इस बिषय को लेकर मैं बहुत चिन्तित हो गया कि प्रजातंत्र में पत्रकार की भूमिका पर क्या लिखॅू लेकिन मैने प्रकृति संचालन कर्ता परमपिता को याद किया तो उन्होने ही मेरे मन व आत्मा के माध्यम से इस प्रकार की विचार उत्पत्ति करते हुये मन को आदेश दिया कि बर्तमान समय वैज्ञानिक एवं भौतिकवादी युग आ गया है, विष्य के तमाम वैज्ञानिकों ने अपने अपने विवके, ज्ञान, वुध्दि, दिमाग का उपयोग करते हुये ऐसी बहुत सी खोज कर डाली जिनकी मानव ने कभी कल्पना नही की है,, आने वाला समय अभी क्या क्या अविष्कार करेगा इसकी भी कल्पना नही है । चॅूकि मेरा जीवन पत्रकारिता से जुड़ा है, बचपन से मुझे साहित्य में रूचि रही, , जब कोई भी व्यक्ति-मानव साहित्य में रूचि रखने लगता है तो उसे अपने देष की संस्कृति एंव संस्कार को पहला स्थान देना होता है । यदि साहित्यकार लेखक अपने राष्ट्र-देश की संस्कृति-संस्कारों को अनदेखा करेगा तो वह देश-द्रोही कहलायेगा । हम भरत वंशज है, भारत माता की संतान कहलाते है, हिन्दू संस्कृति में माता से ऊॅचा कोई पद व स्थान नही है । संसार में दो सौ से अधिक देश हो सकते है जिनके नाम तरह तरह के हो सकते है लेकिन भारत ही एक ऐसा देश या राष्ट्र है जिस देश को स्त्रीलिंग के साथ जोड़ा गया है चॅूकि भारत भूमि में सृष्टि के संचालन कर्ताओं ने मानव रूप अवतरित होकर मानव काया के न्याय-अन्याय, धर्म-कर्म के माध्यम से पुण्य-पाप, सत्य- असत्य, लाभ-हानि की पहचान कराई है । भारतीय संस्कृति के रक्षक, मानव के जीवन जीने का संदेष देने केलिए हमारे वेद, पुराण, षास्त्रांे, ग्रन्थों, उपनिषद है, इन सभी की सुरक्षा व रक्षा करने के साथ साथ जींवों को सुख- दुःख के अंतर को बताने के लिए प्रकृति संचालन कर्ता ने हमे देव ऋषि नारद जी को इस संसार में मानव कल्याण केलिए भेजा जो देवताओं, देवियों एवं प्राणियों के बीच समाचार संचार का माध्यम बन कर मार्ग दिखाते रहे ।
देवर्षि नारद के चैरासी सूत्र वस्तुतः पत्रकारिता सिध्दान्त है । इनसे प्रेरणा लेकर मीडिया-पत्रकारिता जगत समाज के समक्ष आदर्ष प्रस्तुत कर सकता है । देवर्षि नारद जी ने लोक कल्याणकारी कार्य किये है, उनके जीवन दर्षन को लेकर ही हम पत्रकारिता का सृजन कर सकते है । देवषि नारद जी का उद्देष जनहित है, वह देवताओं एवं मानव के विष्वास पात्र रहे, लोक कल्याण में निःस्वार्थ भाव से समर्पित ही अपनी विष्वसनीयता कायम कर सकता है । नारद जी को सृष्टि संचालन के एक कुषल, योग्य, निर्भीक, कर्मठ, कर्मयोगी पत्रकार कह सकते है ।
पत्रकारिता का इतिहास
इस संसार की उत्पत्ति कब हुई और विनाश कब होगा इसका कोई समय व तिथि तय नही हो सकी है, प्रत्येक व्यक्ति अपना बर्तमान देखकर भविष्य तय करता है, उत्पत्ति व खोज के बाद ही उसका इतिहास बन जाता है जो बात इतिहास बन जाती है उसी को हम संस्कृति कहते है । समय के विकास के अनुसार विशव के इतिहास का अध्ययन करने पर हमें पता चला कि विशव में पत्रकारिता का आरंभ सन् 131 ईस्वी पूर्व रोम में हुआ था उस साल का पहला दैनिक समाचार पत्र निकलने लगा था उसका नाम एक्टा डियूमा (।