बिहार राज्य विधानसभा में निजी विश्वविद्यालय खोलने का विधेयक बहुमत से पास हो गया है. इसके साथ ही सरकार ने राज्य विश्वविद्यालय विधेयक और पटना विश्वविद्यालय विधेयक भी पास करा लिया है. इस विधेयक के अधिनियम बनने के बाद अब विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में नेट क्वालिफाइड उम्मीदवारों की नियुक्ति बिहार लोकसेवा आयोग के माध्यम से होगी.
विपक्ष ने सरकार के इस कदम को ग़रीबों के हितों के खिलाफ बताया है. जानकार आरोप लगा रहे हैं कि सरकार मौजूदा विश्वविद्यालयों में कोई सुधार तो ला नहीं पाई और निजी क्षेत्र के इस दिशा में प्रवेश का रास्ता सुगम बना दिया. लोगों का कहना है कि सरकारी कॉलेजों और विश्वविद्यालय की हालत इतनी ख़राब है कि कोई वहां पढ़ना नहीं चाहता. और प्राइवेट विश्वविद्यालयों के आ जाने के बाद वहां आम आदमी चाह कर भी पढ़ नहीं पाएगा. ज़ाहिर है कि इन निजी विश्वविद्यालयों में शिक्षा महंगी होगी जो सभी के लिए संभव नहीं होगी.
राज्य सरकार अपने इस कदम को क्रांतिकारी कदम बता रही है. सरकार का कहना है कि यह विधेयक अन्य राज्यों से इस तरह अलग होगा कि इसमें राज्य के विद्यार्थियों के आर्थिक हितों का पूरा ध्यान रखा जाएगा. विधेयक के अनुसार निजी विश्वविद्यालयों को भी राज्य की आरक्षण नीति का पालन करना होगा. लेकिन इस सबके बावजूद विपक्ष निजी विश्वविद्यालय अधिनियम के खिलाफ है. उसका कहना है कि इससे राज्य में शैक्षणिक व्यवस्था में गिरावट आएगी. विपक्ष के साथ-साथ लोग भी यह जानना चाह रहे हैं कि सरकारी संस्थानों को बेहतर बनाने का प्रयास क्यों नहीं किया गया?
निजी विश्वविद्यालय अधिनियम लाने का एक बहुत बड़ा मकसद राज्य के लोगों का पलायन रोकना है. हर साल बिहार से हज़ारों लोग शिक्षा प्राप्त करने दूसरे राज्यों का रुख करते हैं. यह कार्य न सिर्फ कष्टकारी होता है बल्कि महंगा भी है. माना जा रहा है कि छात्रों का पलायन रुकने से जो राशि राज्य में ही रह जाएगी उससे राज्य के विकास में तेज़ी लाने में मदद मिलेगी. जानकार मानते हैं कि अगर पलायन रुकता है तो भविष्य में एक नए बिहार की तस्वीर उभरेगी. लेकिन सबके लिए शिक्षा और सबकी पहुंच में शिक्षा का दावा करने वाली लोक कल्याणकारी सरकार अगर निजी विश्वविद्यालय अधिनियम जैसा कदम उठाती है तो आशंकाओं का उठना लाज़मी है.
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