प्रकृति के करीब रहें और मौज-मस्ती का आनंद पाएं !!!
पूरी दुनिया आज विश्व स्वास्थ्य दिवस मना रही है। जो विषय हमारी जिन्दगी के हर क्षण को प्रभावित करता है उसे अब हम सिर्फ एक ही दिन में सिमटा देने लगे हैं। शरीर को स्वस्थ बनाए रखने के लिए हर क्षण उसका चिंतन करने की आवश्यकता है न कि सिर्फ एक दिन के लिए कुछ सोचने भर की, भाषणों की बौछार सुनने की या समारोह मनाकर इतिश्री कर लेने की।
सेहत है जीवन की बुनियाद
स्वास्थ्य वह कारक है जिसका संबंध मनुष्य के जन्म से लेकर मृत्यु तक बना रहता है और यह मनुष्य पर ही निर्भर करता है कि वह अपने शरीर का रक्षण-संवद्र्धन कैसे करता है अथवा किस प्रकार स्वस्थ रहता है। स्वास्थ्य हर मनुष्य के जीवन की बुनियाद है। जीवन के दूसरे तमाम प्रकार के आनंद और सुकून इसी नींव पर टिके हुए हैं। इस बुनियाद के कमजोर हो जाने की स्थिति में दूसरे तमाम प्रकार के आनंद और मौज-शौक अपने आप फीके पड़ने लग जाते हैं और आदमी को लगता है जैसे उसकी जिन्दगी का कोई मूल्य नहीं रह गया है।
बढ़ने लगी हैं बीमारियाँ
आज दुनिया भर में अधिकांश लोग बीमारी की हालत में जी रहे हैं। कोई छोटा है तो कोई बड़ा बीमार। बीमारियों ने भी अपनी सेहत सँवारनी शुरू कर दी है और हर किसी के पीछे पड़ ही जाती हैं। बहुसंख्य लोग किसी न किसी शारीरिक रोग से ग्रस्त हैं ही। फिर आजकल की परिस्थितियाँ और मानवीय उच्चाकांक्षाओं की नॉन स्टाप हवाओं ने हमें शारीरिक से कहीं अधिक मानसिक बीमारियों की ओर धकेला हुआ है।
आज के जमाने में बीमार हर कोई है। कोई शारीरिक है तो कोई मानसिक। शारीरिक बीमारों की गतिविधियां चेहरे से लेकर चाल-चलन तक नज़र आ जाती हैं मगर मानसिक बीमारों की हरकतों को उनके सामीप्य में आए बगैर नहीं जाना जा सकता।
मनोरोग भी पांव पसारने लगे हैं
इसमें प्रत्यक्ष और परोक्ष अथवा दृश्य या छिपे हुए मानसिक रोगियों का जमघट हर कहीं विद्यमान है। अपना इलाका भी इससे अछूता नहीं है। मानसिक रोगियों की एक विशिष्ट किस्म है जो अंदर ही अंदर मनोरोग से ग्रस्त हैं लेकिन उनके बारे मेें अनुमान नहीं लगाया जा सकता। इस किस्म के मनोरोगियों की मौजूदगी हमारे आस-पास से लेकर अपने क्षेत्र या परिवेश में खूब पसरी हुई है। ऎसे लोगों को तरह-तरह के फोबिया ने इतना सताया हुआ है कि न अपनी मनोदशा के यथार्थ को स्वीकार करने की स्थिति में हैं, और न ही नकारने की स्थिति में।
उच्चाकांक्षाएं न पालें
लोगों की महत्त्वाकांक्षाओं ने उच्चाकांक्षाओं का स्थान ले लिया है और कम से कम समय में, बिना मेहनत या प्रतिभा के रातों रात महान, लोकप्रिय, समृद्ध और जग विख्यात बन जाने का भूत सवार हो गया है।
इन बहु स्वरूपी फोबियाओं ने अधिकांश लोगों को अघोषित मनोरोगी बना डाला है। हम इस सत्य को भले ही न स्वीकारें मगर यह शाश्वत है और हमारी आत्मा इसे बिना किसी संकोच के स्वीकार करती ही है।
चैन से जीने का रास्ता अपनाएं
तमाम प्रकार की भागदौड़ और भटकाव ने आदमी का चैन छीन लिया है। न संतोष रहा है न मानवीय मूल्यों या कत्र्तव्यों का कोई भान। हालात ये हैं कि समुदाय में ऎसे लोगों की तादाद बढ़ती ही चली जा रही है जिन्हें असंतुष्ट, अतृप्त, अशांत और उद्धिग्न कहा जा सकता है। आदमी अपने स्वार्थ को पूरा करने के लिए जिन हथकण्डों, करामातों, गोरखधंधों और हरकतों का सहारा लेने लगा है उन सभी ने आदमी को मनोरोगी बना डालने में कोई कसर बाकी नहीं रखी है।