बजं कपनउं) जिसे दिन की घटना का समाचार हेाता था जिसे किसी पत्थर या धातू पर लिखकर आम लोगों को संदेश समाचार दिया जाता था । मध्य काल में इसी को हस्तलिखित को सूचना पत्र का नाम दिया जाने लगा था । जब 15वी शताब्दी के मध्य योहन गूटनवर्ग ने छापने की मशीन का आविष्कार किया जिसमें धातू के अक्षरों का उपयोग किया जाता था । धीरे धीरे यूरोप का एक योहन कारोलूस नाम का व्यापारी ने सन् 1605 ईस्वी में घटना के नाम को बदलकर सूचना पत्र हुआ उसके बाद उसी को समाचार का नाम दिया गया, तथा विशव का पहला समाचार पत्र इसी बर्ष 1605 ई0 समाचार पत्र को पहला नाम रिलेशन (संबंध) यह विशव का पहला मुद्रित अखवार था । भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी के शासन के समय सन् 1776 ई0 में एक अंग्रेजी अखवार का संचालन अंग्रेजों ने किया लेकिन उसका संचालन बंद हो जाने के बाद अंग्रेजों ने अपनी बात जनता तक पहुंचाने का माध्यम बनाया था लेकिन बाद में इसी अंग्रेजी समाचार पत्र में कुछ आम बुध्दिजीवी वर्ग के स्वतंत्र विचार प्रकाषित करने की अनुमति 1780 में दी थी । भारत मैं सन् ं 1790 में अनेक स्थानों से अंगे्रजी अखवारो का प्रकाशन हुआ लेकिन वह कुछ ही समय तक छपने के बाद बंद हो गये थे ।
भारत में पहला अखबार संवाद कौमुदी प्रकाशित हुआ
अंग्रेजो के शासन होने के वाद भी समाज सुधारक राजा राम मोहन राय --- ने समाज को जाग्रत करने के लिए 1819 में भारतीय वंगाली भाषा में पहला समाचार पत्र संवाद कौमुदी प्रकाशित किया जिसको बुध्दि का चांद कहा जाता था । इस प्रकार भारत में समाचार पत्र के प्रकाशन की शुरूआत राजाराम मोहन राय ने ही ष्षुरू की थी उसके बाद भारत में सन् 1822 में गुजराती भाषा का साप्ताहिक मुंबईना समाचार का प्रकाषन हुआ जो दस साल बाद दैनिक समाचार पत्र हो गया था । राजाराम मोहन राय का संवाद कौमुदी समाचार पत्र बंद हो जाने पर उन्होने सन् 1830 में एक बड़ा हिन्दी साप्ताहिक बंगदूत का प्रकाशन शुरू किया , यह समाचार पत्र बहु भाषीय पत्र था । जो अंग्रेजी, बंगला, हिंदी, और फारसी भाषा में कोलकत्ता से निकलता था ।
भारत देश के अंदर अनेक समाचार पत्र प्रकाशन शुरू हुये और बंद हुये लेकिन 30 मई 1826 को उदंत मार्तण्ड का प्रकाशन पंडित जुगलकिषोर शर्मा ने शुरू किया था , इसी दिवस में पत्रकारिता के इतिहास में पत्रकार दिवस का स्वरूप दिया जाता है । पंडित जुगलकिषोर से लेकर उनके समकालीन व्यक्तित्व केलिए पत्रकारिता और अर्थ सकारात्मक थे ।
राष्ट्रवादी पत्रकारिता के बाहन दीनदयाल उपाध्याय
पं0 दीन दयाल उपाध्याय का जन्म 25 दिसम्बर 1916 को राजस्थान के धनकिया नाम ग्राम में हुआ था उनका जन्म ननिहाल में हुआ । उनका पैतृक निवास मथुरा के फराह नामक गाॅव है उनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय व माता जी का नाम श्रीमती राम प्यारी था । जब पं0 दीन दयाल उपाध्याय 8 बर्ष की आयु के थे तो उनके माता पिता का देहांत हो जाने से उन्हे माता पिता का स्नेह व प्यार नही मिल सका । जो उनके भाई सही शिवदयाल जी थे उनका पालन पोषण करते थें उनका भी बीमारी के चलते देहान्त हो जाने के कारण उनके मामा जी ने गंगापुर ,राजस्थान में किया । पंडित श्री दीन दयाल उपाध्याय जी कालेज की शिक्षा के दोरान ही आर एस एस से जुड़ गये और उन्होने पूरा जीवन देश सेवा को समर्पित कर दिया ।
