मुसहर समुदाय : भाषा के साथ-साथ जातिगत उपनाम को जोड़ते चले जा रहे हैं - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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रविवार, 7 अप्रैल 2013

मुसहर समुदाय : भाषा के साथ-साथ जातिगत उपनाम को जोड़ते चले जा रहे हैं


गया। भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति के लोगों आरक्षण प्राप्त है। इसके आधार राज्य सरकारों के द्वारा आरक्षण की सुविधा दी जाती है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जन जाति की श्रेणी से लाभान्वित होने वालों की सूची तैयार कर ली गयी है। उसी के आधार पर जाति प्रमाण पत्र निर्गत किया जाता है। कुछ जाति हैं कि एक राज्य अनुसूचित जनजाति श्रेणी में रखती है तो दूसरे राज्य में पिछड़ी जाति की श्रेणी में रख दी जाती है। जो न्याय संगत नहीं है। झारखंड में अनुसूचित जन जाति का दर्जा प्राप्त है। मगर बिहार में पिछड़ी जाति में डाल दिया गया है। खैर, इसको देखने से सबसे बुरा हाल महादलित मुसहर समुदाय की है। इस समुदाय को अनुसूचित जाति का आरक्षण प्राप्त है। 

मूल रूप से मुसहर जाति के होने के बाद भी इस समुदाय ने जातिगत उपनाम रखना शुरू कर दिये हैं। यहां पर यह कहावर्त चरितार्थ है आ बैल मुझे घुसा मार। भले ही मुसहर समुदाय वस्त्र न बदल सके परन्तु सहजता से जातिगत उपनाम रखने से पीछे नहीं हैं। इन दिनों बिहार में घोषित ‘मांझी’ के तहत आरक्षण पाने वाले उपनाम रखने से कतरा नहीं रहे हैं। हां, जिला-जिला में भाषा बदल जाती है। मुसहर समुदाय के द्वारा भाषा के साथ-साथ जातिगत उपनाम को जोड़ते चले जा रहे हैं। जिस गांव में मुसहर समुदाय अल्पमत में हैं। वहां पर बहुसंख्यकों के जातिगत नाम को अपने नाम के पीछे जोड़ लेते हैं। 

प्रायः बिहार में ‘मांझी’के नाम से मुसहर समुदाय को जाना और पहचाना जाता हैं। अब तो राम, महतो, मंडल, सदाय, ऋषिदेव, सदा, ऋक्रियासन, भूईया, मुसहर, मांझी, धागड़ आदि रखते हैं। गया जिले में मांझी और मंडल रखते हैं। जहानाबाद में मांझी, भोजपुर में राम, बक्सर में मुसहर, पष्चिम चम्पारण में धागड़, पूर्वी चम्मारण में मांझी और महतो, सहरसा में सदा, मधेपुरा में ऋषिदेव, सुपौल में मांझी, मधुबनी में सदाय आदि उपनाम रखते हैं। इसके कारण इनकी जनसंख्या की सही जानकारी नहीं मिल पाती है। जनसंख्या के हिसाब से मुसहर जाति बिहार में अनुसूचित जाति में तीसरी बड़ी जाति मानी जाती है। 2001 की जनगणना के अनुसार इस जाति की आबादी 21 लाख 12 हजार 134 है। जबकि अनुसूचित जातियों की आबादी 1 करोड़ 30 लाख से अधिक है। यह संख्या पूरी आबादी की 15.7 प्रतिशत है। 

आजादी के 65 साल गुजर गया है। अभी भी देश में इंडिया और भारत बरकरार है। इंडिया वाले तरक्की के डगर पर तीव्रगति से पग बढ़ाते चले जा रहे हैं। वहीं उस गति के हिसाब से भारत के लोग काफी पीछे हैं। उसमें महादलितों की स्थिति बहुत ही खराब है। और तो और महादलित मुसहर समुदाय पाछे रह गया है।  हालांकि उनकी महादलित मुसहर को सरकार वोट बैंक और उनको देशी-विदेशी नोट लाने में सहयोगी गैर सरकारी संस्था मानते हैं। दोनों की ओर से बुनियादी समस्याओं का समाधान करने की दिशा में कारगर कदम नहीं उठाया है। 

