आजकल आदमियों की नई किस्मों का प्रभाव कुछ ज्यादा ही चलन में है। सामाजिक जिन्दगी के तमाम फलकों से जुड़े हुए कई-कई क्षेत्रों में खूब भरमार है ऎसे लोगों की जो अपने आपको सर्वशक्तिमान, संप्रभु और निर्णायक मान बैठे हैं और अहंकार के सर्वाेच्च शिखरों पर विराजमान होने का ऎसा दंभ पाले बैठे हैं कि उन्हें लगता है कि अब सिर्फ वे ही हैं जिनके जिम्मे क्षेत्र, समाज और सृष्टि टिकी हुई है और वे न होते तो शायद न सृष्टि होती, न विकास और न ही समाज। इन लोगों को ईश्वरीय सत्ता से भी न भय रहा है, न मरणधर्मा शरीर के अंतिम हश्र से। अपने भविष्य से बेखबर ये लोग औरों का भविष्य सँवारने और परिवेश को सुनहरे रंगों से भर देने के दावों को मुँह फुला-फुला कर चिल्लपों मचाने लगे हैं। धर्म-अध्यात्म, साहित्य, शिक्षा-दीक्षा, संस्कृति, समाजसेवा और अपराध जगत से लेकर आम आदमी से जुड़े तमाम सरोकारों वाली गतिविधियों में ऎसे स्वयंभू और दंभी लोगों का अपना साम्राज्य बिखरा पड़ा है। ऎसे लोगों का भीड़ साठ साला बाड़ों में भी है और पाँच साला बाड़ों में भी।
ऎसे लोगों में भले ही खुद की कोई ऊर्जा भले न हो, परायी ताकत के भरोसे ये लोग अपने आपको जमाने भर का स्रष्टा और पालक मानने के असंख्यों भ्रमों से घिरे पड़े हैं। इनके साथ ही संहार के कर्मों में भी बैकडोर से इनका कारोबार चुपचाप चलता ही रहता है और वह भी ऎसा कि किसी को भनक तक न पड़े। हमारे अपने क्षेत्र से लेकर देश और दुनिया के सभी क्षेत्रों में ऎसे स्वयंभू लोगों की खूब भीड़ है जो अपने भविष्य तक से बेखबर हैं लेकिन दूसरों का भविष्य बनाने और बिगाड़ने के लिए पूरा दम-खम रखने के दावे करते हैं। इनके कई उपदेश और वाणियां तो ऎसी हैं कि इनके चेले-चपाटी अपने इन ढपोड़शंखों और कल्पवृक्षों को कभी ईश्वर मानकर पूजते रहते हैं और कभी महापुरुष। यही कारण है कि इनके अनुयायियों की भारी भीड़ अपने स्वार्थों को पूरा करने के लिए हर कहीं जुट ही जाती है जिनके लिए अपने इन भगवानोें के कहे हुए वचन ईश्वरीय उपदेशों, संत-भक्तों की वाणियों आदि को भी बौना साबित कर देने वाले होते हैं। आजकल सबसे सस्ता और सुलभ काम है भीड़ जुटाना और भीड़ का अपने आप जुटना, क्योंकि समाज में तमाशबीनों और जिज्ञासुओं की भीड़ हर युग मेंं रही है। इस युग में कुछ ज्यादा ही।
अपने-अपने इलाकों के इन भगवानों के अपने अलग-अलग बाड़े और आँगन हैं, दरबार हैं। कई भगवान एक साथ रहते हैं और मिलजुल कर स्वार्थ पूरे करते रहते हैं जबकि दूसरी किस्मों के भगवानों का अपना स्वतंत्र कार्यक्षेत्र होता है और ये इसमें बाहरी तथा दूसरे भगवानों का किसी भी प्रकार का दखल बर्दाश्त नहीं करते और दूसरों के दखल करने पर ये किसी भी हद तक जा सकते हैं भले ही दूसरे भगवान इनके अपने ही स्वभाव और समानधर्मा व्यवहार वाले क्यों न हों। सर्वशक्तिमानों की हर तरफ इन दिनों पसरती जा रही सत्ता के बीच ज्यों-ज्यों इन्हें अपनी ताकत बढ़ने का अहसास होने लगता है त्यों-त्यों इनके भीतर का मानवीय स्वरूप और मानवीय मूल्यों का क्षरण होने लगता है और इनकी हरकतों को देख कर कोई भी समझदार व्यक्ति स्पष्ट कह सकता है कि इन सर्वशक्तिमानों में कभी हिरण्यकश्यप, महाबली रावण, कंस और दूसरे पौराणिक पात्रों के दर्शन होते हैं जिनकी वजह से इतिहास में अशांति का माहौल बना और प्रजाजनों पर अत्याचार ढाए जाने लगे।
ऎतिहासिक सत्य है कि जब-जब कुपात्रों के हाथों में कुछ झुनझुना आ जाता है तब वे बजा-बजा कर अपने होने का अहसास कराते रहते हैं और इसका खामियाजा उस युग को भुगतना पड़ता है जिस युग में इनका जाने किस दुर्भाग्य से अनचाहे ही अवतरण हो जाता है। सर्वशक्तिमान होने का भ्रम पाले हुए ऎसे खूब लोग इतिहास में हुए हैं और आज भी लोग उनको दुर्भाग्यशाली तथा कलंक मानते हैं। सर्वशक्तिमानों की यही श्रृंखला वर्तमान में भी हमारे सामने चली आ रही है। इन सर्वशक्तिमानों को न मनुष्य शरीर की उम्र का पता है, न मनुष्य की सीमाओं या मर्यादाओं का। मनुष्य के कत्र्तव्यों और मानव जन्म के लक्ष्यों को समझना तो बहुत दूर की बात है। आज हर तरफ ऎसे ढेरों सर्वशक्तिमानों का बोलबाला है। जो लोग आज अपने आपको ईश्वर मान बैठे हैं उन्हें थोड़ा इतिहास पढ़ने और ईश्वरीय विधान को जानने का प्रयास करना चाहिए ताकि उन्हें यह पता चल सके कि ईश्वर ने उनके अवतरण के साथ ही उन लोगों का भी प्राकट्य कर दिया है जो उनके लिए सवा सेर साबित होने वाले हैं।
प्रतीक्षा सिर्फ उस उपयुक्त अवसर की ही बची रहती है जब इन स्वयंभूओं के लिए निर्धारित सवा सेरों का जागरण होने लगता है। किसी भी व्यक्ति को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि उसके ऊपर कोई है ही नहीं। जो व्यक्ति यह मान बैठते हैं उनका क्या हश्र होता है इसके लिए भारतीय इतिहास की कई घटनाओं से सीख ली जा सकती है। हम सभी को अपने भ्रमों से बाहर निकल कर सत्य को देखना होगा वरना हमारे लिए भी कोई सवा सेर होगा जो हमारे भ्रमों को दूर करने के लिए काफी होगा। अभी समझ जाएं तो ठीक है वरना बाद में तो पछतावे के सिवाय कुछ बचने वाला है ही नहीं।
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