पुलिस मुख्यालय पर भ्रष्टाचार का दाग लगता नजर आ रहा!
देहरादून, 6 अप्रैल। पुलिस मुख्यालय में बैठकर डीजीपी पूरे राज्य में भ्रष्टाचार को रोकने के लिए फर्जी हुंकार भरते आ रहे हैं। अगर वास्तव में वे भ्रष्टाचार रोकने में ईमानदारी के साथ अपना दायित्व निभाते तो यह तय था कि कई भ्रष्ट पुलिस अफसरों के खिलाफ बड़ी कार्यवाही की जाती। पिछले कुछ समय से जिस तरह से पुलिस मुख्यालय द्वारा कई सीओ के तबादलों में चौबीस से 48 घंटे के भीतर खेल, खेल दिया गया। उससे इन तबादलों में भ्रष्टाचार की काली छाया का दाग कहीं न कहीं नजर आ रहा है? शासन ने जहां डीजीपी द्वारा किए गए तबादलों में से कई तबादले निरस्त कर उन्हें प्राइम पोस्टिंग देकर पुलिस मुख्यालय को अपनी ताकत का अहसास कराया। वहीं मुख्यालय द्वारा आनन फानन में कई सीओ के पहले किसी जनपद में तबादले किए और उसके चौबीस घंटे बाद उनके दूसरे जनपदों में तबादले किए जाने से पुलिस मुख्यालय पर भ्रष्टाचार का दाग लगता नजर आ रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि तबादलों के 24 से 48 घंटे के भीतर ऐसा क्या हो गया जिसके चलते पुलिस मुख्यालय को फेरबदल करने के लिए आगे आना पड़ा।
उत्तराखण्ड के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि पुलिस मुख्यालय द्वारा शासन से पहले 20 अपर पुलिस अधीक्षकों के तबादलों को हरी झंडी दिला दी गई। लेकिन उसके बाद तीन अपर पुलिस अधीक्षकों के शासन ने तबादले निरस्त करते हुए उन्हें प्राइम पोस्टिंग पर तैनात कर दिया। इन तबादलों के निरस्त होने से पुलिस मुखिया नाराज तो दिखे लेकिन शासन के आगे वे बेबस ही नजर आए। जहां तीन अपर पुलिस अधीक्षकों ने डीजीपी को अपनी ताकत का अहसास कराया। वहीं कुछ सीओ ने भी पुलिस मुख्यालय द्वारा किए गए तबादलों में 24 से 48 घंटे के बीच अपने तबादलों में खेल खिलवा दिया। कितना बड़ा मजाक है कि पिछले दो-तीन दिन के भीतर कई सीओ के तबादले पुलिस मुख्यालय द्वारा इधर से उधर किए गए। जिसमें जगदीश चन्द्र यादव को पहले दून में तैनाती दी गई। जिसके बाद उन्हें सीओ यातायात बनाया गया। लेकिन चौबीस घंटे के भीतर ही पुलिस मुख्यालय ने उनका तबादला दून से चमोली में कर दिया। प्रदेश के डीजीपी से कोई यह पूछे कि आखिरकार जगदीश चन्द्र यादव ने चौबीस घंटे के अंदर ऐसा कौन सा भ्रष्टाचार कर डाला जिसके चलते उन्हें दून से हटाकर चमोली भेजने के लिए खाका तैयार किया गया। वहीं पुलिस मुख्यालय ने दो दिन पूर्व हरिद्वार में तैनात गोविन्द बल्लभ पांडे का तबादला दून में किया और पीटीसी में तैनात राजन सिंह का तबादला हरिद्वार कर दिया गया। अभी इन दोनों सीओ ने अपने पदभार संभाले भी नहीं थे कि आचार संहिता लगने से कुछ समय पहले ही इन तबादलों में फिर पुलिस मुख्यालय ने पफेरबदल कर दिया। इस फेरबदल में गोविन्द बल्लभ पांडे को हरिद्वार में ही तैनात रहने का आदेश मिल गया वहीं हरिद्वार में तैनात किए गए राजन सिंह का दून में तबादला कर दिया गया। इन तबादलों में हुए फेरबदल के बाद पुलिस महकमें में ही पुलिस मुख्यालय पर भ्रष्टाचार का काला ‘दाग’ लगा है कि ऐसा क्या हुआ कि पुलिस मुख्यालय को 24 से 48 घंटे के भीतर ही सीओ के किए गए तबादलों में फेरबदल करना पड़ गया। पुलिस महकमा एक अनुशासित फोर्स है। अगर इसमें होने वाले तबादलों पर भी उंगलियां उठनी शुरू हो गयी तो पुलिस मुख्यालय का अस्तित्व एक सिरे से आने वाले समय मंे पूरी तरह से खत्म हो जाएगा। कितना बड़ा मजाक है कि आज भी कई सीओ पहाड़ों में वर्षों से जमे हुए हैं लेकिन उन्हें पहाड़ से उतारने के लिए ईमानदार डीजीपी ने आज तक क्यों कोई पहल नहीं की। यह अपने आपमें एक बड़ा सवाल राजधनी में खड़ा हो गया है।
नवरात्र में भरेंगे अधिकांश प्रत्याशी नामांकन!