आज भी महादलित मुसहर समुदाय की उपेक्षा हो रही है। शैक्षणिक,आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ी इस जाति के विकास पर ध्यान नहीं दिया जाता है। महादलित आयोग के प्रथम अध्यक्ष विश्वनाथ ऋषि ने अपनी प्रथम अंतरिम रिपोर्ट में महादलितों को 12 डिसमिल जमीन देने की सिफारिश सरकार से की थी। इसी का आधार बनाकर भूमि सुधार आयोग के अध्यक्ष डी. बंधोपाध्याय ने भूमिहीनों को 10 डिसमिल जमीन देने की अनुशंसा की थी, लेकिन प्रषासनिक उदासीनता के कारण भूमिहीनों को बसने के लिए जमीन नहीं मिली। महादलित आयोग और भूमि सुधार आयोग की सिफारिश के आलोक में जन संगठन एकता परिषद के द्वारा मांग केन्द्र सरकार के समक्ष The National Right to Homestead Bill, 2013  द नेशलनल राइट टू होमस्टिड बिल, 2013 विचाराधीन है। 

आज भी  मुसहर समुदाय बंधुआ मजदूरों की जिदंगी जी रहे हैं। यह जाति जिस जमीन पर झोपड़ी बनाकर रहती है,वह जमीन किसी न किसी मालिक की होती है। सुशासन सरकार का कहना है कि बिहार में बंधुआ मजदूर नहीं हैं। राजधानी के बगल में पश्चिम दीघा ग्राम पंचायत है। यहां पर पटना जिले के जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंह के ईट भट्टे में गया जिले के कई प्रखंडों के महादलित मुसहर समुदाय के लोग बंधुआ मजदरों की तरह कार्यशील हैं। अपने परिजनों के साथ आये बच्चों की पढ़ाई की व्यवस्था नहीं है। यह बालक भी पढ़ाई से महरूम है। बालू पर घुमते ही रहता है। समय पर जाकर मां-बाप के साथ भोजन कर लेता है। बस इसी तरह से दिनचर्या कट रहा है।वहीं दानापुर प्रखंड के नासरीगंज बिस्कुट फैक्ट्री के बगल में रहने वाले महादलित मुसहर मालिकों के पास बंधुआ मजदूरी करते हैं। एक मालिक के पास से मुक्ति पाने के लिए दूसरे मालिक से रकम लेकर दूसरे मालिक के पास बंधुआ मजदूर बनने को बाध्य हो रहे हैं। यह सरकार की बात हास्यास्पद है कि बिहार में बंधुआ मजदूर नहीं है। 

भले ही महादलित आयोग की  अनुशंसा के आलोक में मुख्यमंत्री पोशाक योजना, दशरथ मांझी कौशल विकास योजना, विकास मित्र,महादलित शौचालय निर्माण,महादलित आवास भूमि योजना, मुख्यमंत्री नारी ज्योति कार्यक्रम, सामुदायिक भवन सह वर्कशेड, मुख्यमंत्री जीवन दृष्टि योजना, मुख्यमंत्री जलापूर्ति  योजना, धनवंतरि मोबाइल चिकित्सा योजना,स्वास्थ्य कार्ड योजना,अनुसूचित जाति आवास विघालय, महादलित आंगनबाड़ी जैसी महत्वांकाक्षी योजना लागू है। परन्तु योजनाओं का लाभ महादलितों को नहीं मिल पा रहा है। इसे कारगर ढंग से लागू करने की जरूरत है।  



---आलोक कुमार---
पटना 

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