सन् 1947 में दीन दयाल जी ने राष्ट्रधर्म प्रकाशन लिमिटेड की स्थापना की थी जिसके अंतर्गत स्वदेष, राष्ट्रधर्म एवं पांचजन्य नामक पत्र प्रकाषित होते थे । उनके साथ बचनेष त्रिपाठी, महेन्द्र कुलश्रेष्ठ, गिरीष चन्द्र मिश्र, अटल बिहारी वाजपेयी, राजीव लोचन, अग्निहोत्री जैसे श्रेष्ठ पत्रकारों को तैयार किया था । पंडित जी ने समाचार पत्रों के माध्यम से राष्ट्रवादी जनमत निमार्ण करने का महत्वपूर्ण कार्य किया था ।
केसरी पत्रकार लोकमान्य वाल गंगाधर तिलक-इनका जन्म 23 जुलाई 1856 को रत्नागिरी में हुआ था, इन्होने देष को आजाद कराने में अपनी अह्म भूमिका अदा की इन्होने केसरी समाचार पत्र का प्रकाशन किया था साथ ही पत्रकारों केलिए लिखा था केसरी निर्भयता एवं निष्पक्षता से सभी प्रशनों की चर्चा करेगा , यदि समाचार पत्र चापलूसी की प्रवृति देश हित में नही होगी ।
मुंशी प्रेम चन्द्र ने भारत देश के लिए पत्रकारिता की है उन्होने माधुरी और जागरण का संपादन करते हुये राष्ट्रचेतना से संबंधित अपने बिचारो का जन - जन तक पहूँचाने का काय्र किया । सामाजिक समरसता एवं स्वदेष के भाव को उन्होने पत्रकारिता के माध्यम से लोगों को पहुंचाने का कार्य किया । उन्होने कहा था कि साहित्य की तुलना में पत्रकारिता आम आदमी की समस्याओं को अधिक स्फूर्त रूपसे समझ सकती है । वह साहित्य सर्जन के साथ साथ पत्रकारिता के माध्यम से भी जन जागरण ज्योति प्रचण्ड करते रहे ।
भारतीय पत्रकारिता के पुरौधा शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी
भारतीय पत्रकारिता की पुरौधा कहे जाने वाले पत्रकार शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी जी के बारे में जो भी कुछ ज्ञान अर्जित किया जा सकता है वह बर्तमान पत्रकारिता के लिए प्रेरणा दायक है,गणेशशंकर विद्यार्थी यह एक नाम ही नहीं बल्कि उनके नाम में एक आदर्ष विचार छुपा रहता है । वह एक पत्रकार होने के साथ साथ एक महान क्रांतिकारी और समाज सेवी भी थे । पत्रकारिता के नैतिक कर्तव्य को निभाते हुए गणेशशंकर विद्यार्थी ने अपने प्राणों का उत्सर्ग कर दिया । उनका समस्त जीवन पत्रकारिता जगत केलिए अनुकरणीय आदर्ष उदाहरण है
शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी जी का जन्म अश्रिवन शुक्ल 14 रविवार सं0 1947 दिनांक 26 अक्टूवर 1890 को इलाहावाद के अतरसुईया मोहल्ला में अपने नाना जी के घर पर हुआ था , उनके पिता जी का मुंषी जय नारायण था तथा माता जी का नाम श्रीमती गोमती देवी था । शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी जी का परिवार मूलतः फतेहपुर उत्तर प्रदेष के निवासी थें उनके पिता ग्वालियर रियासत में मुॅगावली के ऐंग्लो वर्नाक्युलर स्कूल में हेड -मास्टर थें । विद्यार्थी जी का बचपन ग्वालियर में ही बीता प्राथमिक शिक्षा