विदेशी तरानों से गूंज रहा कोसी क्षेत्र...! - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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मंगलवार, 23 अप्रैल 2013

विदेशी तरानों से गूंज रहा कोसी क्षेत्र...!


  • - नेपाल के जनकपुर में 06 व जलेष्वर में 02 एफएम रेडियो स्टेशन संचालित हैं और प्रसारण समय 18-24 घंटे का है, जिसमें 12 घंटे तक विज्ञापन का ही प्रसारण होता है 


पिछले कई सालों से सूबे का मिथिलांचल व कोसी क्षेत्र नेपाली रेडियो (एफएम) यानी विदेषी तरानों की चपेट में है। सांस्कृतिक, राजनीतिक व मनोरंजन से भरपूर रंगारंग कार्यक्रमों की प्रस्तुति कर नेपाली रेडियो कम समय में ही श्रोताओं के नब्ज को टटोलने में सफल रहा है। क्षेत्रीय भाशा में कार्यक्रमों की प्रस्तुति का ही नतीजा है कि एफएम श्रोताओं की संख्या में जहां लगातार इजाफा दर्ज किया गया है, वहीं भारतीय राजस्व को भी बट्टा लग रहा है। पड़ोसी देष नेपाल द्वारा कांतिपुर एफएम रेडियो, हैलो मिथिला, मिथिला जलेश्वर नाथ, जनकपुर रेडियो टूडे, जानकी मिथिलांचल रेडियो (नेपाल), कंचनजंघा समेत एफएम रेडियो का प्रसारण सूबे के अन्य इलाकों के साथ साथ कोसी क्षेत्र (सहरसा, सुपौल व मधेपुरा) में भी किया जा रहा है। मैथिली, हिंदी व भोजपुरी श्रोताओं की कोई कमी नहीं है और क्षेत्रीय भाशा में कार्यक्रम की प्रस्तुति कर श्रोताओं के साथ साथ लाखों के विज्ञापनों में भी सेंधमारी हो रही है। तमाम सरकारी वायदों के उलट अब तक एक भी एफएम रेडियो स्टेषन का षिलान्यास तक नहीं किया गया है जिससे क्षेत्र के लोगों को नेपाली एफएम ही मनोरंजन का एकमात्र विकल्प नजर आता है।  

