साल भर काम करें, मार्च का रोना न रोएं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शुक्रवार, 22 मार्च 2013

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साल भर काम करें, मार्च का रोना न रोएं


आजकल हर कहीं मार्च ही मार्च की चर्चा है। सहायक कर्मचारियों और अतिरिक्त कर्मचारियों  से लेकर सरकारी हाकिमों और हुक्मरानों तक मार्च का शोरगुल पसरा हुआ है। बिजनैसमेनों से लेकर ले मैनों तक मार्च ही मार्च की कॉलर ट्यून और रिंग टोन सुनाई देने लगी है। जो लोग साल भर तक कुछ न कुछ करते रहते है। वे भी, और जो मार्च आने पर जग पाते हैं वे भी, और जो मार्च में भी सोये रहते हैं वे भी, सारे के सारे अचानक हड़बड़ाकर जगे और उठ खड़े हुए हैं इन दिनों। मार्च का कहीं वाकई दबाव है तो कहीं मार्च का ब्रह्मास्त्र इतना तगड़ा है कि जो कोई काम करना ही नहीं चाहते अथवा जिनके पास कोई काम नहीं है उनके लिए भी मार्च का बहाना ईश्वरीय सत्ता से भी बढ़कर कमाल दिखा रहा है।

दफ्तरों से लेकर बैंकों और सचिवालय के लेकर मंत्रालयों के गलियारों तक फाईलों को हाथ में लिए, काख में दबाये और अटैचियों में भरे बोरी भर कागजों और दस्तावेजों को लिये हुए खूब सारे लोग देर रातों तक मार्च करने लगे हैं। हर तरफ मार्च ही मार्च है जैसे गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस की परेड़ का पूर्वाभ्यास हो रहा हो। मार्च की समस्या कई विषयों की जननी है। इसी माह प्रसूत होते हैं जाने कितने ही बहाने, कमियां, तनाव, समय की कमी, लोगों की असलियत, काम करने और कराने के पीछे की भावनाएँ और वे कितने ही  सारे सच जो अनकहे और अलख हैं। मार्च का महीना कई लोगों को तनावों की वजह से बीमार भी कर देने वाला होता है। कइयों की बीपी और शुगर बढ़ जाता है, हाईपरटेंशन और अनिद्रा की समस्या घेर लेती है और जाने कितनी ही तरह के फोबियाओं का मायाजाल इस मायने में अपने आस-पास पसर जाता है।

आजकल काम के बोझ की बजाय इसका शोरगुल ही ज्यादा है वरना मार्च में वे सारे काम किस ढंग से हो जाते हैं जिनके लिए कभी लोगों की कमी, कभी किसी की कामचोरी या ढिलाई अथवा काम के बोझ का रोना रोया जाता रहा है। होता यह है कि मार्च के तनावों या संत्रासों के लिए हम ही जिम्मेदार हुआ करते हैं। जो काम हमें रोजाना या हर माह करने चाहिएं और उनसे मुक्ति पा लेनी चाहिए उन कामों को भी हम लगातार टालते हुए मार्च तक ले आते हैं। जिनके पास लक्ष्य हैं वे भी, और जिनके पास लक्ष्य नहीं हैं वे भी कार्यपूर्णता के मामले में साल भर लक्ष्यहीन बने रहने का खामियाजा मार्च में भुगतने को विवश हो जाते हैं। जहाँ कहीं टीम भावना से काम होते हैं, जहाँ समय पर कार्य संपादन और पूर्णता करने के प्रति गंभीरता बरती जाती है वहाँ मार्च का माह करीब-करीब फागुनी मस्ती का आनंद देने वाला होता है क्योंकि साल भर नियमित कार्य पूर्णता का आनंद हम मार्च में भुगतते हैं वहीं दूसरे लोग मार्च के मार्च में लगातार तनावों के घनचक्करों में फंसे हुए रहते हैं और ऐसे में हमें दूसरों की तरफ से परेशानियों के सारे खतरे करीब-करीब समाप्त ही रहते हैं।

मार्च का रोना रोने वाले लोगों में से कुछेक अपवादों को छोड़ दिया जाए तो सारे के सारे लोगों में बहुसंख्य लोग किसी न किसी रूप में कामचोरी या ढिलाई के आदी होते हैं तभी माह पर माह काम का बोझ इतना बढ़ता जाता है कि ये लोग मार्च में कामों के ढेरों के नीचे दबे रहते हैं और फिर मानसिक रूप उसे चिड़चिड़ेेे, बीमार या गुस्सैल हो जाते हैं। मार्च-मार्च की टर्र-टर्र को हमेशा के लिए अपनी जिन्दगी से दूर कर देने के लिए हमारी जीवनपद्धति और कार्यशैली को बदलने की जरूरत है ताकि हमारे सारे काम नियमित रूप से होते रहेें और वित्तीय वर्ष के अंत में हमें किसी भी प्रकार की कोई समस्या सामने न आए। मार्च के नाम पर बहाने न बनाएं वरना पूरी जिन्दगी बहानों से इतनी घिर कर रह जाएगी कि यह बहानों का ही पर्याय बन जाएगी और तब हमारी स्थिति क्या होगी, इसे किसी को बताने की जरूरत नहीं है।




---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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