ग्वालियर में होने के बाद उन्होने कानपुर में एटेंस परीक्षा करने के बाद वह कायस्थ पाठषाला इलाहावाद पढ़ने चले गये । अध्ययनरत समय में ही उन्हे पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और इलाहावाद के हिंदी साप्ताहिक कर्मयोगी के संपादन में सहयोग देने लगे थें । शहीद गणेषषंकर विद्यार्थी ने कुछ समय करेंसी कार्यालय में नौकरी की लेकिन अंग्रेज अधिकारी से विवाद हो जाने के बाद वह नौकरी छोड़ दी । पुनः अध्ययन करने में जुट गये । अध्ययन करते हुये पत्रकारिता में लगाव के कारण श्री महावीर प्रसाद व्दिवेव्दी की पत्रिका सरस्वती के सहायक बने , साथ ही कर्मयोगी, स्वराज्य, हितवार्ता आदि पत्र-पत्रिकाओं में लेख लिखना प्रारंभ किया । कुछ समय सरस्व्ती पत्रिका में कार्य करने के वाद वह अभ्युदय में सहायक संपादक हुए जहां विद्यार्थी जी ने सन् 1913 तक कार्य किया । शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी स्वाभिमानी होने के कारण उनके मन के लेख व समाचार प्रकाशित न कर पाने के कारण उन्होने स्वंय का एक समाचार पत्र प्रकाशन करने का संकल्प लिया और साप्ताहिक समाचार पत्र प्रताप नाम से समाचार पत्र का प्रकाशन शुरू किया ।
गणेशशंकर विद्यार्थी ने अपने साप्ताहिक समाचार पत्र प्रताप के पहिले अंक के प्रकाशन में ही उन्होने संपादकीय मे लिखा था कि -प्रताप का यह अंक राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन, सामाजिक आर्थिक क्राॅति, राष्ट्रीय गौरव, साहित्यिक सांस्कृतिक विरासत केलिए ही उनकी पत्रकारिता समर्पित है । प्रताप में अंग्रेजो के बिरूध्द समाचार प्रकाशन करने के कारण अंग्रेजी हुकुमत ने समाचार पत्र पर दमनपूर्वक कार्यावाही करते हुये प्रताप समाचार पत्र का प्रकाषन बंद करवा कर देष द्रोह का मुकदमा लगाकर जेल भेज दिया । गणेषषंकर विद्यार्थी जी जैसे ही जेल गये उन्होने देष हित केलिए अपनी कलम को और प्रखता से चलाने का निर्णय लिया राष्ट्रवादी कलम की प्रखरता के कारण वह निर्भीक व निडर पत्रकार बन गये । उनकी जेल से जमानत होने के वाद उन्होने 8 जुलाई 1918 को फिर से समाचार पत्र ष्षुरू किया , यह समाचार पत्र प्रताप अंग्रेजी की हुकुमत को उखाड़ने में सहायक होकर चर्चित हेा गया । उन्होने इस समाचार पत्र को साप्ताहिक से दैनिक करते हुये 23 नवम्बर 1919 से शुरू किया । देनिक प्रताप के प्रकाशन से अंग्रेजो की नींद उड़ी तो उन्होने समाचार पत्र कार्यालय को बंद करा दिया तथा गणेषषंकर विद्यार्थी को 23 जुलाई 1921 को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया, जिस कारण 16 अक्टूवर 1921 तक वह जेल में ही बंद रहे । जेल से छूटने के वाद वह देष की आजादी के लिए आन्दोलन करने बालों के साथ आ गये । देश का आजाद कराने के लिए अंग्रेजो ने उन्हे पाॅच वार जेल में बंद किया लेकिन वह न तो डरे न ही अपने कर्तव्य के मार्ग से बिचलित हुये ।
