गुहड़ा गाँव में बहती हैं लोक श्रद्धा की सरिताएँ - Live Aaryaavart (लाईव आर्यावर्त)

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शनिवार, 13 अप्रैल 2013

गुहड़ा गाँव में बहती हैं लोक श्रद्धा की सरिताएँ


हवाओं में है संत शिरोमणि सदाराम महाराज के चमत्कारों की गूंज


 भारत-पाक सरहदी क्षेत्रों का रेगिस्तान दुर्गम होने की वजह से सिद्ध संताें, तपस्वियों और योगियों का तपस्या स्थल रहा है। ऎसे सिद्ध तपस्वियों की परम्परा यहाँ सदियों से चली आ रही है। सीमावर्ती क्षेत्रों में विभिन्न स्थानों पर इन सिद्ध महात्माओं की समाधियाँ, छतरियॉँ मंदिर, आश्रम, मठ आदि हैं जिनके प्रति आज भी लोक श्रृद्धा की सरिताएँ पूरे वेग के साथ बहती हैं। इन्हीं में मशहूर है गुहड़ा गांव में अवस्थित योगिराज श्री सदाराम महाराज का प्राचीन आश्रम, जहाँ हर वर्ष महाराजश्री की पुण्य तिथि पर चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में तीज व चौथ को बड़ा भारी मेला भरता है।
       
शनि-रवि को भरेगा विशाल मेला

इस बार यह मेेला 13 व 14 अप्रैल को भरेगा। गुहड़ा (सादुल धाम) में श्री सदाराम जी महाराज की 136 वीं पुण्यतिथि पर होने वाले इस विराट मेले में रात्रिकालीन जागरण के अन्तर्गत जाखल मठ, हरसाणी भाखराणा व भादली के संत-महंतों द्वारा सत्संग व प्रवचन के कार्यक्रम होंगे जबकि अंतिम दिन 14 अप्रैल, रविवार, चैत्र शुक्ल चतुर्थी को सवेरे पूजा-अर्चना व गादी दर्शन होगा।
       
भक्तों के लिए व्यापक इंतजाम

मेले में आने वाले हजारों भक्तों के लिए व्यापक प्रबंध सुनिश्चित किये गये हैं। मेलार्थियों के ठहरने, खाने-पीने आदि के प्रबंधों के साथ ही लंगर भी लगता है। जैसलमेर जिला मुख्यालय से करीब सवा सौ किलोमीटर दूर जैसलमेर-बाड़मेर सरहद पर अवस्थित गुहड़ा गांव लोक श्रृद्धा का केन्द्र है।
       
सदाराम जी की जन्म एवं तपस्या स्थली है गुहड़ा

यह गाँव तपस्वी संत सदाराम जी महाराज का जन्म स्थल होने के साथ ही तपस्या स्थल भी है। करीब दो सौ वर्ष पहले का वह काल अलौकिक विभूतियों का अवतरण काल था जब कई सिद्धों, तपस्वियों, योगियों एवं अवधूतों का प्राकट्य हुआ। इन्हीं में गुहड़ा वह भाग्यशाली गाँव है जहाँ सदाराम जी महाराज का जन्म हुआ। शैशव से ही ईश्वरीय चिंतन, ध्यान-योग और प्राणी मात्र की सेवा के संस्कारों से परिपूर्ण सदारामजी की गृहस्थी कुछ वर्ष ही चल पायी। एक दिन ईश्वरीय प्रेरणा से अचानक तीव्र वैराग्य उत्पन्न हो गया और घर बार त्याग कर ईश्वर की खोज में निकल पडे़।
       
मीलों पसरे सरहदी क्षेत्रों में कई श्रद्धास्थल हैं संतश्री के

उन्होंने हजारों मील यात्रा की व विभिन्न स्थानों पर धूंणा स्थापित कर तपस्या की। सदारामजी महाराज के तपस्या स्थलों में गुहड़ा का धाम सर्वाधिक प्रसिद्ध है जहाँ उनका मुख्य धूंणा है। इसके अलावा कोहरा गांव, देवीकोट के पास लाला कराड़ा गांव, हाबुर गाँव में पहाड़ी के पास, मुल्तान में कोट मिठण में फरीद शाह के पवित्र स्थल, जिला मीरपुर माथेला, जिला घोटकी पिताफी व जरवारा, रोहल साहेब के कनड़ी व झोक शरीफ में शाह अनाथ के पवित्र स्थल में तपस्या की व धूंणा स्थापित किया। इनमें से कई स्थल अब पाकिस्तान में हैं। वर्षों तक एकांतवासी रहकर कठोर तपस्या से आत्म साक्षात्कार कर लेने के बाद भगवान ने लोक कल्याण में जुटने की प्रेरणा दी। इस पर वे अपने जन्म स्थल गुहड़ा गाँव में आये तथा यहीं पर मुख्य धूँणा स्थापित किया।
       
लोक आस्था का दिव्य धाम है गुहड़ा

धीरे-धीरे दिव्य विभूति अलौकिक संत सदारामजी महाराज की कीर्ति दूर-दूर तक फैलने लगी। उनका आशीर्वाद पाकर लोगाें की मनोकामनाएँ पूरी होने लगी व दीन-दुखियों के कष्ट खत्म होने लगे। उन दिनों गुहड़ा का यह धाम संत-महात्माओं व तपस्वियों-साधकों से लेकर आम जन की आस्था का वह गुरु आश्रम हो गया जहाँ रोजाना भजन-कीर्तन व सत्संग का दौर बना रहने लगा।
     
