राज्यसभा में बलात्कार के दोषियों को फांसी देने की मांग - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

राज्यसभा में बलात्कार के दोषियों को फांसी देने की मांग


बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए आज राज्यसभा में विभिन्न दलों के सदस्यों ने इस कृत्य के दोषियों को फांसी देने की मांग की। साथ ही सदस्यों ने यह भी कहा कि बलात्कार के मामलों की सुनवाई के लिए एक समय सीमा तय की जानी चाहिए।

महिलाओं के खिलाफ बढ़ती हिंसा के मुद्दे पर उच्च सदन में अल्पकालिक चर्चा की शुरुआत करते हुए भाजपा की माया सिंह ने कहा कि राजधानी के गांधीनगर इलाके में पांच साल की बच्ची के साथ जो कुछ हुआ उसकी निंदा करने के लिए शब्द भी कम पड़ जाते है। उन्होंने कहा कि हर घर में बच्चियां हैं और इस घटना से लोग दहशत में हैं।

माया सिंह ने कहा, जो कुछ हुआ उससे पुलिस व्यवस्था पर भी सवाल उठते हैं। ऐसी घटनाओं पर रोक लगाने के लिए सरकार को कड़े कदम उठाने चाहिए, महिलाओं की सुरक्षा के लिए बलात्कार रोधी नए कानून को और कड़ा बनाना चाहिए तथा पुलिस को भी जवाबदेह बनाया जाना चाहिए। कानून बनाना ही इतिश्री नहीं है, इसका सही कार्यान्वयन भी होना चाहिए। उन्होंने सदन में मौजूद गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे से सर्वदलीय बैठक बुलाने का आग्रह करते हुए कहा कि इसमें आम सहमति बनाई जानी चाहिए कि बलात्कार के दोषी को मौत की सजा दी जाए।

कांग्रेस की प्रभा ठाकुर ने कहा,  ‘देश का कोई भी हिस्सा इससे अछूता नहीं बचा है। उन माताओं पर क्या गुजरती होगी, जिनकी बच्चियां वहशीपन का शिकार होती हैं। यह तो हत्या से भी भयावह है। हमें दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर समाधान निकालना होगा। अपनी बात कहते कहते प्रभा ठाकुर का गला भर आया। उन्होंने भी दोषियों के लिए मौत की सजा की मांग करते हुए कहा, ऐसे मामलों की सुनवाई के लिए समय सीमा तय की जानी चाहिए और शीघ्र सुनवाई कर पीड़ित को न्याय दिया जाना चाहिए। दोषी को मौत की सजा दी जानी चाहिए तब ही ऐसे अपराधों पर रोक लग सकेगी।

बसपा की मायावती ने कहा,  सर्वदलीय बैठक कई बार हुई और कानून को कठोर बनाने पर आम राय बनी लेकिन बलात्कार की घटनाएं हो रही हैं और अब तो बच्चियां भी सुरक्षित नहीं हैं। बलात्कार के दोषियों को फांसी से कम सजा नहीं होनी चाहिए और मामलों की सुनवाई भी तय समय के अंदर होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाएं और अधिक पीड़ादायी तब हो जाती हैं जब पुलिस भी अपने दायित्व में कोताही बरतती है। उन्होंने महिलाओं का उत्पीड़न रोकने के लिए बनाए गए कानून को और अधिक कठोर बनाने की मांग करते हुए कहा कि इन घटनाओं से पुलिस पर भी सवाल उठते हैं। उन्होंने पुलिस विभाग में भी सुधार की मांग की।

बसपा नेता ने यह भी कहा, समाज की सोच भी बदलनी होगी। मनोरंजक कार्यक्रमों और विज्ञापनों को स्वीकृति देते समय यह बात ध्यान में रखनी चाहिए कि वे भारतीय संस्कृति के मुताबिक हों। ताकि बच्चों को अच्छे संस्कार मिल सकें। मायावती ने कहा कि अक्सर चर्चा के दौरान अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति के लोगों का जिक्र होने पर सदस्य ‘हरिजन’ शब्द का उपयोग करते हैं, लेकिन यह शब्द असंवैधानिक है और इसका उपयोग नहीं किया जाना चाहिए।

जदयू के शिवानंद तिवारी ने कहा कि यह कानून व्यवस्था का नहीं बल्कि सामाजिक सांस्कृतिक पतन का प्रश्न है। उन्होंने कहा, यह देख कर बहुत दुख होता है कि परिवार की संस्कृति के लिए चर्चित हमारे देश में कभी कभी परिजन ही ऐसे मामलों को अंजाम देते हैं। आज महिलाओं के प्रति नजरिये में बदलाव की जरूरत है।

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