अब आयु देखकर नहीं आती, कभी भी धमक सकती है मौत - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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बुधवार, 24 अप्रैल 2013

अब आयु देखकर नहीं आती, कभी भी धमक सकती है मौत


वह जमाना चला गया जब उम्र के अंतिम पड़ाव में ही वृद्धावस्था की वजह से मौत की आहट सुनायी देने लगती थी। अब जीवन और काल के बीच कोई फासला नहीं रहा। इनके लिए न उम्र का तकाजा रहा है और न ही किसी बड़ी बीमारी का। पहले जमाने के लोगों में अधिकांश तो वृद्धावस्था आने तक बेफिकर हुआ करते थे और मौत की बात भी तभी करते जब सत्तर-अस्सी पार कर जाते थे। आज के दौर में मौत के सामने आयु का कोई पैमाना नहीं है, वह कभी भी धमक कर किसी के प्राण खींच सकती है। हमारे आस-पास और अपने क्षेत्रों से लेकर देश और दुनिया तक में सेहत के इतने सारे असंख्यों उपकरणों, अनगिनत दवाइयों, मशीनों और चिकित्सा विज्ञान की एक्सपर्ट्स हस्तियों के कबीले भी असमय मौत को चुनौती दे पाने की स्थिति में नहीं हैं। काल के लिए कोई बंधन नहीं है। वह किसी भी क्षण इच्छित जीवात्मा को आत्मा से हीन कर पाने का सामथ्र्य रखता है। पहले उसके पास इसके बहानों की संख्या कम थी लेकिन आज काल के पास असंख्य बहाने हैं जिन्हें निमित्त बनाकर वह किसी को भी प्राणहीन कर सकता है। युगीन परिवर्तन के इस महानतम सत्य को जानकर जो लोग जीवनचर्या एवं जीवन निर्वाह का बेहतर प्रबन्ध समय पर कर लिया करते हैं वे ही मौत को प्रसन्नता के साथ गले लगाने का सामथ्र्य रख पाते हैं अन्यथा जो लोग मृत्यु का चिंतन नहीं करते और उसे वृद्धावस्था तक दूर मानते हैं वे अपने जीवन के अभीप्सित लक्ष्यों को प्राप्त नहीं कर पाते और उनके पूरे जीवन में लंबित कामों की सूची बड़ी से बड़ी होती चली जाती है जो हमेशा अपने सर पर बड़े भारी बोझ के साथ तनावों का आभास कराती है और यही तनाव व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य दोनों के आनंद को छीन लेते हैं तथा व्यक्ति उमर बढ़ने के साथ ही अपने आप पर खीजने लगता है और मानसिक संतुलन खो देने जैसी हालत सामने दिखने लगती है जो आदमी के अशांत और अतृप्त होने का सीधा संकेत है। 

यह अशांति और तृप्तिहीनता यदि निरन्तर बनी रहे तो ऎसे व्यक्तियों के लिए न वर्तमान जन्म का कोई मूल्य है और न ही आने वाले जन्माेंं का। फिर इस बात की भी कोई गारंटी थोड़े ही है कि अगले जन्म में मनुष्य ही बनने मिलेगा। इसलिए जीवन की दशा और दिशा दोनों को आज ही बदलने की जरूरत है वरना कोई भरोसा नहीं कि कल्पनाओं के महल और लक्ष्यों का जखीरा सामने होते हुए एक दिन हम खाक में मिल जाएं। वर्तमान को चरम आनंददायी बनाने के लिए यह भी जरूरी है जीवन में हर मामले में ताजगी बनी रहे और यह ताजगी तभी बनी रह सकती है जब पुरानी कोई लंबित सामग्री या विचार हमारे मन-मस्तिष्क में संग्रहित न रहे बल्कि आकार ले चुका हो। कोई काम या विचार जितने दिन, माह या बरसों तक दिमाग या दिल में बिना उपयोग हुए पड़ा रहेगा तब तक वह ताजगी खोकर सडान्ध मारता और फालतू का तनाव देता रहेगा। आज सर्वत्र अनिश्चय और निरन्तर परिवर्तनकारी युग है जिसमें हर क्षण नया-नया परिवेश जन्म लेने लगता है और ऎसे में हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए लक्ष्य प्राप्ति के अवसरों का भरपूर एवं सामयिक उपयोग और निर्धारित कार्यों का समयबद्ध संपादन।

