पिछले कुछ वर्षों से मोबाइल से लेकर सोशल साईट्स पर कई ऎसी-ऎसी मन बहलाने वाली और भ्रामक सामग्री आ रही है जिसे देख कर लोगों के भीतर का लोभ-लालच और ऎषणाओं का सागर कुछ ज्यादा ही मचलने लगा है। मोबाइल पर किसी न किसी देवी-देवता या दिव्य स्थल, कभी-कभी नागों से लेकर विचित्र किस्मों के जानवरों से संबंधित फोटो, मंत्र, श्लोक या मैसेज आ धमकते हैं और कहा जाता है कि इसे 20-25 लोगों को फारवर्ड करें और फिर देखें-कुछ सैकण्ड में चमत्कार दिखने लगेगा। इसी प्रकार सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर भी ऎसे ही असंख्यों प्रकार के चित्रों, संदेशों और विवरणों भरी सामग्री का अनाप-शनाप इस्तेमाल आम बात हो गई है जिनके बारे में कहा जाता है कि तत्काल लाईक या शेयर करो, कुछ अच्छा होगा। इन साईट्स पर ऎसी बेकार की सामग्री भारी मात्रा में पड़ी हुई है और कुछ-कुछ दिन बाद यह वैसी की वैसी ही दोहरायी जाती रही है। इन साईटों पर ऎसे कचरे की भरमार होने के साथ ही इस तरह का कचरा बीनने और जमा कर दूसरों को परोसने वालों की जमात भी तेजी से पसरती जा रही है। समाज में आजकल बेकारी और बेरोजगारी के साथ ही बिना मेहनत के सब कुछ पा जाने का शगल परवान पर है और हर कोई चाहता है कि उसे कुछ भी किए बगैर वह सब कुछ प्राप्त हो जाए जो उसकी इच्छाओं के अनंत आकाश में भरा पड़ा है।
कुछ लोगों के लिए अनिवार्यता हो सकती है लेकिन काफी सारे लोग ऎसे हैं जिन्हें अपने वर्तमान से संतोष नहीं है। उनके पास जो कुछ है वह भले ही जिन्दगी चलाने के लिए पर्याप्त है मगर ज्यादा से ज्यादा हड़पने और अपने नाम जमा कर लेने की भूख इतनी बढ़ गई है कि हर कहीं हाथ-पांव मारने लगे हैं। फिर आदमियों की एक और किस्म समाज की छाती पर मूंग दल रही है जिन्हें हरामखोर और कामचोर, नाकारा या नुगरे कहा जाता है। ऎसे लोगों के पास न शिक्षा-दीक्षा है, न हुनर और न ही कोई प्रतिभा। इनका बस एक ही काम है, और वह यह है कि हराम का माल ज्यादा से ज्यादा उनके परिसरों की ओर रुख करता रहे। ऎसे लोग पढ़े-लिखे भी हो सकते हैं। एक बार जब आदमी को बिना पुरुषार्थ के हराम का सामान, रुपया-पैसा या पद-प्रतिष्ठा मिल जाती है तब उसकी पूरी जिन्दगी हराम की कमाई पर चलने लगती है और मौत आने तक पराये माल पर डकारें लेते रहते हैं। लूटने वाले भी खूब हैं और बड़े ही प्रेम से लुट जाने वालोें की भी कोई कमी नहीं है। पशु-पक्षियों की सनातन खाद्य श्रृंखला की ही तरह इस किस्म के लोगों का भी पारस्परिक संबंध और व्यवहार निरन्तर चला आ रहा है।
कुछ दशकों पहले तक दूसरों का अन्न और पानी भी बिना मूल्य के लेना पाप समझा जाता था लेकिन आज दूसरों से छीनकर खाने-पीने वालों की संख्या बेतहाशा बढ़ती ही जा रही है। कई सारे तो ऎसे हैं जो अपने खाने-पीने का प्रबन्ध बाहर ही कर लेने में अपने जीवन की लक्ष्यसिद्धि मानते हैंं। इसी प्रकार आम लोगों की इच्छाओं का ग्राफ भी उछाले मारने लगा है। संतोष का खात्मा होता जा रहा है और परायों की देखादेखी उस सामग्री या संसाधनों की मांग बढ़ती जा रही है जिसके बगैर भी हमारा जीवन और अच्छी तरह आसानी से गुजर सकता है लेकिन सारे के सारे इस महावाक्य के पीछे पागल हुए जा रहे हैं कि लोग क्या कहेंगे-सोचेंगे। हाल के वर्र्षो मेंं जिस अनुपात में इन्टरनेट विधाओं के मोहपाशों की जकड़न बढ़ी है उसमें अब ईमेल से लेकर कई प्रकार की साईट्स, खासकर सोशल साईट्स पर एक-दूसरे को उल्लू बनाकर अपनी कमाई करने के नए-नए तरीकों का इस्तेमाल हो रहा है। मैसेज हों या फोटों, इन सभी के साथ यह पंक्ति जोड़ दी जाती है कि इसे ज्यादा से ज्यादा लाईक और शेयर करें, जल्द ही चमत्कार या अच्छा होगा, मुँह मांगी मुराद पूर्ण होगी...आदि आदि। सोशल नेटवर्किंग साईट्स पर इस प्रकार के अंधविश्वासों से परिपूर्ण कचरे का जबर्दस्त भण्डार है और लोभी-लालची लोगों का संसार भी ऎसा कि इन अंधविश्वासों के पीछे पागल होता ही जा रहा है। जबकि सभी को यह अच्छी तरह सोचना चाहिए कि ऎसे अंधविश्वासों से कुछ होना जाना नहीं है। अंधविश्वासों से ही यदि कुछ होता तो आज कई सारे अंधविश्वासी लोगों का बहुत बड़ा और समृद्ध समुदाय हमारे सामने होता।
जीवन में कुछ भी पाने की इच्छा हो तो पुरुषार्थ उसके लिए जरूरी होता ही है चाहे वह छोटे पैमाने पर हो या बड़े। आजकल फेसबुक पर ऎसे संदेश और फोटोग्राफ खूब आ रहे हैं और इनके माध्यम से अंधविश्वासों का भ्रमजाल फैल रहा है तथा इसके शिकार वे लोग हो रहे हैं जो धर्म के मर्म से बेखबर हैं और पुरुषार्थ को खूंटी पर टांग चुके हैं। मैसेज या फोटो लाईक या फॉरवर्ड करने से ही कुछ होता तो आज चारों तरफ यही धंधा पसरा हुआ होता। विभिन्न माध्यमों के इस प्रकार बेजा इस्तेमाल से समाज और परिवेश में भ्रमों और अंधविश्वासों की स्थिति फैलती रहती है जिसकी कोई उपयोगिता न होकर मात्र टाईमपासिंग जोब है। इन अंधविश्वासों से बचें और ज्ञान विस्तार के जो भी मंच हैं उनका सदुपयोग अपने तथा समाज के हित में करें और जीवन में पुरुषार्थ चतुष्टय धर्म, अर्थ, कर्म एवं मोक्ष का सदैव स्मरण रखते हुए देश, काल और परिस्थितियों के अनुरूप युग धर्म का निर्वाह करें। लोक जागरण जरूर करें मगर लोगों को अंधविश्वासों के अंधकार में न धकेलें। निकम्मे और हरामखोरों से भगवान भी दूरी बनाए रखता है।
---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com
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