देहरादून, 6 अप्रैल। उत्तराखण्ड में होने वाले निकाय चुनाव की गूंज धीरे-धीरे सुनाई देने लगी है। 8 अप्रैल से नामांकन का काम शुरू हो जाएगा। लेकिन 11 अप्रैल से पहला नवरात्र शुरू हो रहा है जिसको देखते हुए अधिकांश प्रत्याशी इन शुभ दिनों में ही अपना नामांकन भरने के लिए आगे आएंगे। हालांकि कांग्रेस, भाजपा, बसपा व सपा अपने प्रत्याशियों को मैदान में उतारने के लिए मंथन करने में जुटी हुई है। वहीं भाजपा व कांग्रेस के बीच होने वाले आमने सामने के मुकाबले को देखते हुए दोनों ही दलों के नेता अपने सशक्त उम्मीदवार मैदान में उतारने की रणनीति पर मंथन करने में जुटे हुए हैं। प्रदेश में निकाय चुनाव की आचार संहिता लगते ही भाजपा, कांग्रेस, बसपा, सपा, उक्रांद ने चुनाव जीतने की हुंकार भरने के लिए अभी से ही बड़े-बड़े दावे करने शुरू कर दिए हैं। हालांकि इन चुनावों में मुख्य मुकाबला भाजपा व कांग्रेस के बीच होने वाला है। इन दोनों दलों ने ही अभी तक अपने मेयर प्रत्याशी का नाम उजागर नहीं किया है। जिससे राजनीति दलों के नेताओं के मन में धुक-धुक मची हुई है। जहां कांग्रेस इस मिशन में जुटी हुई है कि पहले भाजपा अपने मेयर प्रत्याशी का नाम उजागर करे उसके बाद ही वे अपने मेयर का नाम उजागर करेंगे। दोनों ही दलांे के कई नेताओं में मेयर का प्रत्याशी बनने की जबरदस्त होड़ मची हुई है। जहां कांग्रेस में मेयर प्रत्याशी को लेकर जबरदस्त घमासान मचा हुआ है कि उन्हें ही चुनाव मैदान में उतारा जाए वहीं कई महिला भी चाहती हैं कि उन्हें चुनाव मैदान में मेयर पद पर उतारा जाए। कांग्रेस में बड़ी गुटबाजी को देखते हुए मेयर प्रत्याशी का चयन करना सरकार व संगठन के लिए काफी सिरदर्द पैदा करने वाला है। वहीं मेयर पद के लिए चुनाव लड़ने वालों का भी लम्बी चौड़ी फौज खड़ी हुई है। भाजपा के तीन पूर्व मुख्यमंत्री चाहते हैं कि उनकी पसंद के नेता को मेयर सीट के लिए चुनाव मैदान में उतारा जाए। हालांकि इन दोनों दलों के लिए यह चुनाव एक प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। अगर कांग्रेस इसमें विजय होती है तो यह तय हो जाएगा कि उसने एक साल में विकास की गंगा बहायी है और अगर भाजपा ने इस चुनाव में मैदान मार लिया तो उससे साफ झलक जाएगा कि आगामी लोकसभा चुनाव में आवाम का रूख क्या रहेगा। भले ही निकाय चुनाव का नामांकन 8 अप्रैल से होने जा रहा है लेकिन 10 अप्रैल तक इसे अशुभ माना जा रहा है और 11 अप्रैल से नवरात्रों की शुरूआत होने वाली है। इसलिए उस दिन से प्रत्याशियों के नामांकन का शोरगुल तेजी के साथ शुरू हो जाएगा।
(राजेन्द्र जोशी)
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