इसमें किसी भी प्रकार की ढिलाई आने वाले समय में कामों के बोझ को बढ़ा देने के लिए काफी है। जो आज सोचा हुआ है उसका चिंतन करते हुए आज ही कार्यसिद्धि का श्रीगणेश कर देना ज्यादा अच्छा है बनिस्पत कल पर छोड़ने के। क्योंकि अब कल उतना निश्चित नहीं रहा जितना पुराने जमाने में था। अब किसी को भी यह पता नहीं चलता कि कल क्या होगा, उसका कल आएगा कि नहीं।  जहां कल है वहीं हर आदमी विकल है। हमारे अपने कहे जाने वाले कुटुम्बी, मित्र, संपर्कित और अपने इलाकों के खूब सारे लोग ऎसे थे जिन्हें सुनहरे कल पर भरोसा था लेकिन काल ने उनकी एक न सुनी, एक-एक कल सारे चले गए। कोई न कोई लोग रोज जा रहे हैं। और ऎसे-ऎसे लोग जा रहे हैं जिनके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता कि कल वे सिर्फ स्मृतियों में ही रह जाएंगे। कई लोग बिना किसी बीमारी के लौट जाते हैं, कई सारे बीपी, शुगर, हार्ट अटैक जैसी नई नवेली बीमारियों के बहाने, खूब सारे दुर्घटनाओं में मारे जा रहे हैं और कई सारे किसी न किसी बहाने। काल का चक्र रोजाना पूरी निर्ममता से घूम रहा है और हम चुपचाप देखते रहने के सिवा कुछ नहीं कर पा रहे हैं। इन सबके बावजूद हम कोई सबक नहीं ले पा रहे हैं इससे बड़ा दुर्भाग्य हमारा और मनुष्य जाति का और क्या होगा?

शाश्वत सत्य से दूर भागते हुए हम उन कुकर्मों में जीवन गँवा रहे हैं जिसका कोई स्थायी वजूद नहीं है। कोई छपास का भूखा और तस्वीरों का प्यासा है, कोई धन-सम्पदा पाने के लिए उल्लूओं की तरह घुग्घू बना हुआ धंसा हुआ है, कोई भिखारियों की तरह बड़े आदमियों के चक्कर काट रहा है, गाय-बगुला बना हुआ है, कोई दिन-रात किसी न किसी की मिथ्या जयगान कर रहा है, कोई भोग-विलास की शूकरी प्रवृत्तियों में रमा हुआ है, कोई पद-प्रतिष्ठा और सम्मान, अलंकरण, अभिनंदन की दौड़ में है, कोई दूसरों को पछाड़ कर आगे बढ़ने में चालाकियों का इस्तेमाल कर रहा है, कोई चोरी चकारी, तस्करी, भ्रष्टाचार और व्यभिचारों का दामन थामे हुए है, कोई कुर्सियों का करंट बेचारे भोले भाले लोगों पर दौड़ा रहा है, कोई भीड़तंत्र का बगुला राजा बना हुआ भाषण झाड़ने में व्यस्त है, कोई अपने कामों के लिए सब कुछ परदे तोड़ कर पसरा हुआ आनंद दे रहा है। यानि की सारे की सारे किसी न किसी जलेबी दौड़ में व्यस्त हैं और चाशनी के स्वीमिंग पुल की क्यू में खड़े हुए हैं। इन्हें पता ही नहीं है कि वे जिनके पीछे भाग रहे हैं वे सारे वैभव एक झटके में खत्म हो जाने वाले हैं जब काल का एक पंजा पड़ चुका होगा। दूसरी किस्म उन अच्छे लोगों की है जो अपने लिए तथा समाज और देश के लिए कुछ करने का रोज सोचते हैं, संकल्प लेते हैं और फिर आलस्य इतना आ ही जाता है कि कल पर टाल देते हैं।  इन लोगों को भी चाहिए कि वे जो कुछ करना चाहें आज और अभी से शुरू करें, वरना कल उनका आए या न आए, यह कोई नहीं बता सकता।

अपने भ्रमों से बाहर निकलें, जीवन और मृत्यु के शाश्वत सत्य को जानें और मनुष्य शरीर के धर्म तथा आदर्शों को आत्मसात करते हुए ऎसे काम करें कि कभी अचानक जाने का समय आ ही जाए, तो इस बात का रंज न रहे कि भगवान ने तो मनुष्य शरीर का वरदान दिया था और वे कुछ न कर पाए। जो कुछ अच्छा करना है उसे आज और अभी से आरंभ करें ताकि मौत के बाद हमारी आत्मा को इस बात के लिए करुण क्रंदन न करना पड़े कि आए थे लेकिन कुछ न कर पाए और बेरंग वापस लौटना पड़ रहा है। उस विधाता को भी यह सोचने के लिए विवश नहीं होना पड़े कि उसने हमें मनुष्य बनाकर कोई गलती तो नहीं की।






---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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