दुर्भाग्यवश सरदार भगत सिंह राजगुरू सुखदेव के शहादत दिवस 23 मार्च 1931 को कानपुर में ब्रितानिया हुक्मरानों की साजिष के फलस्वरूप् उपजे हिन्दू -मुस्लिम दंगे में 25 मार्च 1931 को गणेशशंकर विद्यार्थी जी की हत्या कर दी गई । शहीद गणेशशंकर विद्यार्थी हिन्दी उत्थान व ग्राम्य जीवन में सुधार, महिलाओं की तरक्की, भिक्षावृति, वेष्यावृति की समाप्ति के संकल्प को लेकर देष प्रेम की भावना के साथ सामाजिक बुराईयों को समाप्त करना चाहते थें । षहीद गणेशशंकर विद्यार्थी जी के निधन पर महात्मा गाॅधी जी ने कहा था कि उनका बलिदान का खून हिन्दू-मुस्लिम एकता केलिए सीमेण्ट की तरह कार्य करेगा । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू जी ने कहा था कि यदि षहीद गणेषषंकर विद्यार्थी आज जीवित होते तो भारत की तस्वीर बदने में उनका महत्व पूर्ण योगदान होता ।
बर्तमान पत्रकारिता का स्वरूप कैसा होना चाहिये .....
भारत देश आजाद होने के साथ साथ देश में विकास की गति हुई हैं, प्रिंट मीडिया के वाद देष के पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री राजीव गाॅधी जी का एक सपना था कि भारत विकषित देष की श्रेणी में आना चाहिये इसलिए उन्होने देश में कम्प्यूटर , इंनटरनेट जैसी महत्व पूर्ण सुविधाये लाने केलिए समझौता किये थें जिसका भारत में विपक्षी दलों ने बहुत बिरोध किया था लेकिन आज उसकी सार्थकता सामने आ गई । यदि आज देष में कम्प्यूटर इंटरनेट मोबाईल सेवाये न होती तो आज का मानव का जीवन 20 वी सदी में ही होता , लेकिन 21 वी सदी का जो सपना था वह आज पूरा हो रहा है जिसका श्रेय भारत रत्न से सम्मानित पूर्व प्रधानमंत्री स्व0 श्री राजीव गाॅधी जी को जाता है । प्रिंट मीडिया का महत्व आज कम नही है लेकिन यदि इलैक्ट्रानिक मीडिया न होती तो देष का विकास असंभव सा होता । जो संदेश महिनो व सालों में लोगों तक पहुूचते थें आज पल झपकते पहुॅच जाते है । मोबाईल इन्टरनेट की सुविधाओं के कारण कम से कम लागत में कठिन से कठिन कार्य मिनटो मे हो रहे है , आज के युवा व वुर्जुग सभी केलिए कम्प्यूटर एक बरदान सावित हुआ है । इलैक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से विष्व में होने बाली कोई भी घटना को एक ही समय में हमें चित्र सहित देखने को मिल जाती है ,इलैक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से मानव के विकास से लेकर मृत्यू तक की जानकारिया प्राप्त हो रही है । कम्प्यूटर या मोबाईल सिस्टम के माध्यम से हम आज सोषल नेटवर्किग साइट का पूरा लाभ उठा रहे है । सोषल मीडिया नेटवकिंग साईट में जो आजादी दी गई है वह कानून के तहत पिं्रट मीडिया और इलैक्ट्रानिक मीडिया में नही है जिससे अनेक लाभ दायक दानकारियों एवं विचारो की अभियक्ति आदान प्रदान हो जाती है, लेकिन इसके अनेक गंभीर परिणाम भी जब होते है जब हम इसका दुरूपयोग करते है , गलत जानकारियों के माध्यम से देश में अफवाहो को फैलाते है और जिस किसी भी व्यक्ति के चरित्र पर कीचड़ भी खुले रूपसे उछाल देते है । अश्लील वीडिओ व चलचित्रों के माध्यम से युवावर्ग का मानसिक नुकसान भी होता है ।
