- - नेशनल ट्रांसलेषन मिशन, मैसूर द्वारा उच्च शिक्षा का मार्ग प्रशस्त करने के मकसद से आठ पुस्तकों का मैथिली में अनुवाद कराया गया, इसी बीच स्थानीय विज्ञानी डाॅ धीरेंद्र कुमार झा, डाॅ ब्रज मोहन मिश्र व डाॅ प्रेम मोहन मिश्र ने मैथिली भाषा में विज्ञान की पुस्तक लिखकर आम लोगों को विज्ञान से जोड़ने का प्रयास किया है
मिथिला की शैक्षिक परंपरा प्राचीन काल से ही सुदृढ़ रही है। यहां की सभ्यता, संस्कृति व साहित्य बेहद समृद्ध रहा है। मध्यकाल तक मिथिला की विद्वता और पांडित्य कला का संपूर्ण विष्व लोहा मानती रही। देष व प्रदेष के तत्कालीन राज्यों में मिथिला के पंडितों को पद व प्रतिश्ठा प्राप्त था किंतु वर्तमान परिवेष में इसमें कमी आई है। इसका प्रमुख कारण है कि विशय वस्तु के अध्ययन में भाशा की दीवार खड़ी है। ऐसी बात नहीं है कि भाशाई दीवार को तोड़ने का प्रयास नहीं किया जा रहा है लेकिन विशय वस्तु की व्यापकता के समक्ष यह अल्प प्रयास मात्र ही है। अभी हाल ही में नेषनल ट्रांसलेषन मिषन, मैसूर द्वारा उच्च षिक्षा का मार्ग प्रषस्त करने के मकसद से आठ पुस्तकों का मैथिली में अनुवाद कराया गया। इसी बीच स्थानीय विज्ञानी डाॅ धीरेंद्र कुमार झा, डाॅ ब्रज मोहन मिश्र व डाॅ प्रेम मोहन मिश्र ने मैथिली भाशा में विज्ञान की पुस्तक लिखकर आम लोगों को विज्ञान से जोड़ने का प्रयास किया है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अध्ययन व अध्यापन की सबसे बड़ी चुनौती विशय वस्तु की समझ विकसित करना है।
क्षेत्रीय भाशा में पाठ्य पुस्तकों की कमी इस दिषा में सबसे बड़ी चुनौती है। खासकर उच्च षिक्षा के क्षेत्र में मैथिली भाशा की पुस्तकों का नितांत अभाव है। इसके अलावे विज्ञान की अधिकतर पुस्तकें अंग्रेजी मंे ही उपलब्ध है। फलस्वरुप अंग्रजी की बारीकियों से अपरिचित लोग उच्च षिक्षा ग्रहण करने से कतराते हैं। इतना ही नहीं उच्च षिक्षा की डिग्री हासिल कर लेने के बाद भी विज्ञान की विशय वस्तु की की समझ नहीं रखते हैं। जहां तक मैथिली का सवाल है तो यह संविधान की आठवीं अनुसूची में षामिल है किंतु पाठ्य पुस्तकों की कमी की वजह से मैथिली अब तक षिक्षण का माध्यम नहीं बन सकी है। जबकि प्राथमिक स्तर से ही मैथिली में अध्यापन की मांग उठती रही है। इतना ही नहीं समय समय पर विभिन्न छात्र संगठनों द्वारा मांग उठती रही है कि किसी भी विशय में स्नातक उतीर्ण छात्रों को उच्च षिक्षा के क्षेत्र में मैथिली में स्नातकोत्तर करने के छूट दे दी जानी चाहिए। नियमानुसार कोई भी छात्र उसी विशय में स्नातकोत्तर की पढ़ाई कर सकता है जिस विशय में उसने स्नातक की डिग्री हासिल की हो। रोचक तथ्य यह है कि इग्नू जैसे प्रतिश्ठित संस्थान द्वारा मैथिली का फाउंडेषन पाठ्यक्रम संचालित किया जाता है। वैसे भी फाउंडेषन पाठ्यक्रम का उद्देष्य तभी फलीभूत होता है जब उसका उपयोग उच्च शिक्षा हासिल करने में हो।
ऐसे में सवाल यही उठता है कि जब फाउंडेषन पाठ्यक्रम के आघार पर बीसीए व एमसीए में दाखिला मिल सकता है तो मैथिली भाशा से स्नातक व स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में क्यों नहीं ? उच्च षिक्षा के क्षेत्र में मैथिली भाशा में पाठ्य पुस्तकों की कमी को दूर करने के उद्देष्य से विभिन्न विशयों की आठ पुस्तकों का अनुवाद मैथिली में कराया गया है। यह सब संभव हुआ है राश्टीय ज्ञान आयोग, नई दिल्ली की अनुषंसा पर केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नेषनल ट्रांसलेषन मिषन, मैसूर के तत्वावधान में कई विज्ञान की पुस्तकों का अनुवाद किया जा रहा है। जहां तक मैथिली भाशा के विस्तार की बात है तो इसमें मिथिलांचल के हजारों विभूतियों का योगदान रहा है। मालूम हो कि मैथिली साहित्य अकादमी के योगदान से पाठयक्रम से संबंधित दर्जनों मैथिली की पुस्तकें बाजार में उपलब्ध हैं। सिर्फ मैथिली साहित्य अकादमी से अब तक 192 पुस्तकों का प्रकाषन किया जा चुका है। पुस्तकों की इस लंबी चैड़ी सूची में से बिहार के विभिन्न विवि में अध्यापन की दृश्टि से 40 पुस्तकों का प्रकाषन किया गया है। झारखंड के विभिन्न विवि में अध्यापन हेतु 23 पुस्तकें प्रकाषित की गई है।
बिहार लोक सेवा आयोग के लिए 14 जबकि संघ लोक सेवा आयोग के लिए 11 पुस्तकों का प्रकाषन किया गया है। इन सराहनीय कार्य के बावजूद विज्ञान की पुस्तकों की अनुपलब्धता लोगों को खटकता है। इस दिषा में खाई को पाटने के लिए ललित नारायण मिथिला विवि के सेवानिवृत स्नातकोत्तर भौतिकी विभागाध्यक्ष डाॅ धीरेंद्र कुमार झा ने सार्थक प्रयास किया है। श्री झा ने मैथिली भाशा में हमरा बीच विज्ञान नामक पुस्तक भी लिखा है। वहीं भौतिकी के पूर्व विभागाध्यक्ष डाॅ ब्रजमोहन मिश्र ने अपनी पुस्तक फिजिक्स को मैथिली भाशा में सीबीएसई पाठयक्रम के आधार पर लिखा है जबकि डाॅ प्रेममोहन मिश्र ने मैथिली अकार्बनिक गुणात्मक विष्लेशण तथा वर्ग नौ के लिए मैथिली माध्यमिक रसायन लिखा है। मैथिली भाशा में विज्ञान की पुस्तकों का प्रकाषन निष्चित रुप से सराहनीय कदम है। इससे न केवल मैथिली भाशा का समग्र विकास होगा बल्कि अंग्रेजी की समझ नहीं रखने वालों को भी विज्ञान की बातें समझ में आएंगी।
---कुमार गौरव---
दरभंगा:
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