- -राज्य के पर्यटन मानचित्र पर अंकित झील (मत्स्यगंधा क्षेत्र) अब बना जानवरों का चारागाह, प्रशासन बेपरवाह
साल 1996 की बात है एक प्रशासनिक कवायद के तहत जिले में विद्युत सब स्टेषन के पास वाले क्षेत्र को आकर्सक झील में परिणत कर पिकनिक स्पाॅट व नौका विहार क्षेत्र बनाने की योजना अमल में लाई गई थी। जिसमें काफी हद तक सफलता भी हाथ लगी थी, और सहरसा जैसे कस्बाई जिले के लोगों को मत्स्यगंधा नामक नया नौका विहार क्षेत्र देखने को मिला। फिर क्या था एक ओर जहां लोगों की भीड़ (खासकर प्रेमी युगल व बच्चे) दिन रात नौका विहार करने जमने लगीं, वहीं झील किनारे ठंडी बयार लोगों को गर्मी से राहत देने लगीं। यह सिलसिला कुछ सालों तक तो बदस्तूूर जारी रहा, लेकिन अचानक कुछ सालों बाद ही प्रशासनिक लापरवाही दगा दे गई। एक ओर जहां लोगों के मनसूबों पर पानी फिरने लगा, वहीं दूसरी ओर झील से पानी सूखने लगा। गंदगी के ढ़ेर व चरवाहों ने दोबारा इस क्षेत्र को अपने आगोश में ले लिया। मत्स्यगंधा के नाम से विख्यात यह क्षेत्र चारागाह व शमशान में तब्दील हो चुका है।
आलम यह है कि राज्य के पर्यटन मानचित्र पर अंकित झील (मत्स्यगंधा क्षेत्र) जानवरों का चारागाह व लोगों के आने जाने का रास्ता मात्र बन कर रह गया है। झील निर्माण से पूर्व यह क्षेत्र शहर का एकमात्र शमशान स्थल हुआ करता था। भयावहता इतनी थी कि लोग रात तो दूर दिन में भी इस क्षेत्र का रुख नहीं करते थे। पूर्व जिलाधिकारी तेजनारायण लाल दास द्वारा किये गये प्रयास व आमजनों के सहयोग से तकरीबन 54 लाख रुपये क्षेत्र के विकास मद में आवंटित किये गये। झील निर्माण कार्य को हरी झंडी दिखा दी गई। लोगों की मानें तो दस फीट की गहराई तक खुदाई कर मलवे को साफ कर उक्त शमशान को सुंदर पर्यटन क्षेत्र के तौर पर विकसित किया गया। रंग-बिरंगे मोटर बोट, पैडल बोट, पतवार बोट के अलावा जलपरी की सैर अब लोगों को भाने लगी थी। यही नहीं छठ व्रतियों के लिए भी यह क्षेत्र बेहद उपयोगी साबित होने लगा। स्थानीय लोगों को रोजगार मुहैया कराने के मकसद से बहुउद्देष्यीय परियोजना को भी मूर्त रुप देने पर विचार होने लगा। झील में मछलियां डाली जाने लगीं। प्रारंभिक साल में रिकार्ड तोड़ मछली पालन व बिक्री से सरकार को राजस्व की अच्छी खासी उगाही हुई। यही नहीं झील के चारों तरफ लोगों की आवाजाही के लिए परिक्रमा पथ का निर्माण करा दोनों ओर कीमती व दुर्लभ पेड़ भी लगाये गये थे। जगह जगह बनी सीढि़यां व छतरीनुमा चबूतरे आज भी पथिकों को तपती धूप में षीतलता प्रदान करते हैं। झील के बीचोंबीच रंग बिरंगे पानी का फव्वारा नाव पर सवार पराषर मुनि की आदमकद प्रतिमा, यक्षिणी व वृषभ की सुंदर मूर्तियां तो जरुर हैं, लेकिन झील में पानी न होने की वजह से सब बेकार ही साबित हो रहे हैं। हालांकि पर्यटन मंत्री के सहरसा दौरे से एक ओर जहां कयास लगाए जा रहे हैं कि मत्स्यगंधा क्षेत्र के दिन बहुरेंगे, वहीं दूसरी ओर रेलवे द्वारा कराये जा रहे निर्माण कार्य व बड़े पैमाने पर मिट्टी की मांग ने हलचल बढ़ा दी है। ज्ञात हो कि रेलवे द्वारा वाॅषिंग पिट क्षेत्र में मिट्टी की मांग किये जाने के बाद प्रषासन को इस बात की फिर्क नहीं रहेगी कि झील क्षेत्र की खुदाई करने के बाद जो मिट्टी निकलेगी, उसका क्या होगा? यानी आम के आम और गुठली के दाम। प्रषासनिक कवायद एक बार फिर कब और कैसे षुरु होगी, इस बात की चर्चा अब चैक चैराहे पर होने लगी है।
---कुमार गौरव---
सहरसा
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