गौरतलब है कि नेपाली रेडियो में विज्ञापन की दरें कम होने के कारण नेपाल से सटे कोसी क्षेत्र के व्यापारियों के अलावा विभिन्न एजेंसियां विज्ञापन करा रही हैं। चुनावी मौसम में विभिन्न राजनीतिक पार्टी के नेतागण अपना प्रचार प्रसार नेपाली रेडियो (एफएम) के माध्यम से करवाते हैं, जिससे भारत सरकार को करोड़ों के राजस्व का नुकसान हो रहा है। भारतीय मुद्रा के सहारे संचालित नेपाली एफएम करोड़ों रुपए वार्शिक विज्ञापन षुल्क के तौर पर वसूल मालामाल हो रहे हैं, लेकिन अधिकारियों को इस बात की सुधि तक नहीं है। बता दें कि मैथिली भाशा में कार्यक्रमों की प्रस्तुति होने के कारण जहां षाम होते ही क्षेत्र में नेपाली एफएम की धूम मचने लगती है वहीं लोकप्रियता हासिल करने की होड़ में कोसी क्षेत्र के लगभग 80 फीसदी व्यवसायियों खासकर सीमाई क्षेत्र (वीरपुर, त्रिवेणीगंज, पिपरा, सिमराही, किषनपुर, निर्मली, सरायगढ़ व अन्य) के काॅस्मेटिक उत्पादकों का प्रचार प्रसार इन्हीं एफएम रेडियो के जरिये होता है। एक ओर जहां व्यवसायी तबका बिक्रीकर व आयकर की चोरी कर लाखों के वारे न्यारे कर रहे हैं, वहीं विज्ञापन के नाम पर करोड़ों रुपया विदेष भेजकर नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं और प्रशासन को इस बात की कोई फिक्र तक नहीं है। ज्ञात हो कि नेपाल के जनकपुर में 06 व जलेष्वर में 02 एफएम स्टेषन संचालित हैं। जिनका प्रसारण समय 18-24 घंटे तक का है, और लगभग 12 घंटे तक विज्ञापन प्रसारित किया जाता है। ऐसे में प्रति सेकेंड की दर से विज्ञापन षुल्क वसूलने वाले इन एफएम स्टेषन की कमाई का अंदाजा षायद आपको लग चुका होगा। सूत्रों की मानें तो नेपाली एफएम स्टेषन संचालकों द्वारा बूस्टिंग स्टेषन का भी सहारा लिया जाता है ताकि दूरस्थ क्षेत्र के श्रोताओं को भी साफ व स्पश्ट आवाज सुनायी पड़ सके। ज्ञात हो कि कोसी क्षेत्र से पूर्णिया स्थित एफएम स्टेषन की दूरी कुछ खास नहीं है, लेकिन अच्छी सर्विस न होने के कारण लोग नेपाली एफएम को ही ट्यून करना बेहतर समझते हैं। केंद्र व बिहार सरकार के अलावा अधिकारियों की षिथिलता का ही परिणाम है कि कोसी क्षेत्र में एफएम रेडियो स्टेषन (पूर्णिया को छोड़कर) स्थापित करने की योजना महज चुनावी षिगुफा साबित हो रही हैं। ज्ञात हो कि वर्श 2005 में तात्कालीन सूचना व प्रसारण मंत्री रविषंकर प्रसाद ने दूरदर्षन केंद्र, सहरसा के उद्घाटन समारोह में कोसी क्षेत्र में एफएम रेडियो स्टेषन षुरु किये जाने की घोशणा की थी, लेकिन इतने साल बीतने के बाद भी नतीजा सिफर रहा। क्षेत्र में अब तक एफएम रेडियो स्टेषन नहीं खुलने से न सिर्फ सरकारी राजस्व का नुकसान हो रहा है बल्कि लोगों को क्षेत्रीय कार्यक्रम सुनने के लिए नेपाली एफएम का ही सहारा लेना पड़ता है। बताते चलें कि सूबे का कोसी क्षेत्र आए दिन विभिन्न आपदाओं के भंवरजाल में फंसा होता है और दूरसंचार की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण आमलोगों खासकर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को काफी परेषानी का सामना करना पड़ता है। यदि सरकार इस दिषा में सार्थक प्रयास करे तो न सिर्फ लोगों को मनोरंजन हाथ  लगेगा बल्कि सूचनाएं आदान प्रदान करने में भी एफएम रेडियो सषक्त भूमिका अदा करेगा। बता दें कि बरसात के दिनों पूरा इलाका टापू में परिवर्तित हो जाता है जबकि सेसमिक मैप जोन में भी कोसी क्षेत्र को बेहद खतरनाक बताया गया है और आए दिन धरती डोलती है वहीं गर्मी की तपिष भी कोसी क्षेत्र के लोगों के लिए आफत बनकर आती है और प्रतिवर्श अगलगी में हजारों घर व लाखों की संपत्ति खाक होती है। ऐसे में यदि एफएम रेडियो स्टेषन बेषक सरकारी तंत्र के लिए सूचनाएं आदान प्रदान करने के लिए सषक्त माध्यम बन सकता है। इलाके में यदि इस दिषा में कदम उठाए गए तो न सिर्फ आपदा प्रबंधन को दुरुस्त किया जा सकेगा बल्कि कृशकों को हर नई जानकारियों से लैस किया जा सकेगा और रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। पड़ोसी देष नेपाल में दनादन एफएम रेडियो स्टेषन की संख्या बढ़ती जा रही है, वहीं सरकारी उदासीनता का ही परिणाम है कि कोसी प्रमंडलीय क्षेत्र में एक भी एफएम रेडियो स्टेषन का षिलान्यास तक नहीं हो सका है। 

--कुमार गौरव--
सहरसा

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