अब नौजवान ईश्वर के दुलारे रहे हैं
पटना। पटना सदर प्रखंड में दीघा मुसहरी पड़ता है। यहां पर घर-घर में महुंआ दारू बनता है। लगभग यह धंधा कुटीर उघोग का रूप अखित्यार कर लिया है। पटना-दानापुर मुख्य मार्ग के बगल में और पटना-दीघा रेलखंड के दीघा हॉल्ट पर ही मुसहरी है। जो शहर के बगल में रहने के कारण पटना नगर निगम के वार्ड नम्बर एक में पड़ता है। सभी तरह के वाहन चलने लायक जगह रहने के बाद भी प्रशासन और शासक के द्वारा शराब का धंधा बंद करवाने की दिशा में ठोस कार्रवाई नहीं की जाती है। शासक अक्षमता के कारण अवैध धंधा करने वालों की चांदी है।
प्रारंभ में महादलित मुसहर खेत में काम करते थे। बिहार राज्य आवास बोर्ड के द्वारा दीघा की भूमि को अधिग्रहण कर लेने से मुहसरों की नाता-रिश्ता खेत-खलियानों से छूटकर रह गयी। इसके बाद महादलित शराब बनाने पर जोर देने लगे। खुद शराब बनाते थे उसे बेचते थे औरे पी भी जाते थे। इसका मतलब इससे भूत, भविष्य और वर्तमान खराब होते चला गया। अपने अग्रज को देखकर बच्चे भी शराब पीने के जद में समाते चले जा रहे हैं।
होता यह है कि जिनके घर में महुंआ दारू नहीं बनता है। वे लोग घर से बाहर काम करके लौटते ही सीधे शरीर की थकावट दूर करने के बहाने शराब पीने लगते हैं। उसी तरह अन्य लोग भी किया करते हैं। कुछ पैसा हुआ कि जाकर एक गिलास दारू पी लेते हैं। उस समय पेट में अन्न रहे अथया नहीं रहे, फर्क नहीं पड़ता है। इसके कारण महादलित आसानी से यक्ष्मा बीमारी के जानलेवा गर्भ में चले जाते हैं।
हाल यह है कि आरंभ में शराब और बीमारी से बुर्जुगजन अल्ला के प्यारे हो गये और अब नौजवान ईश्वर के दुलारे होकर सर्वेश्रवर के घर चले जा रहे हैं। उस श्रेणी में स्व0घमंडी मांझी के पुत्र अर्जुन मांझी भी आ गये हैं। 6 बच्चों के पिता अर्जुन मांझी 45 साल के थे। इस शख्स को सभी लोगों ने समझाया और बुझाया, परन्तु असर पड़ा ही नहीं। प्रारंभ में उसे टी.बी. बीमारी हो गयी थी। वह ठीक तरह से दवाई सेवन नहीं किया। इसके बाद शराब के फेरा में पड़ गया। मात्रः गिलास में ही जिदंगी समा गयी।
---अलोक कुमार---
पटना
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