दो सदी पूर्व हुआ अवतरण

सदारामजी का जन्म आज से 207 वर्ष पूर्व गुहड़ा गांव में विक्रम संवत 1863 में चैत्र शुक्ल द्वितीया को हुआ। उनके पिता का नाम जीवणराम तथा माता का नाम इतु बाई था। सदाराम ने धार्मिक व आध्यात्मिक ज्ञान अपने गुरु संत श्री सेवाराम से पाया, जो कि जैसलमेर जिले के ही भाखरानी गाँव के थे।
       
अलौकिक लीलाओं की कीर्ति दूर-दूर तक

संत शिरोमणि सदाराम जी महाराज ने कई अलौकिक लीलाएँ की व चमत्कार दिखाये जो आज भी बहुश्रुत हैं। जैसलमेर रियासत के तत्कालीन महारावल केसरसिंह ने चमत्कारों व उपदेशों से प्रभावित होकर उन्हें अपना गुरु बनाया तथा आठ गाँवों की जागीर दी और ईसाल बंगला व पीपलवा गांव भेंट किया।
       
कई ग्रंथों की रचना की सदाराम महाराज ने

संत सदारामजी महाराज ने अपनी लेखनी से उपदेशों, भजनों व वाणियों पर केन्दि्रत नौ ग्रंथों की रचना की जिनकी पाण्डुलिपियाँ आज भी सुरक्षित हैं। इन ग्रंथों मे मूल दीप, ज्ञान दीप, ज्ञान सागर, निर्वाण सागर, समझ सागर, रामसागर गीता, सादूल गीता, इश्क समुद्र तथा शुद्ध सागर शामिल है। सदाराम जी के भजन व वाणियाँ भी गूढ़ रहस्यों भरी होने के बावजूद सरल, सहज व सुबोधगम्य है जिनका भक्तगण श्रृद्धापूर्वक गान करते हैं। प्राचीन भाषा व लिपि में लिखे उनके ग्रंथों का हिन्दी में अनुवाद भी किया गया है। संत सदाराम जी महाराज की कीर्ति दूर-दूर तक फैली हुई है। उनका निर्वाण विक्रम संवत 1936 में चैत्र शुक्ल चतुर्थी को हुआ। यह संयोग ही है कि उनका जन्म चैत्र शुक्ल द्वितीया तथा महाप्रयाण चैत्र शुक्ल चतुर्थी तिथि को हुआ। इस वजह से हर वर्ष भारतीय विक्रम संवत्सर के चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की दूज से लेकर चौथ तक देश के कई हिस्सों में उनकी स्मृति में मेले भरते हैं।
       
भारत-पाक में कई जगह उनकी याद में मेले

मुख्य मेला गुहड़ा (जैसलमेर) में भरने के साथ ही छत्तीसगढ़ के न्यू रायपुर में संत सादाणी नगर स्थित सादाणी दरबार तीर्थ, अमरावती में सिंधु-नगर स्थित सादाणी दरबार साहेब, हरिद्वार में सप्त सरोवर मार्ग पर संगमपुरी माता लालदेवी के पास, भोपाल में सोहनगिरी स्थित लटकी नगर के पीछे स्थित सादाणी दरबार समिति में इन तीन दिनों में मेले भरते हैं। हिन्दुस्तान के अलावा पाकिस्तान में भी बाबा सदाराम की याद में उनके तपस्या व धूंणा स्थलों पर मेले भरते हैं। इनमें रहीमयार खान जिले के पुण्सा, सांगड़ जिले के पेरूमल, सिंध के खिपरों आदि के मेले प्रमुख है।
       
अगाध आस्था है महाराज के प्रत

अलौकिक एवं चमत्कारिक संत सदाराम जी महाराज की स्मृति में भरने वाले इन मेलों में हजारों की संख्या में भक्तजन आते हैं व अपनी अनन्य श्रृद्धा अभिव्यक्त करते हैं। भक्तों का विश्वास है कि बाबा सदाराम के दरबार से कोई भी भक्त निराश नहीं लौटता। हर भक्त की मनोकामना वे अवश्य पूरी कर देते हैं। इन मेलार्थियों के लिए श्रृद्धालु भक्तजन पूरी उदारता व सेवा भावना के साथ लंगर चलाकर खाने-पीने व ठहरने के प्रबंध कर अपने आपको धन्य मानते हैं।
       
मेलार्थियों के लिए सारे प्रबन्ध

गुहड़ा गाँव में संत सदाराम जी महाराज के मुख्य धाम पर विशाल परिसर में फैला हुआ मंदिर व समाधि स्थल है। इसके आस-पास उनके वंशजों की समाधियाँ हैं। इस समय संत सदाराम जी महाराज की पाँचवी पीढ़ी में श्री द्वारकाराम हैं जो कि मंदिर प्रबंधन गतिविधियों के लिए उत्तरदायी सादुल सेवा समिति के अध्यक्ष हैं। मंदिर के समीप ही श्रृद्धालुओं के आवास हेतु कई धर्मशालाएँ हैं जिनमें सारी व्यवस्थाएं निःशुल्क उपलब्ध हैं। संत सदाराम जी महाराज की कृपा पाने को आतुर हजाराें भक्तजन गुहड़ा के मेले में पहुँचते हैं। लोगाें का विश्वास है कि संतश्री आज भी सूक्ष्म रूप में विद्यमान हैं तथा भक्तों की सहायता करते हैं। संत सदाराम जी महाराज के प्रति भारत एवं पाकिस्तान दोनों देशों के पूरे सरहदी क्षेत्र में श्रृद्धा का ज्वार उमड़ता रहा है।





---डॉ. दीपक आचार्य---
9413306077
dr.deepakaacharya@gmail.com

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