सेवा और सामाजिक दायित्वों को समझें
आदमी में दिन-रात के चिंतन में भगवान, माँ-बाप और गुरु, समाज, क्षेत्र, स्वाध्याय, सेवा, परोपकार और मनुष्य के दायित्वों का कोई स्थान नहीं रह गया है। अब आदमी को अहर्निश रुपए-पैसे, बैंक बेलेंस, लॉकर्स, यश-प्रतिष्ठा और उन तमाम प्रकार के धंधों की याद सताती रहती है जिनका सीधा संबंध भ्रष्टाचार, व्यभिचार, बेईमानी, अपराधों और उन सभी प्रकार की हलचलों से है जिनसे अपने हृदय और मस्तिष्क पर सीधा प्रभाव पड़ता है और तनावों की धाराएं-उपधाराएं लगातार विकसित और व्यापक होती रहती हैं।
उद्विग्नता देती है तनाव
इन उद्विग्नताओं, अशांति और अस्थिरचित्त मन-मस्तिष्क से ही सेहत प्रभावित होती है। आज हम अनाप-शनाप धन-संपदा और भोग-विलास के वैभव में आकंठ डूबे हुए, अहंकार की मद मस्ती में कितने ही स्वस्थ और मस्त मानकर चलते रहें और हमारे शरीर की भाषा को अनसुना करते रहें मगर हकीकत तो यही है कि हमारी सेहत पर सर्वाधिक कुप्रभाव हमारे कर्मों का ही पड़ता है।
हर क्षण सहज रहें
औरोंं को परेशान करने वाले तथा हराम की कमाई पाने वाले कर्मों से हमारी उद्विग्नताएं और तनाव बढ़ेंगे ही, और एक समय वह भी आता ही है जब हमारे द्वारा कमायी हुई सारी राशि किसी न किसी सुराख से बाहर निकलनी शुरू हो जाती है। इसलिए स्वास्थ्य के मामले में सतर्क रहना हो तो जीवन में अनुशासन, मर्यादाएं और सदाचार लाएं तथा इस प्रकार का जीवन जीएं कि हम भी मस्त रहें और हमारे सम्पर्क में आने वाले सभी लोग भी मस्त रहें।
सजग रहें स्वास्थ्य रक्षा के प्रति
औरों को मस्त रखने और मस्ती बनाए रखने के प्रयासों के प्रति हम जरा भी गंभीर हो जाएं तो हमारा शरीर भी मस्त तथा निरोगी रहता है और ऎसे में साल भर में एक दिन हमें स्वास्थ्य रक्षा का रोना रोने की जरूरत नहीं पड़ती बल्कि हर क्षण हमें सेहत का वरदान प्राप्त होता रहता है। आज स्वास्थ्य के प्रति चिंताओं में सर्वाधिक बढ़ोतरी हो गई है उसका कारण ही हमारी अनियमित, अनुशासनहीन, उन्मुक्त, स्वच्छंद और असंयमित दिनचर्या है।
आहार-विहार में अनुशासन लाएं
हमने विदेशी प्रभावों मेें आकर स्वदेशी दिनचर्या का परित्याग कर दिया, प्रकृति से दूरियाँ बना ली और नैसर्गिक आहार-व्यवहार तथा औषधियों का परित्याग कर दिया। स्वच्छंद भोगवादी मानसिकता और उन्मुक्त यौनाचार को अपना लिया। हमारे सोने-जगने, उठने-बैठने, खान-पान से लेकर परिभ्रमण और जीवन व्यवहार तक के हर काम में विदेशी प्रभाव ने इतना कब्जा जमा लिया है कि हम भारतीय जीवन पद्धति भूल से गए हैं और यही कारण है कि हम सेहत के मामले में ऎसी स्थिति में पहुंचते जा रहे हैं जहाँ हमें दवाइयों और जांचों के साथ ही कई सारे उपकरणों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। आत्मानुशासन अंगीकार करें इन सभी स्थितियों से उबरने का श्रेष्ठतम माध्यम यही है कि हम आत्मानुशासन को अपनाएँ और भारतीय जीवन पद्धति को अंगीकार करें अन्यथा आने वाला समय न हमारे मन-मस्तिष्क के लिए अच्छा है, न शरीर के लिए।
दवाइयों के भरोसे जीवन का कोई लक्ष्य शुचिता के साथ प्राप्त नहीं किया जा सकता, इसके लिए जरूरी है प्रकृति का सामीप्य और यथार्थ दृष्टि। आज का यह विश्व स्वास्थ्य दिवस हम भारतीयों के लिए यही संदेश देता है।
9413306077
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