैं जब हम सांसारिक वृत्तियों और विचारों से पूरी तरह मुक्त होकर शून्यावस्था में न आ जाएं। अपनी सांसारिक वृत्तियों से चित्त के मुक्त हुए बगैर ईश्वरीय संकेतों का हमारे मन-मस्तिष्क में प्रवेश होना कदापि संभव नहीं है। एक निश्चित सीमा तक ये संकेत हमारे इर्द-गिर्द परिक्रमा करते रहते हैं और समय नहीं मिल पाने पर लौट जाते हैं।
हरेक व्यक्ति की जिन्दगी में यह क्रम लगातार बना रहता है लेकिन हमारा दुर्भाग्य यह है कि हम अपने स्वार्थों और संसार भर में इतने रमे रहते हैं कि कुछ क्षण भी अपने या ईश्वर के लिए नहीं निकाल पाते हैं। हालात ये हैं कि हम शौच के लिए जाते हैं तब भी कोई न कोई अखबार या मैग्जीन लेकर जाते हैं, वहाँ भी हमें चैन नहीं है। दिन और रात भर में हमारा चित्त कुछ न कुछ उधेड़बुन में लगा रहता हैार भर भ् और ऎसे में हम कभी निर्विचार हो ही नहीं पाते हैं। जैसे-जैसे यांत्रिक युग के उपकरणों का प्रचलन बढ़ा है हालात ये हो गए हैं कि हम इन यंत्रों का बिना विचारे अंधाधुंध उपयोग करते जा रहे हैं। मोबाइल से गाने सुनने, बातें करते रहने, एसएमएस करते रहने, इंटरनेट पर सर्फिंग, मोबाइल और कम्प्यूटर पर गेम में घुसे रहने, सोशन नेटवर्किंग साईटों या फालतू की साईट्स देखने, टीवी, रेडियो और टेपरिकार्डर आदि का उपयोग करते रहने, पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने और काम-काज नहीं होने की स्थिति में फालतू की बकवास, बेतुकी चर्चाओं और विचारों में रमे रहते हैं।
यानि की दिन और रात में कोई एक क्षण हमारे जीवन में ऎसा नहीं आता है जब हम निर्विचार हों। यही स्थिति हमारे पूरे जीवन के लिए दुर्भाग्यशाली है और जब तक हम अपनी इस आदत को नहीं सुधारेंगे, तब तक हम अपने जीवन, अपने परिजनों की जिन्दगी और परिवेशीय भावी घटनाओं और दुर्घटनाओं के बारे में आने वाले ईश्वरीय संकेतों को प्राप्त नहीं कर पाएंगे। ऎसे में सारा दोष ईश्वर का नहीं बल्कि अपना है। ईश्वरीय संकेतों को पाने और समझने के लिए समय निकालें और यह प्रयास करें कि रोजाना कुछ न कुछ क्षण ऎसे हों जो नितान्त अपने लिए हों। इसकेे साथ ही यह भी अभ्यास करें कि जितना हो सके निर्विचार और शून्य में जाने का प्रयास करें ताकि ईश्वरीय संकेतों को अधिक से अधिक प्राप्त कर जीवन निर्माण की राह को सुनहरी बना सकें।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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