बदलती दुनिया बदलते समाजिक परिदृष्य, बदलते बाजार, बाजार के आधार पर शैक्षिक सांस्कृतिक परिवेश और सूचनाओ के अम्वार ने समाचारों को अनेक-अनेक प्रकारों में बदल दिया है । आजादी के पूर्व देष में गिने चुने अखवार हुआ करते थें जिनको आसानी से बताया जा सकता था लेकिन आजादी के बाद देश में प्रजातंत्र में प्रेस की आजादी को छूट मिलने के वाद समाचार पत्र, पत्रिकाओं का प्रकाषन इतना हो गया कि अब इनकी संख्या दिन प्रति दिन घटती बढ़ती है । इलैक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से टी.व्ही चैनल आदि सुविधाओ का आम आदमी लाभ उठा रहा है । पत्रकारिता के कई प्रकार हो जाते है अलग अलग क्षेत्र में अलग अलग पत्रकारिता के व्यापार भी हो चुके । लेकिन देश व समाज के लिए आज भी समाचारों की प्रसागिंकता आज बरकरार है जिसमें घटना के महत्व बालों समाचारों को आज भी प्राथमिकता दी जाती है । पत्रकारिता में जब कोई घटना होती है तो ऐसी घटना केलिए पत्रकार को पाॅच बातो का ध्यान रखना होता है , कब, कहां, क्यो, कौन कैसे ..? ष्षव्दों को परिभाषित करने के बाद भी समाचार पूर्ण हो पाता है । देष के अंदर राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक अपराधों को खुलाषा करने में पत्रकार की अहम भूमिका है । प्रजातंत्र में विधायिका, न्याय पालिका, प्रषासन को किस प्रकार से मानव के लिए कौन कौन से जन कल्याणकारी कार्य करना चाहिये । देष की सुरक्षा एवं विकास के साथ साथ विदेष नीति, को मार्ग दर्षन देने में मीडिया की अहम भूमिका हो गई है । बर्तमान पत्रकारिता भले ही व्यवसायिक सीढ़ीयौ से चढ़ कर विकास कर रही हो लेकिन मीडिया की विष्वसनीयता आज भी बरकरार है । समाज में सेवा भावना का यदि कोई कार्य करने एवं कराने में समक्ष है तो वह मीडिया है । पिं्रट मीडिया की सार्थकता इस प्रमाणित करती है कि जो समाचार प्रकाषित किया जाता है उसका रिकार्ड होता है तथा ऐसे समाचारों को जनता अपनी नियमावली व समय के अनुसार अध्ययन करके चिंतन करता है जबकि इलैक्ट्रानिक मीडिया के समाचारों का कोई समय नही रहता है घटना व समय के अनुसार समाचार प्रसारित होते है । खोज खबर व मानव जीवन से संबधित समाचारो को इलैक्ट्रानिक मीडिया समय देती है तथा उनको बार बार प्रदर्षित करती रहती है जिससे समाज में व्याप्त समस्याओं को अवलोकन कर उनका निदान किया जा सकता है । इलैक्ट्रानिक सोशल नेटवकिंग समाचारो को टिप्पण्यिों व बिचारों का आदान प्रदान तक ही सीमीत है । भारतीय संविधान के प्रजातंत्र में प्रेस पत्रकारिता की गरिमा बनाये रखने तथा बिना किसी प्रमाण के समाचार प्रकाषन पर नियंत्रण के लिए कानून में समाचार पत्रो, मीडिया कर्मीयों के विरूध्द दण्ड का प्रावधान भी किया गया है । भारतीय प्रेस परिषद का भी गठन किया गया है । इसलिए कलम का पुजारी ही बन सकता है भारत देश का कर्मयोगी पत्रकार ।
संतोष गंगेले,
अध्यक्ष प्रेस क्लब छतरपुर,
मध्य प्रदेष
1 टिप्पणी:
कलम का पुजारी तो हो साथ ही सच का पुजारी भी हो । और सिर्फ शुरू में डंके बजाकर बाद में चुप लगा जाने वाला भी न हो । अंत तक विषय को फॉलो करे ।
आपने जो पत्रकारिता का इतिहास हमे बताया इसका आभार ।
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